Friday, January 19, 2018

मैनेजमेंट: चैम्पियन हमेशा जीतते नहीं, गिरकर फिर चल पड़ते हैं

एन. रघुरामन (मैनेजमेंट गुरु)
साभार: भास्कर समाचार
स्टोरी 1: उनका एकमात्र जुनून है टीवी पर लड़ाकू विमानों को उड़ते, शत्रुओं पर बम बरसाते और बम धमाकों की आवाज करते देखना। लेकिन, कोई निश्चित रूप से नहीं कह सकता कि गैरेज मेकेनिक के बेटे इस लड़के के
12वीं में फेल होने का यह कारण है। 
लेकिन, अब 24 साल के मोहम्मद रियासत अली देश के लिए लड़ाकू विमान बनाना चाहते हैं। दूर की कौड़ी लगती है न? धनबाद के इस मोटर वाइंडर ने रिमोट कंट्रोल से संचालित लड़ाकू जेट मॉडल बना भी लिया है, जो 600 फीट की ऊंचाई पर आधे घंटे उड़ता है। उनके मॉडल ने सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ माइनिंग एंड फ्यूल रिसर्च के वैज्ञानिकों का ध्यान खींचा है और उन्होंने अली को संस्थान के डायरेक्टर प्रदीप कुमार सिंह के सामने अपना मॉडल प्रदर्शित करने के लिए आज आमंत्रित किया है। उनके 973 ग्राम के जेट विमान का प्रदर्शन देखकर वे उसमें किए कई मैकेनिकल बदलाव देखना चाहते हैं, जिसमें एक साल का वक्त और 50 हजार रुपए लगे। उन्होंने कुछ वाइंडिंग मॉडिफिकेशन करके प्रति मिनट रोटेशन को 2,300 से बढ़ाकर 4,500 कर लिया है। वे आज जहां हैं वहां तक पहुंचने के लिए उन्होंने कई मोटरें जलाई हैं। आज की मुलाकात का नतीजा जो भी हो लेकिन, 12वीं की परीक्षा पास न कर सकने वाले इस नौजवान ने निश्चित ही अपने कॅरिअर के एक्सीलरेटर पर पैर रख दिया है। 

स्टोरी 2: पुणे के मुक्तांगण रिहेबिलिटेशन सेंटर में वह शराब और मादक पदार्थ की लत और 'उसे फिर न स्वीकार करने वाले' समाज के प्रति रोष पर काबू पाने के लिए संघर्ष कर रहा था। जब उसके काउंसलर ने कहा कि वह अपना लक्ष्य तय करे और अपने गुस्से व हताशा को सही दिशा दे तो उसने व्यंग्य के साथ कहा कि उसके जैसा व्यक्ति जो शायद ही कभी अपने लिए कोई जॉब खोज सका हो, उसका कोई लक्ष्य नहीं हो सकता। ऐसा इसलिए था क्योंकि वह लोगों पर गोली चलाने के बाद हमेशा पुलिस से भागता रहता। 42 वर्षीय राहुल जादव को 'सत्या' फिल्म में मनोज बाजपेयी द्वारा निभाए किरदार के नाम पर 'भिखु' के नाम से भी जाना जाता है। राहुल एक हिटमैन था और उसके खिलाफ कई मामले चल रहे हैं, इसलिए वह पुलिस से भागता फिरता था। फिर उसने दौड़ना प्रारंभ कर अपनी ज़िंदगी का पुनर्निर्माण शुरू किया। 
उसके काउंसलर हबीबा जेठा ने पुणे में होने वाली 10 किलोमीटर की मैराथन में उसकी भागदारी की व्यवस्था की और उससे कहा कि यदि उसने पूरा ध्यान इस पर लगाया तो कामयाब होगा। उसने यह मैराथन 55 मिनट में खत्म कर ली और अपनी ज़िंदगी में पहली बार महसूस किया कि उसने कुछ हासिल किया है। इस तरह इसकी शुरुआत हुई। पिछले रविवार को मुंबई मैराथन में उसकी भागीदारी के पहले उसने 5 घंटे 50 मिनट में 63 किलोमीटर की दूरी तय की। मुंबई मैराथन के एक हफ्ते बाद वह मुंबई-पुणे दौड़ में भाग लेगा। यह तीन दिन की दौड़ है पर उसे भरोसा है कि वह इसे दो दिन में पूरी कर लेगा। फिलहाल राहुल छोटे-मोटे जॉब करके, लोगों का भरोसा जीतकर रिहैबिलिटेशन सेंटर के बाहर ज़िंदगी एडजस्ट करने में लगा है। अब वह छोटी चॉकलेट कंपनी का सेल्समैन है और यह नौकरी पाने के पहले उसने मालिकों के सामने अपनी पूरी ज़िंदगी खोलकर रख दी और आगाह किया कि पुलिस अब भी उसके पीछे आ सकती है। उसके बॉस ने लापरवाही से कंधे उचकाए और कहा कि वे कंपनी में जॉब कर सकता है। आज राहुल को लगता है कि वह नियमित कर्मचारियों में से एक है। 
फंडा यह है कि  विजेता चैम्पियन नहीं होते बल्कि वे होते हैं, जो नाकामी के बाद फिर खड़े होकर दौड़ने लगते हैं।