Wednesday, October 4, 2017

आपके बच्चे को घर पर 'बेकार' की चीजों के लिए जगह चाहिए

एन. रघुरामन (मैनेजमेंटगुरु)
साभार: भास्कर समाचार
बीते शनिवार को यह देखने लायक दृश्य था। एक छोटा बच्चा, शायद किंडरकार्टन का बच्चा था, बगीचे से आधी सड़ चुकी पत्ती, एक अजीब से आकार की टहनी और एक रंगीन, गोल पत्थर उठा रहा था। कुछ दूरी पर उसकी
मां फोन पर किसी के साथ बतिया रही थी। इसलिए बच्चे के हिसाब से 'संग्रहणीय' चीजों को उठाते समय उस बच्चे में जो उत्साह था उसे देखने से वंचित रह गई। यही वजह रही कि फोन पर बातचीत खत्म होने के बाद वह तेज कदमों से बच्चे की ओर आई और उसे वे सब 'बेकार' की चीजें फेंकने को कहा, जो उसने इकट्‌ठी कर ली थीं। अगर ने बच्चे का उत्साह देखा होता तो वह उसे ऐसा नहीं कहती। बच्चा तीनों चीजों में से कुछ भी फेंकने को तैयार नहीं था पर मां ने उसकी दोनों मुटि्ठयों पर जोर डाला और उन्हें उसकी पकड़ से जबर्दस्ती निकालकर फेंक दिया। फिर वह बच्चे को खींचते हुए ले गई और सड़क के उस पार के भीड़भरे मॉल में गायब हो गई। 
इससे मुझे अपनी मां याद गईं, वे जो भी चीजें मुझे जिज्ञासा जगाने वाली लगतीं, उन्हें इकट्‌ठा करने देतीं बल्कि घर पर भी लाने देतीं। सड़क के किनारे मिला यह खजाना फिर मेरी स्क्रैप बुक का हिस्सा हो जाता। उनका मानना था कि इस कवायद से दो उद्‌देश्य पूरे होते हैं- जो भी मैं देखता हूं उसके बारे में प्रश्न पूछने का मुझे मौका मिलता, इससे मेरी जिज्ञासु प्रवृत्ति का विकास होता और इस तरह से उनके साथ मेरा रिश्ता भी मजबूत होता। जाहिर है यह 54 साल पुरानी बात है। 
जैसे ही मैं मां-बेटे के पीछे मॉल के भीतर गया तो मैं साढ़े तीन फीट की गणेशजी की मूर्ति देखता ही रह गया। मूर्ति तो अलग किस्म की थी ही लेकन, वहां जो आराधना चल रही थी वह अलग ही थी। मैंने अब तक जितने किस्म की पूजा देखी है, यह अलग ही किस्म की पूजा थी। 20 साल का एक युवक कोमलता से मूर्ति के ऊपर से हाथ घुमाकर देवता के आकार-प्रकार को समझ रहा था। उसके पास खड़ा व्यक्ति उसे बता रहा था कि यह क्या है- 'यह उनका सिर है और उन्होंने 'मुकुट' पहन रखा है, यह उनके बड़े हाथी जैसे कान हैं, यह सूंड है। यह लड्‌डू की थाली है। यह उनका बड़ा-सा पेट है।' और उस व्यक्ति ने विस्तार से बताया कि देवता के कितने हाथ हैं और उनमें उन्होंने कौन-कौन-सी चीजें थाम रखी हैं। युवक ने पूरा वक्त लेकर गणेशजी की मूर्ति के हर हिस्से को उस बच्चे की तरह ही छुआ, जो बगीचे में चिकने पत्थर उठाते समय उन्हें छू रहा था। वह चौड़ी मुस्कान के साथ पंडाल से बाहर आया और अचानक उस दृश्य को देखकर मैं भीतर तक हिल गया, क्योंकि वह युवक जन्म से ही दृष्टिहीन था। पहली बार ही उसने भगवान गणेश के आकार-प्रकार को महसूस किया था, जिनके बारे में उसने मित्रों रिश्तेदारों से सुना भर था कि उसके प्रिय भगवान दिखते कैसे हैं। हां, गणेशजी की की कथाओं को सुनकर और उनके गुणों को जानकर वे उसके प्रिय भगवान बन गए थे। 
यह जगह थी 'स्पर्श गणपति,' यह मूर्ति खासतौर पर टेक्टाइल सेंसरी एड से बनाई गई थी ताकि दृष्टिहीन लोग स्पर्श करके देवता के रूप को महसूस कर सकें। यह 'न देखी गई' मूर्ति चैम्बुर में रहने वाले कलाकार राज बैडे ने खासतौर पर नायलोन की रस्सी, मोम, कपास जैसी सामग्री का इस्तेमाल करके बनाई है ताकि दृष्टिहीनों को मूर्ति का अहसास कराया जा सके। इस मूर्ति का विसर्जन नहीं किया जाएगा। इसे दृष्टिहीनों के संगठन को भेंट कर दिया जाएगा ताकि इस युवक की तरह कई अन्य दृष्टिहीन भी छूकर इसे महसूस कर सकें। 
मैं पंडाल में मूर्ति देखकर जैसे ही मुड़ा तो मुझे वही बालक दिखा, जिसने हाथ जोड़ रखे थे लेकिन, उसके चेहरे पर बहुत निराशा दिखाई दे रही थी, क्योंकि उसने अपनी कीमती चीजें खो दी थीं, जिनका नया नाम करते हुए उसकी मां ने उन्हें 'बेकार का कचरा' कह दिया था। मां आश्चर्य के भाव से स्पर्श गणपति देख रही थी। जब मैंने उसे अपने बचपन का अनुभव सुनाते हुए बताया कि मेरे घर में ऐसी 'बेकार' की चीजों के लिए खास जगई बनाई गई थी तो उसने मुझे तत्काल धन्यवाद दिया और तुरंत ब्चे को लेकर बगीचे में गई। जाहिर है बच्चे का खोया हुआ 'खजाना' लेने के लिए, जो उस पल तक उसके लिए 'बेकार का कचरा' था। जाहिर था कि मेरी बातों ने उनकी आंखें खोल दी थी कि वह किस शानदार दृश्य से वंचित हो गई थी और उनका बच्चा भी किस खजाने से वंचित होने वाला था। 
फंडा यह है कि बच्चों को हर चीज महसूस करने दीजिए ताकि वे तेजी से सीख सकें। घर में ऐसी 'बेकार की 'चीजों के लिए विशेष जगह बनाएं, जो बच्चों के लिए 'संग्रहणीय' हैं।