इस वर्ष जनवरी में जारी हुई असर की रिपोर्ट के अनुसार स्कूल में उपस्थित रहने वाले छात्रों का अनुपात अपर प्राइमरी स्तर पर करीब 4 फीसदी तक कम हो गया। 2009 में प्राइमरी स्तर पर 74.3 फीसदी और अपर प्राइमरी
स्तर पर 77 फीसदी छात्र स्कूल में उपस्थित रहते थे, जो 2016 में घटकर क्रमश: 71.4 फीसदी और 73.2 फीसदी हो गए। वहीं इसमें यह बात भी सामने आई थी, पांचवीं कक्षा के छात्रों को दूसरी कक्षा के गणित के सवाल हल करने नहीं आते हैं। यह दर्शाते हैं कि स्कूली शिक्षा में गैप किस हद तक बढ़ गया है और इसके लिए शिक्षकों का ट्रेंड होना भी एक बड़ा कारण है।
ट्रेनिंग के लिए कुल 15 लाख प्राइमरी और अपर प्राइमरी शिक्षकों ने किया आवेदन: मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने पहली से आठवीं कक्षा तक पढ़ाने वाले शिक्षकों को निर्देश दिया था कि जिन शिक्षकों ने टीचर ट्रेनिंग कोर्स नहीं किया है उनके पास यह कोर्स करने के लिए दो वर्ष का समय है। इसके लिए मंत्रालय द्वारा कोर्स शुरू किया गया है, जिसमें आवेदन प्रक्रिया पूरी करने और पेमेंट करने की अंतिम तिथि 5 अक्टूबर थी। मंत्रालय द्वारा तैयार किए गए इस कोर्स में 15 लाख शिक्षकों ने प्रवेश के लिए आवेदन किया है। एक रिपोर्ट की मानें तो आवेदन करने वालों में 10 लाख (करीब 66%) से ज्यादा शिक्षक प्राइवेट स्कूलों के हैं। इस कोर्स का नाम डिप्लोमा इन एलीमेंट्री एजुकेशन है। हालांकि अभी भी यह स्पष्ट नहीं है कि देशभर में कुल कितने शिक्षक बिना ट्रेनिंग के हैं।
स्वयं के माध्यम से संचालित होगा कोर्स: यह कोर्स नेशनल इंस्टीट्यूट आॅफ ओपन स्कूलिंग (एनआईओएस) द्वारा डिजाइन तैयार किया गया है। हाल ही में जारी हुए स्वयं पोर्टल के माध्यम से यह कोर्स संचालित किया जाएगा। इसके अलावा डिश टीवी के माध्यम से भी शिक्षक यह कोर्स कर सकेंगे। वहीं शिक्षकों की समस्याओं को हल करने के लिए एक मोबाइल एप्लीकेशन भी डेवलप की गई है। इसमें आवेदकों को चार सेमेस्टर की पढ़ाई करनी होगी, जिसके अंतर्गत 1 हजार 80 लेक्चर होंगे। ये लेक्चर 10 भाषाओं में उपलब्ध कराए जाएंगे। यह कोर्स खासतौर पर देशभर के विभिन्न हिस्सों में पढ़ा रहे प्राइमरी और अपर प्राइमरी स्कूल के शिक्षकों को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है।
बिल में संशोधन कर बढ़ाई गई थी समयसीमा: इस वर्ष एक अगस्त को राज्यसभा द्वारा नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार संशोधन बिल पास किया गया था। जिसके तहत शिक्षकों के लिएजरूरी योग्यता हासिल करने की समयसीमा चार वर्ष बढ़ाई गई थी। पहले बिल मंे शिक्षकों के लिए अनिवार्य ट्रेनिंग की समयसीमा 31 मार्च, 2015 तक थी, जो अब बिल में संशोधन के बाद 31 मार्च, 2019 तक हो गई है।
बिहार से मिले सबसे ज्यादा अावेदन: एक रिपोर्ट के अनुसार इस कोर्स के लिए अावदेन करने वालों में बिहार के शिक्षकों की संख्या सबसे ज्यादा है। इसके बाद उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, पश्चिम बंगाल और असम के शिक्षकों ने इस कोर्स के लिए सबसे ज्यादा आवेदन किए हैं। इसके अनुसार बिहार से 1.95 लाख, मध्यप्रदेश से 1.91 लाख और पश्चिम बंगाल से 1.69 लाख शिक्षकों ने इस टीचर ट्रेनिंग कोर्स के लिए आवेदन किया है। गौरतलब है कि विभिन्न रिपोर्ट में यह बात सामने चुकी है इन राज्यों में प्राइमरी और अपर प्राइमरी शिक्षा की हालत सबसे खराब है। वहीं इन राज्यों मंे ही स्कूल ड्रॉप आउट की समस्या भी सबसे ज्यादा है।
ट्रेंड शिक्षकों की कमी स्कूलों में बड़ी समस्या: इस वर्ष जनवरी में जारी हुई असर की रिपोर्ट के अनुसार स्कूल में उपस्थित रहने वाले छात्रों का अनुपात अपर प्राइमरी स्तर पर करीब 4 फीसदी तक कम हो गया। 2009 में प्राइमरी स्तर पर 74.3 फीसदी और अपर प्राइमरी स्तर पर 77 फीसदी छात्र स्कूल में उपस्थित रहते थे, जो 2016 में घटकर क्रमश: 71.4 फीसदी और 73.2 फीसदी हो गए। वहीं इसमें यह बात भी सामने आई थी, पांचवीं कक्षा के छात्रों को दूसरी कक्षा के गणित के सवाल हल करने नहीं आते हैं। यह दर्शाते हैं कि स्कूली शिक्षा में गैप किस हद तक बढ़ गया है और इसके लिए शिक्षकों का ट्रेंड होना भी एक बड़ा कारण है।