एन. रघुरामन (मैनेजमेंटगुरु)
वर्ष 2014 उनकी परीक्षा का पहला साल था। बड़ी बेटी श्वेता ने स्कूल की फाइनल एग्ज़ाम में 82 फीसदी अंक हासिल किए और उसे एमबीबीएस कोर्स के लिए परीक्षा देने की पात्रता नहीं मिली। उसने घर पर रहकर लगातार पढ़ाई कर 2015 की सीईटी में 11,200वीं रैंक हासिल की लेकिन, फिर भी किसी मेडिकल कॉलेज में सीट मिलने की गुंजाइश नहीं थी। उसने फिर प्रयास करने का निश्चय किया। 2016 में स्कूल की फाइनल एग्ज़ाम में 91 फीसदी अंक लाने वाली स्वाति के साथ परीक्षा दी और 5,200वीं रैंक हासिल की, जबकि स्वाति को 6,800वीं रैंक मिली। ये स्कोर भी पिता का वह सपना पूरा करने के आसपास भी नहीं थे, जो अब तक उनका सपना बन गया था। कुछ भी उनके पक्ष में नहीं हो रहा था। लेकिन, परिवार के रूप में उन्होंने ठान ली कि वे हार नहीं मानेंगे। वर्ष 2016 में सरकार ने नियम बनाया कि सारी प्रवेश परीक्षाएं एनईईटी के तहत होंगी। परिवार को चिंता होने लगी कि यदि वे एनईईटी में नाकाम रहीं तो भविष्य में सिविल सेवा की परीक्षा कैसे दे पाएंगी, जो उन बहनों के लिए कॅरिअर को दूसरा विकल्प था। तीनों ने ट्रेनिंग के लिए एक प्राइवेट इंस्टिट्यूट में मॉक टेस्ट के लिए रजिस्ट्रेशन करा लिया, जिसमें आगामी एनईईटी परीक्षा के लिए उन्हें तैयार किया जाना था।
2017 में हुई एनईईटी में श्वेता, स्वाति और श्रुति ने क्रमश: 1216, 1413 और 750वीं रैंक हासिल की। चूंकि वे कर्नाटक के बेल्लारी की थीं तो तीन साथ में ही विजयनगर इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेस की एक ही बैच में उनका प्रवेश हो गया। चूंकि तीनों का नाम 'एस' से शुरू होता है, इसलिए सिर्फ उन्हें एक ही इंस्टीट्यूट में बल्कि एक सेक्शन की एक ही कतार में सीट मिली।
लंबे समय तक किसी को पता नहीं था कि वे तीनों बहनें हैं। कॉलेज के लिए यह नई बात थी कि तीन बहनें साथ पढ़कर समान लक्ष्य के लिए मेहनत कर रही हों। जहां श्वेता और स्वाति मेडिसिन में उच्च शिक्षा का ध्येय रखकर कार्डिएक सर्जन बनना चाहती हैं, कराते में ब्लैक बेल्ट अर्जित करने वाली श्रुति बाद में सिविल सेवा में जाकर जमीनी स्तर पर ग्रामीणों की मदद करना चाहती है। आज वे किताबों सहित जो भी शेयर कर सकती हैं, करती हैं ताकि पैसा बचाया जा सके। उनके अपने परिवार और वृहत्तर परिवार में उनके बड़े सपने का जो भी मजाक उड़ाया करते थे, अब एक बात जानते हैं। यह केवल वक्त की बात है जब शंकर के परिवार पर सौभाग्य वर्षा होने लगेगी।
फंडा यह है कि इसपुरानी कहावत का इससे अच्छा उदाहरण क्या हो सकता है कि, 'जब आप सपने देखें, तो बड़े सपने देखें।'
साभार: भास्कर समाचार
शंकर पिछड़े वर्ग के थे। अपने कॅरिअर में उनका सपना डॉक्टर बनने का था लेकिन, वे हाउस नर्स बन गए और निजी रूप से प्रैक्टिस करने लगे। उनके पिताजी बचत को लेकर बहुत जागरूक थे लेकिन, पैसा ही वह मुख्य
