साभार: जागरण समाचार
रोहिंग्या मुसलमानों को म्यांमार वापस भेजने के मुद्दे पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि ये एक मानवीय मुद्दा है लेकिन राष्ट्रीय सुरक्षा भी महत्वपूर्ण है। उसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने
कहा कि संविधान मानवीय मूल्यों के सिद्धांत पर आधारित है लेकिन इस मामले में आर्थिक, भौगोलिक और श्रमिक हितों का भी ध्यान रखना होगा। सरकार को राष्ट्र के हितों और मानवाधिकारों के बीच संतुलन बनाए रखने में एक बड़ी भूमिका निभानी होगी।
मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्र की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने दो रोहिंग्याओं को म्यांमार वापस भेजने की याचिका पर सुनवाई के दौरान ये टिप्पणियां कीं। पीठ ने मामले को नियमित सुनवाई के लिए 21 नवंबर की तिथि तय करते हुए शुरुआत में सरकार को सुझाव दिया कि तब तक वह रोहिंग्याओं को वापस नहीं भेजेगी लेकिन केंद्र सरकार की पैरोकारी कर रहे एएसजी तुषार मेहता ने आदेश में इन लाइनों को न शामिल करने का अनुरोध किया। मेहता ने कहा कि सरकार के अंतरराष्ट्रीय दायित्व हैं। कोर्ट को ये बात आदेश में नहीं दर्ज करनी चाहिए। इसकी कोई जरूरत भी नहीं है। सरकार कोर्ट का मंतव्य समझती है। इस पर पीठ ने कहा कि भले ही वे आदेश में ये बात न कहें लेकिन फिर भी इतना तो आदेश में लिख सकते हैं कि मामला लंबित है। मेहता ने इसे भी आदेश में दर्ज करने का विरोध किया। उन्होंने कहा कि ये बात सभी पक्षों को पता है तो फिर आदेश में लिखाने की क्या जरूरत है। इस पर पीठ ने आदेश में लिखाना चाहा कि सरकार इस बीच कोई आपात स्थिति नहीं पैदा करेगी परंतु मेहता ने इसका भी विरोध किया और अंत में कोर्ट ने रोहिंग्या की ओर से बहस कर रहे वरिष्ठ वकील फली नारिमन को संबोधित करते हुए आदेश में लिखाया कि अगर कोई आपात स्थिति आती है तो वे कोर्ट के समक्ष आकर मामले का जिक्र कर सकते हैं। रोहिंग्या के मुद्दे पर सरकार की शुरू से दलील है कि ये सरकार का नीतिगत मामला है इसमें कोर्ट को दखल नहीं देना चाहिए।