एन. रघुरामन (मैनेजमेंटगुरु)
दीपक उनकी पत्नी मीनाक्षी अपनी दो बेटियों के साथ चारधाम की तीर्थयात्रा पर थे, जब उनकी 6 वर्षीय बेटी काजल ने चलने से इनकार कर दिया। फिर दीपक ने वादा किया गया कि दिल्ली लौटने पर वे उसे देश के एकमात्र डॉल म्यूज़ियम में ले जाएंगे। वे रविवार को दिल्ली आए और वे सोमवार को डॉल म्यूज़ियम जाने वाले थे पर उन्हें यह मालूम नहीं था कि दिल्ली में सारे म्यूज़ियम सोमवार को बंद रहते हैं। काजल दुखी हो गई। दीपक ऊहापोह में थे, क्योंकि राजकोट लौटने के लिए सोमवार शाम की ट्रेन का टिकट बुक था। बेटी को मनाने के लिए उन्होंने कहा कि वे उसके लिए घर पर जल्दी ही डॉल म्यूज़ियम बना देंगे। यह सुनकर उसकी आंखें चमक उठीं। उसे विश्वास नहीं हुआ और उसने पूछा, 'सच में पापा?' पिता ने बिना पलक झपकाए कहा, 'हां बेटी, तुम्हारे लिए मैं कुछ भी कर सकता हूं।' काजल ने दौड़कर पिता को गले लगा लिया।
राजकोट पहुंचकर रोज का रूटीन शुरू हो गया, जो आमतौर पर सोने से पहले बच्चों को कहानियां सुनाने पर खत्म होता। एक हफ्ता ऐसे ही गुजरने के बाद एक रात काजल ने पिताजी से पूछा कि डॉल म्यूज़ियम का अपना वादा वे कब पूरा करेंगे। दीपक तो सन्न रह गए, क्योंकि उन्होंने सोचा था कि बच्ची भूल गई है लेकिन, यह तो उसके दिमाग में पत्थर की लकीर की तरह मौजूद है। वे नहीं जानते थे कि इसे वे कैसे करेंगे।
चूंकि वे रोटरी क्लब के सदस्य हैं और क्लब पूरी दुनिया में फैला है तो उन्हें सोचा कि पत्र लिखकर मैं सदस्यों से मदद मांगकर देखता हूं। पहली बार में 12 पत्र भेजे गए, जिसमें एक पिता ने यह बताते हुए दिल उड़ेल दिया कि कैसे वे अपनी बेटी के लिए डॉल्स म्यूज़ियम बनाना चाहते हैं। उस पत्र में भावनाएं थीं, समर्पण था और थी कुछ नया करने की मजबूत इच्छाशक्ति। केवल तीन जवाब पाकर दीपक निराश हो गए लेकिन, एक िमत्र ने उन्हें प्रोत्साहित किया कि किसी को जाने बिना की गई अपील पर 33 फीसदी रिस्पॉन्स को सेल्स जगत में बेस्ट माना जाता है। फिर उन्होंने दुनियाभर में फैले सभी रोटेरियन्स को पत्र लिखने शुरू किए और गुड़ियाएं राजकोट पहुंचने लगीं।
किसान, नृत्यांगनाओं, राजा, रानी, कैसोनोवा, वायलिन वादक, परियां जाने किस-किस रूप में सारे सात महाद्वीपों के 108 देशों से गुड़ियाएं आने लगीं। जब संख्या 800 तक पहुंच गई तो सिर्फ उनका बल्कि पड़ोसी का घर भी छोटा पड़ने लगा। तब राजकोट नागरिक सहकारी बैंक ने शहर के केंद्र में स्थित अपने परिसर के ऊपर के पूरे दो माले 1 रुपए प्रतिमाह किराये पर दे दिए।
और इस तरह रोटरी डॉल्स म्यूज़ियम ने आकार लिया, जो भारत में दूसरा था। 2004 में तब के उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने इसका उद्घाटन किया और लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स ने गुिड़याओं के अनोखे संग्रह और व्यक्तिगत प्रयासों से इसे स्थापित करने के कारण इसे मान्यता दी। आज यह ऐसी जगह है, जहां जाना कई लोग अनिवार्य समझते हैं।
फंडा यह है कि जबपिता अपने बच्चों के लिए हीरो जैसा कोई काम करते हैं, तो इससे पूरे समाज को फायदा होता है।
साभार: भास्कर समाचार
कई बरसों तक एेसे अभिभावकों के लिए, जो अपने बच्चों को इस सुंदर दुनिया और इसकी सभ्यताओं के बारे में
