साभार: जागरण समाचार
कानून में विशेषकर आइपीसी में पुरुषों के साथ भेदभाव की बात फिर उठी है। सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका (पीआइएल) दाखिल कर छेड़खानी, यौन उत्पीड़न और दुष्कर्म जैसे अपराध में सिर्फ पुरुष को ही दोषी माने जाने
पर सवाल उठाए गए हैं। वकील ऋषि मल्होत्रा की ओर से दाखिल याचिका मे आइपीसी की धारा 354(छेड़खानी), 354ए, बी, सी, डी (यौन उत्पीड़न) और धारा 375 (दुष्कर्म) को पुरुषों के साथ भेदभाव वाला बताते हुए रद करने की मांग की गई है। शीर्ष न्यायालय इस पर 19 मार्च को सुनवाई कर सकता है।
पीआइएल में मल्होत्र ने संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 में दिए गए बराबरी के अधिकार को आधार बनाते हुए उपरोक्त धाराओं की वैधानिकता को चुनौती दी है। जनहित याचिका में कहा गया है कि अनुच्छेद 14 और 15 धर्म, जाति, वर्ण, लिंग और निवास स्थान के आधार पर भेदभाव की मनाही करता है लेकिन धारा 354 और धारा 375(दुष्कर्म) के प्रावधानों में पुरुष को अपराधी माना गया है और महिला को पीड़िता। मल्होत्रा का कहना है कि अपराध और कानून को लिंग के आधार पर नहीं बांटा जा सकता है। महिला भी उन्हीं आधारों और कारणों से अपराध कर सकती है, जिन कारणों से पुरुष करते हैं। ऐसे में जो भी अपराध करे, उसे कानून के मुताबिक दंड मिलना चाहिए। पीआइएल के मुताबिक, भारतीय पुरुषों पर हाल में किए गए सर्वे से पता चला है कि 16.1 फीसद पुरुषों को सेक्स के लिए बाध्य किया गया था। महिलाओं से दुष्कर्म की तरह पुरुषों से दुष्कर्म के मामले पर कोई व्यापक अध्ययन नहीं हुआ है। इसके बावजूद विभिन्न आंकड़ों में पुरुषों से दुष्कर्म की बात सामने आती है। पुरुषों से दुष्कर्म के मामले सामान्य तौर पर अनुमान से ज्यादा हैं। कहा गया है कि हत्या और दुष्कर्म जैसे अपराधों में उम्र, लिंग का ज्यादा फर्क नहीं देखा गया है। ऐसे में अपराध को लिंग भेदभाव रहित बनाया जाए। इससे ऐसे अपराधों की शिकायत दर्ज होने में सुधार आएगा।
मल्होत्रा का कहना है कि आइपीसी की धाराएं महिलाओं की बेइज्जती से जुड़ी हैं। लेकिन इनमें कहीं पर भी पुरुष की बेइज्जती होने पर उन्हें संरक्षण नहीं दिया गया है।