श्वेता रैना (हार्वर्ड बिज़नेस स्कूल की ग्रेजुएट talerang.com की सीईओ)
साभार: भास्कर समाचार
हम सब लोग जल्द से जल्द आत्मनिर्भर होना चाहते हैं। आत्मनिर्भर होने का मतलब अकेले रहना या किसी की जरूरत होना नहीं होता है। इसका मतलब होता है जिम्मेदारी के साथ अपना ध्यान रखना- समय पर अपना
काम करना, अपने बिल भरना, समय मैनेज करते हुए निर्णय लेना। एक स्टडी में यह बात सामने आई है कि जब बात कॅरिअर या पढ़ाई की आती है, तो 54 फीसदी छात्रों के निर्णय अभिभावकों से प्रभावित होते हैं। नई पीढ़ी के युवाओं की हर काम खुद से करने की आदत के लिए यह जरूरी है कि वे आत्मनिर्भर बनें। आत्मनिर्भर आपको सशक्त बनाता है और इससे आगे बढ़ने के लिए आत्मविश्वास मिलता है। आइए जानते हैं कि आत्मनिर्भर होने के क्या मायने हैं और इस तरफ कैसे काम किया जा सकता है।
आर्थिक रूप से सक्षम होना: एक छात्र के तौर पर यह मुमकिन नहीं होता कि आप आर्थिक रूप से पूरी तरह आत्मनिर्भर हो सकें हालांकि ऐसे तरीके हैं, जिनकी मदद से आप इस ओर बढ़ सकते हैं। पेड इंटर्नशिप इसका एक रास्ता हो सकता है। इसकी मदद से आपको जिम्मेदारी की समझ होगी। साथ ही आर्थिक मदद भी मिलेगी। आप पॉकेट मनी के लिए पैरेंट्स पर निर्भर नहीं रहेंगे। इससे आपका बोझ कुछ हद तक कम होगा। साथ ही अपनी कड़ी मेहनत से कमाए हुए पैसों को आप समझदारी से खर्च करना भी सीखेंगे। इससे आप एक फुल टाइम जॉब की ओर भी बढ़ेंगे, जिसके बाद आर्थिक निर्णयों के लिए आपको किसी पर निर्भर रहने की जरूरत नहीं होगी।
भावनात्मक रूप से आत्मनिर्भर: हम इमोशनल सपोर्ट के लिए अपने अभिभावकों और दोस्तों पर निर्भर होते हैं। कई बार लोग अपनी इमोशनल और मेंटल हेल्थ को बेहतर बनाने के लिए मनोवैज्ञानिक की भी सलाह लेते हैं। जब हम बड़े हो रहे होते हैं, तो हो सकता है कि हमें कई बातों के लिए माता-पिता से सलाह लेनी पड़े। हालांकि कई बार यह मुश्किल होता है, लेकिन भावनात्मक मौकों पर साथ में रहने से मजबूती मिलती है और आप मजबूत होते हैं। ऐसे मौकों पर खुद को मजबूत बनाए रखना, भावनात्मक रूप से आत्मनिर्भर होने की दिशा में एक कदम होता है।
खुद से चुनाव करने में सक्षम: आप वास्तविक रूप से आत्मनिर्भर तभी हो पाएंगे जबकि निर्णय खुद कर सकेंगे और यह किसी और के द्वारा कही गई बातों से प्रभावित नहीं होगा। अपने बड़ों या परिवारजनों से सलाह लेनी चाहिए, लेकिन याद रहे कि निर्णय आपका ही हो। बात की गंभीरता को परखते हुए अच्छे और बुरे पहलुओं पर विचार कर लेना चाहिए। इसके बाद ही निर्णय लेना चाहिए।
आईआईएम बेंगलुरु की रिसर्च के अनुसार विदेश जाने वाले भारतीयों छात्रों की संख्या बढ़ी है, जो उन्हें कंफर्ट जोन से बाहर निकलने में मदद कर रहा है। 2002 से 2012 के दौरान विदेश जाने वाले भारतीय छात्रों की संख्या में 256 फीसदी का इजाफा हुआ है। अभिभावक भी अपने बच्चों को आगे बढ़ने और आत्मनिर्भर बनने के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं।