साभार: जागरण समाचार
1997 में कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष सीताराम केसरी ने प्रधानमंत्री बनने की अपनी महत्वाकांक्षा पूरी करने के लिए आइके गुजराल सरकार को गिराया था। पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने अपनी नई किताब ‘कोलिएशन
ईयर्स : 1996-2012’ में यह रहस्योद्घाटन किया है।
मुखर्जी ने किताब में लिखा है, ‘आखिर कांग्रेस ने समर्थन वापस क्यों लिया? केसरी के बार-बार यह कहने का मतलब क्या था कि मेरे पास वक्त नहीं है?’ कई कांग्रेस नेताओं ने इसका आशय उनकी प्रधानमंत्री बनने की महत्वाकांक्षा बताया था। केसरी ने भाजपा विरोधी भावनाओं का फायदा उठाने की कोशिश की। उनका उद्देश्य गैर भाजपा सरकार के नेता के तौर पर खुद को पेश करना था। केसरी ने मंत्रिमंडल से द्रमुक को हटाने की मांग को लेकर गुजराल के नेतृत्व वाली संयुक्त मोर्चा सरकार से समर्थन वापस लिया था। कांग्रेस ने राजीव गांधी की हत्या की जांच करने वाले जैन कमीशन की अंतरिम रिपोर्ट के बाद गुजराल सरकार से समर्थन वापस लेने की मांग की। अगस्त 1997 में प्रस्तुत अपनी अंतरिम रिपोर्ट में जैन कमीशन ने कहा था कि द्रमुक और इसका नेतृत्व लिट्टे प्रमुख वी. प्रभाकरन और उसके समर्थकों को बढ़ावा देने में शामिल था। हालांकि, साजिश में किसी नेता या किसी राजनीतिक दल के शामिल होने की बात नहीं कही गई थी। कांग्रेस गुजराल सरकार को बाहर से समर्थन दे रही थी।
मुखर्जी ने लिखा है कि 1997 में संसद के शीतकालीन सत्र के दौरान इस संकट को दूर करने के प्रयास में कई बैठकें हुईं। प्रधानमंत्री गुजराल ने केसरी, मुखर्जी, जितेंद्र प्रसाद, अजरुन सिंह और शरद पवार समेत अन्य कांग्रेस नेताओं को अपने निवास पर रात्रिभोज पर बुलाया। इस दौरान गुजराल ने कहा कि द्रमुक के किसी नेता के इसमें शामिल होने का सीधा प्रमाण नहीं है। ऐसी स्थिति में द्रमुक के खिलाफ कार्रवाई से गलत संदेश जाएगा और साथ ही एक पार्टी के दबाव में करने वाली सरकार माना जाएगा।