कुछ सिखाने की जिज्ञासा रखते थे, दिल्ली स्थित शंकर्स इंटरनेशल डॉल्स म्यूज़ियम की यात्रा अनिवार्य थी। इसमें 60 हजार से ज्यादा गुड़ियाएं हैं, जो दुनिया के सबसे बड़े संग्रहों में से है। यह संग्रह अक्षरश: युवा मन के लिए एक नई दुनिया ही खोल देता है। ठीक यही राजकोट के दीपक अग्रवाल 2000 में अपनी बेटी के लिए करना चाहते थे, जब उसने केदारनाथ तक चलकर जाने से इनकार कर दिया था, क्योंकि यह खड़ी चढ़ाई थी। दीपक उनकी पत्नी मीनाक्षी अपनी दो बेटियों के साथ चारधाम की तीर्थयात्रा पर थे, जब उनकी 6 वर्षीय बेटी काजल ने चलने से इनकार कर दिया। फिर दीपक ने वादा किया गया कि दिल्ली लौटने पर वे उसे देश के एकमात्र डॉल म्यूज़ियम में ले जाएंगे। वे रविवार को दिल्ली आए और वे सोमवार को डॉल म्यूज़ियम जाने वाले थे पर उन्हें यह मालूम नहीं था कि दिल्ली में सारे म्यूज़ियम सोमवार को बंद रहते हैं। काजल दुखी हो गई। दीपक ऊहापोह में थे, क्योंकि राजकोट लौटने के लिए सोमवार शाम की ट्रेन का टिकट बुक था। बेटी को मनाने के लिए उन्होंने कहा कि वे उसके लिए घर पर जल्दी ही डॉल म्यूज़ियम बना देंगे। यह सुनकर उसकी आंखें चमक उठीं। उसे विश्वास नहीं हुआ और उसने पूछा, 'सच में पापा?' पिता ने बिना पलक झपकाए कहा, 'हां बेटी, तुम्हारे लिए मैं कुछ भी कर सकता हूं।' काजल ने दौड़कर पिता को गले लगा लिया।
राजकोट पहुंचकर रोज का रूटीन शुरू हो गया, जो आमतौर पर सोने से पहले बच्चों को कहानियां सुनाने पर खत्म होता। एक हफ्ता ऐसे ही गुजरने के बाद एक रात काजल ने पिताजी से पूछा कि डॉल म्यूज़ियम का अपना वादा वे कब पूरा करेंगे। दीपक तो सन्न रह गए, क्योंकि उन्होंने सोचा था कि बच्ची भूल गई है लेकिन, यह तो उसके दिमाग में पत्थर की लकीर की तरह मौजूद है। वे नहीं जानते थे कि इसे वे कैसे करेंगे।
चूंकि वे रोटरी क्लब के सदस्य हैं और क्लब पूरी दुनिया में फैला है तो उन्हें सोचा कि पत्र लिखकर मैं सदस्यों से मदद मांगकर देखता हूं। पहली बार में 12 पत्र भेजे गए, जिसमें एक पिता ने यह बताते हुए दिल उड़ेल दिया कि कैसे वे अपनी बेटी के लिए डॉल्स म्यूज़ियम बनाना चाहते हैं। उस पत्र में भावनाएं थीं, समर्पण था और थी कुछ नया करने की मजबूत इच्छाशक्ति। केवल तीन जवाब पाकर दीपक निराश हो गए लेकिन, एक िमत्र ने उन्हें प्रोत्साहित किया कि किसी को जाने बिना की गई अपील पर 33 फीसदी रिस्पॉन्स को सेल्स जगत में बेस्ट माना जाता है। फिर उन्होंने दुनियाभर में फैले सभी रोटेरियन्स को पत्र लिखने शुरू किए और गुड़ियाएं राजकोट पहुंचने लगीं।
किसान, नृत्यांगनाओं, राजा, रानी, कैसोनोवा, वायलिन वादक, परियां जाने किस-किस रूप में सारे सात महाद्वीपों के 108 देशों से गुड़ियाएं आने लगीं। जब संख्या 800 तक पहुंच गई तो सिर्फ उनका बल्कि पड़ोसी का घर भी छोटा पड़ने लगा। तब राजकोट नागरिक सहकारी बैंक ने शहर के केंद्र में स्थित अपने परिसर के ऊपर के पूरे दो माले 1 रुपए प्रतिमाह किराये पर दे दिए।
और इस तरह रोटरी डॉल्स म्यूज़ियम ने आकार लिया, जो भारत में दूसरा था। 2004 में तब के उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने इसका उद्घाटन किया और लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स ने गुिड़याओं के अनोखे संग्रह और व्यक्तिगत प्रयासों से इसे स्थापित करने के कारण इसे मान्यता दी। आज यह ऐसी जगह है, जहां जाना कई लोग अनिवार्य समझते हैं।
फंडा यह है कि जबपिता अपने बच्चों के लिए हीरो जैसा कोई काम करते हैं, तो इससे पूरे समाज को फायदा होता है।