साभार: जागरण समाचार
धार्मिक आजादी के अधिकार और महिलाओं के साथ लिंग आधारित भेदभाव के मौलिक अधिकारों की रस्साकसी के अहम कानूनी मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ विचार करेगी। शुक्रवार को मुख्य न्यायाधीश
दीपक मिश्र की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की पीठ ने केरल के सबरीमाला मंदिर में 10 से 50 वर्ष की महिलाओं के प्रवेश पर रोक का मामला संविधान पीठ को भेज दिया।
संविधान पीठ के सामने विचार के लिए कई प्रश्न भेजे गए हैं। लेकिन, जोर इस पर होगा कि धार्मिक संस्थाओं को धार्मिक रीति-रिवाज और प्रबंधन की आजादी ऊपर है या किसी व्यक्ति का धार्मिक विश्वास और पूजा-पाठ की आजादी। इस पर भी विचार होगा कि धार्मिक संस्था होने का दावा कर रहा भगवान अयप्पा का सबरीमाला मंदिर क्या महिलाओं का प्रवेश रोक सकता है? सुप्रीम कोर्ट में 2006 से इंडियन यंग लायर्स एसोसिएशन की याचिका लंबित है।
इस केस का एक रोचक तथ्य यह भी है कि 11 वर्ष मामला लंबित रहने के दौरान केरल सरकार ने दो बार अपना रुख बदला। एक बार याचिका का विरोध करते हुए कहा कि भगवान अयप्पा ब्रrाचारी और तपस्या में लीन हैं।