कारण था, जिसके कारण डॉक्टर बनने का उनका सपना अधूरा रह गया। किंतु, ज़िंदगी आगे बढ़ी। वे रोगियों की सेवा-सुश्रुषा करने लगे। वे रिश्तेदारों की पीठ पीछे की गई इस आलोचना के भी शिकार हुए कि वे ज़िंदगी में कुछ हासिल नहीं कर पाए। उन्होंने निर्मला से शादी की और तीन बेटियों श्वेता, स्वाति और श्रुति के पिता बन गए। उनका सपना बरकरार था और एक नहीं बल्कि तीनों बच्चों को मेडिकल प्रोफेशनल के रूप में देखने की आकांक्षा रखने लगे। चूंकि वे शिक्षा की कीमत जानते थे, इसलिए बेटियों को सर्वश्रेष्ठ शिक्षा देना चाहते थे। इसके लिए वे कड़ी मेहनत करने लगे। नर्सिंग के पेशे से शंकर को ज्यादा पैसा नहीं मिलता था लेकिन, उन्होंने अपनी नियमित प्रैक्टिस के साथ गंभीर रोगियों की देखभाल चुनी ताकि उसमें अधिक पैसा ही नहीं मिले बल्कि अतिरिक्त आय भी हो सके। वर्ष 2014 उनकी परीक्षा का पहला साल था। बड़ी बेटी श्वेता ने स्कूल की फाइनल एग्ज़ाम में 82 फीसदी अंक हासिल किए और उसे एमबीबीएस कोर्स के लिए परीक्षा देने की पात्रता नहीं मिली। उसने घर पर रहकर लगातार पढ़ाई कर 2015 की सीईटी में 11,200वीं रैंक हासिल की लेकिन, फिर भी किसी मेडिकल कॉलेज में सीट मिलने की गुंजाइश नहीं थी। उसने फिर प्रयास करने का निश्चय किया। 2016 में स्कूल की फाइनल एग्ज़ाम में 91 फीसदी अंक लाने वाली स्वाति के साथ परीक्षा दी और 5,200वीं रैंक हासिल की, जबकि स्वाति को 6,800वीं रैंक मिली। ये स्कोर भी पिता का वह सपना पूरा करने के आसपास भी नहीं थे, जो अब तक उनका सपना बन गया था। कुछ भी उनके पक्ष में नहीं हो रहा था। लेकिन, परिवार के रूप में उन्होंने ठान ली कि वे हार नहीं मानेंगे। वर्ष 2016 में सरकार ने नियम बनाया कि सारी प्रवेश परीक्षाएं एनईईटी के तहत होंगी। परिवार को चिंता होने लगी कि यदि वे एनईईटी में नाकाम रहीं तो भविष्य में सिविल सेवा की परीक्षा कैसे दे पाएंगी, जो उन बहनों के लिए कॅरिअर को दूसरा विकल्प था। तीनों ने ट्रेनिंग के लिए एक प्राइवेट इंस्टिट्यूट में मॉक टेस्ट के लिए रजिस्ट्रेशन करा लिया, जिसमें आगामी एनईईटी परीक्षा के लिए उन्हें तैयार किया जाना था।
2017 में हुई एनईईटी में श्वेता, स्वाति और श्रुति ने क्रमश: 1216, 1413 और 750वीं रैंक हासिल की। चूंकि वे कर्नाटक के बेल्लारी की थीं तो तीन साथ में ही विजयनगर इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेस की एक ही बैच में उनका प्रवेश हो गया। चूंकि तीनों का नाम 'एस' से शुरू होता है, इसलिए सिर्फ उन्हें एक ही इंस्टीट्यूट में बल्कि एक सेक्शन की एक ही कतार में सीट मिली।
लंबे समय तक किसी को पता नहीं था कि वे तीनों बहनें हैं। कॉलेज के लिए यह नई बात थी कि तीन बहनें साथ पढ़कर समान लक्ष्य के लिए मेहनत कर रही हों। जहां श्वेता और स्वाति मेडिसिन में उच्च शिक्षा का ध्येय रखकर कार्डिएक सर्जन बनना चाहती हैं, कराते में ब्लैक बेल्ट अर्जित करने वाली श्रुति बाद में सिविल सेवा में जाकर जमीनी स्तर पर ग्रामीणों की मदद करना चाहती है। आज वे किताबों सहित जो भी शेयर कर सकती हैं, करती हैं ताकि पैसा बचाया जा सके। उनके अपने परिवार और वृहत्तर परिवार में उनके बड़े सपने का जो भी मजाक उड़ाया करते थे, अब एक बात जानते हैं। यह केवल वक्त की बात है जब शंकर के परिवार पर सौभाग्य वर्षा होने लगेगी।
फंडा यह है कि इसपुरानी कहावत का इससे अच्छा उदाहरण क्या हो सकता है कि, 'जब आप सपने देखें, तो बड़े सपने देखें।'