एन. रघुरामन (मैनेजमेंट गुरु)
साभार: भास्कर समाचार
'यदि आप स्मार्ट हैं तो आपको वह चीज दिखती है, जो जोखिमभरी है और ठीक आपके सामने मौजूद है। और इसी प्रकार मैं निवेश करता हूं।' यह कहना है बिल गेट्स का, जिन्होंने दुनिया की सर्वाधिक घातक पर सबसे
आम बीमारियों मलेरिया, टीबी और एचआईवी में निवेश किया है। उनके प्रयासों ने शिशु मृत्यु दर, मातृ मृत्यु दर व ऐसी ही बीमारियों व भूख के प्रकोप को कम किया है। गेट्स से प्रेरणा लेकर नई पीढ़ी के कुछ लोगों ने मानव प्रजाति के लिए उन महत्वपूूर्ण क्षेत्रों को चिह्नित करना शुरू कर दिया है। यहां कुछ ऐसे क्षेत्रों की चर्चा :
बिजली का मुद्दा: दो वर्ष पहले आदित्य भट्ट 10वीं कक्षा में था और उसने एक ऐसे जनरेटर का आविष्कार किया जो वायुमंडल में मौजूद कॉस्मिक किरणों को बिजली में बदलता है। आज जब उसके सहपाठी 12वीं की बोर्ड परीक्षा और कॅरिअर की चर्चा करते हैं, वह और उसका दोस्त प्रियव्रत राठौर जनरेटर को अगले स्तर पर ले जाने पर काम कर रहे हैं ताकि बिजली का व्यापक उत्पादन संभव हो सके। जहां उसका पहले वाला वर्जन एक बल्ब रोशन करता था या मोबाइल फोन चार्ज करता था वहीं नया जनरेटर स्ट्रीट लाइट के लिए बिजली मुुहैया करा सकता है। उनका यह डिवाइस 2 गुणित 4 फीट के एंटीना का इस्तेमाल करके वायुमंडल की कॉस्मिक किरणों से ऊर्जा इकट्ठी करता है। कॉस्मिक किरणें डायरेक्ट करंट में बदल जाती हैं, जिससे बिजली के उपकरण चलते हैं। यह बिजली सौर ऊर्जा से 45 फीसदी एफिशिएंट और 10 गुना सस्ती है। उन्होंने जनरेटर के पांच प्रोटोटाइप बनाए हैं और उन्हें प्राथमिक परीक्षण के लिए उत्तर प्रदेश भेजा है।
न सिर्फ इन दो वर्षों में भट्ट ने एएमबी इंडस्ट्रीज इन्कॉर्पोरेशन नामक स्टार्टअप स्थापित की है, जो अमेरिका के कैलिफोर्निया स्थित पैलो अल्टो में रजिस्टर्ड है बल्कि भारत में इसकी तीन सहायक कंपनियां अहमदाबाद, बेंगलुरू और मुंबई में भी हैं। उनकी कंपनी पहले से ही डीआईवाई टेसला कॉइल किट बेच रही है, जो 10 वर्ष से ऊपर की उम्र का कोई भी व्यक्ति असेंबल कर बल्ब रोशन कर सकता है या फोन चार्ज कर सकता है।
भट्ट को 2016 में फेलोशिप मिली, जिसके लिए कैलिफोर्निया में आयोजित मेकर्स फेस्ट में आशा जडेजा मोटवानी ने फंडिंग की थी। इसी के तहत भट्ट और राठौर अपना आविष्कार दिखाने सिलिकॉन वैली गए थे। राठौर ने जनरेटर में इस्तेमाल की गई टेसला कॉइल की कैसिंग डिज़ाइन करने में मदद की थी। बाद में उन्होंने 50 हजार डॉलर का सीड फंड हासिल किया, इससे उन्हें रिसर्च और डिज़ाइन में मदद मिली। दोनों गुजरात यूनिवर्सिटी स्टार्टअप एंड आंत्रप्रेन्योरशिप काउंसिल (जीयूएसईसी) के पहले ऐसे इनक्यूबेटी बने हैं, जो स्कूली छात्र हैं। जीयूएसईसी से मिलने वाली वित्तीय मदद से ही व्यापक उत्पादन का उनका सपना साकार होगा। उन्हें उम्मीद है कि उनके डिवाइस की लागत 3000 रुपए से अधिक नहीं होगी। उनका लक्ष्य 2019 तक 2000 डिवाइस बाजार में लाने का है।
पेजजल का मुद्दा: चेन्नई स्थित स्वतंत्र शोधकर्ता ने सौर ऊर्जा से संचालित ऐसा डिवाइस बनाकर आईआईएम-कलकत्ता में हुई राष्ट्रीय स्तर की शोध स्पर्धा जीती है, जो सीधे हवा से प्रतिघंटा एक लीटर पेयजल बना देता है। कुमार लोगानाथन ने यह प्रोडक्ट भू-जल के गिरते स्तर पर बढ़ती चिंता को ध्यान में रखकर बनाया है। उनके इस डिवाइस को हवा में वाष्प के रूप में मौजूद सिर्फ 2 फीसदी पानी भी काफी होता है। उपकरण कुछ इस तरह बनाया गया है कि यह मरुस्थल में भी हवा से पानी निकाल सकता है, जहां पर तुलनात्मक नमी सिर्फ 44 फीसदी होती है। उन क्षेत्रों में जहां सौर ऊर्जा उत्पन्न न की जाती हो, यह उपकरण सॉकेट में लगाया जा सकता है और 100 वॉट बिजली खर्च करता है, जो एक पंखे द्वारा इस्तेमाल करने वाली बिजली के बराबर है। उनके शोध-पत्र का दावा है कि इस डिवाइस से एक लीटर पानी बनाने में सिर्फ 84 पैसे खर्च आता है। इस प्रोजेक्ट को इस साल 6 जनवरी को आयोजित टाटा सोशल एंटरप्राइज चैलेंज 2017-18 के अंतिम दौर में चुने गए 205 प्रस्तावों में शामिल किया गया है।
फंडा यह है कि यदि आप वक्त, पैसा और प्रयास अपने सामने मौजूद मानव प्रजाति के लिए खतरा बन रहे मुद्दों पर लगाएं तो आप दुनिया बदलने की राह पर चल पड़ेंगे।
न सिर्फ इन दो वर्षों में भट्ट ने एएमबी इंडस्ट्रीज इन्कॉर्पोरेशन नामक स्टार्टअप स्थापित की है, जो अमेरिका के कैलिफोर्निया स्थित पैलो अल्टो में रजिस्टर्ड है बल्कि भारत में इसकी तीन सहायक कंपनियां अहमदाबाद, बेंगलुरू और मुंबई में भी हैं। उनकी कंपनी पहले से ही डीआईवाई टेसला कॉइल किट बेच रही है, जो 10 वर्ष से ऊपर की उम्र का कोई भी व्यक्ति असेंबल कर बल्ब रोशन कर सकता है या फोन चार्ज कर सकता है।
भट्ट को 2016 में फेलोशिप मिली, जिसके लिए कैलिफोर्निया में आयोजित मेकर्स फेस्ट में आशा जडेजा मोटवानी ने फंडिंग की थी। इसी के तहत भट्ट और राठौर अपना आविष्कार दिखाने सिलिकॉन वैली गए थे। राठौर ने जनरेटर में इस्तेमाल की गई टेसला कॉइल की कैसिंग डिज़ाइन करने में मदद की थी। बाद में उन्होंने 50 हजार डॉलर का सीड फंड हासिल किया, इससे उन्हें रिसर्च और डिज़ाइन में मदद मिली। दोनों गुजरात यूनिवर्सिटी स्टार्टअप एंड आंत्रप्रेन्योरशिप काउंसिल (जीयूएसईसी) के पहले ऐसे इनक्यूबेटी बने हैं, जो स्कूली छात्र हैं। जीयूएसईसी से मिलने वाली वित्तीय मदद से ही व्यापक उत्पादन का उनका सपना साकार होगा। उन्हें उम्मीद है कि उनके डिवाइस की लागत 3000 रुपए से अधिक नहीं होगी। उनका लक्ष्य 2019 तक 2000 डिवाइस बाजार में लाने का है।
पेजजल का मुद्दा: चेन्नई स्थित स्वतंत्र शोधकर्ता ने सौर ऊर्जा से संचालित ऐसा डिवाइस बनाकर आईआईएम-कलकत्ता में हुई राष्ट्रीय स्तर की शोध स्पर्धा जीती है, जो सीधे हवा से प्रतिघंटा एक लीटर पेयजल बना देता है। कुमार लोगानाथन ने यह प्रोडक्ट भू-जल के गिरते स्तर पर बढ़ती चिंता को ध्यान में रखकर बनाया है। उनके इस डिवाइस को हवा में वाष्प के रूप में मौजूद सिर्फ 2 फीसदी पानी भी काफी होता है। उपकरण कुछ इस तरह बनाया गया है कि यह मरुस्थल में भी हवा से पानी निकाल सकता है, जहां पर तुलनात्मक नमी सिर्फ 44 फीसदी होती है। उन क्षेत्रों में जहां सौर ऊर्जा उत्पन्न न की जाती हो, यह उपकरण सॉकेट में लगाया जा सकता है और 100 वॉट बिजली खर्च करता है, जो एक पंखे द्वारा इस्तेमाल करने वाली बिजली के बराबर है। उनके शोध-पत्र का दावा है कि इस डिवाइस से एक लीटर पानी बनाने में सिर्फ 84 पैसे खर्च आता है। इस प्रोजेक्ट को इस साल 6 जनवरी को आयोजित टाटा सोशल एंटरप्राइज चैलेंज 2017-18 के अंतिम दौर में चुने गए 205 प्रस्तावों में शामिल किया गया है।
फंडा यह है कि यदि आप वक्त, पैसा और प्रयास अपने सामने मौजूद मानव प्रजाति के लिए खतरा बन रहे मुद्दों पर लगाएं तो आप दुनिया बदलने की राह पर चल पड़ेंगे।