Sunday, January 21, 2018

तनाव, अकेलापन और सोशल मीडिया बना रहे बच्चों को हिंसक: यमुनानगर प्रिंसिपल हत्याकांड के सन्दर्भ में

साभार: जागरण समाचार 
एक दौर था जब बच्चों के झगड़ों को गंभीरता से नहीं लिया जाता था। यही कहा जाता था कि बच्चों की बातों का क्या है। वे तो अब झगड़ रहे हैं और थोड़ी देर में एक साथ खेलने लग जाएंगे। मगर अब धारणा बीते दौर की बात
हो चली है। अब बच्चों की किसी हरकत को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। गुरुग्राम के रेयान स्कूल में बच्चे की हत्या में स्कूल ही छात्र का नाम आया था। अब यमुनानगर में 11वीं के एक छात्र ने स्कूल के प्राचार्य को गोली मार दी। ऐसी घटनाएं अब रूटीन में सामने आने लगी हैं, जिनमें स्कूली बच्चे अपराधी साबित हो रहे हैं। इन घटनाओं को लेकर शिक्षा जगह में एक नई बहस भी छिड़ गई है कि आखिर बच्चों में ऐसी प्रवृति क्यों आ रही है। ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए किस तरह के प्रयास होने चाहिए। क्या बच्चों के साथ सख्ती बरती जानी चाहिए? या फिर सख्ती बरतने की वजह से ही बच्चे तनाव में हैं और इसलिए अपराधी बनते जा रहे हैं? क्या सोशल मीडिया की भी इसमें कोई भूमिका है? यदि शिक्षाविदों और मनोवैज्ञानिकों की मानें तो इसके पीछे किसी एक कारण को जिम्मेदार नहीं माना जा सकता। एक व्यक्ति के जीवन को बहुत सारी चीजें प्रभावित करती हैं। उसी का प्रभाव रहता है। 
ये हैं मुख्य कारण:
  • सोशल मीडिया का अधिक इस्तेमाल।
  • अपराध से जुड़े वीडियो देखना। 
  • घर में माहौल तनावपूर्ण होना। 
  • अभिभावकों से प्यार व मार्गदर्शन न मिलना। 
  • गलत लड़कों की संगति का प्रभाव। ’
  • शिक्षा के बोझ से मानसिक तनाव। 
  • बच्चों से असुरक्षा का भाव। 
  • किशोरावस्था में प्रेम प्रसंग में पड़ना।
यहां भी हो चुकी ऐसी घटनाएं: 
  • वर्ष 2016 में ऐसी ही वारदात टोहाना में हुई थी। लवली नामक छात्र को नहर में धक्का देकर मार दिया गया था। पुलिस ने जांच की तो उसका सहपाठी ही हत्या आरोपी निकला। इस मामले में दो युवक पकड़े गए थे। पुलिस के मुताबिक दोनों अभियुक्त लवली के दोस्त थे।
  • चार साल पहले माडल टाउन में एक किशोर घर में अकेला था। उसने अपने पिता की लाइसेंसी रिवाल्वर से खुद को गोली मारकर जान दे दी थी। इस घटना के बाद पुलिस ने जांच में पाया था कि बच्चा लैपटॉप में फिल्म देख रहा था। पता चला कि उसने घटना से पहले लक फिल्म देखी थी।

बच्चों का अलग अलग स्वभाव होता है। अलग तरह की मनोस्थिति होती है। बच्चों की छोटी छोटी आदतों से पता चल जाता है कि उनके दिमाग में किस तरह के भाव चल रहे हैं। स्कूल संचालकों की यह जिम्मेदारी बनती है कि आपराधिक प्रवृति के बच्चों पर स्पेशल निगरानी रखें। अभिभावकों का दायित्व बनता है कि वे बच्चों पर शक न करें, उनके साथ मित्रतापूर्ण ढंग से व्यवहार करें। अपनी बात थोपने की कोशिश न करें। - रविंद्र तोमर, डीएसपी, फतेहाबाद