एन. रघुरामन (मैनेजमेंटगुरु)
लेकिन, इस युवा युगल ने यह पैसा कुछ अलग तरह से खर्च करने का निर्णय लिया। उन्होंने यावत स्थित ख्यात भुलेश्वर मंदिर के पास स्थित मालशिरास गांव में 101 पेड़ लगाए। पुणे से सिर्फ 55 किलोमीटर दूर स्थित यह इलाका कुछ वर्षों से सूखे का सामना कर रहा है। इस दौरान उनके मित्र और परिवार के सदस्य भी मौजूद थे। उन्होंने कड़ी धूप में गांव की जमीन पर कई प्रकार के पौधे लगाए, जिनमें नीम, आम, बांस, नारियल, गुलमोहर, बरगद, गूलर, इमली बेर शामिल हैं। उन्होंने स्थानीय ग्रामीण स्कूल के छात्रों को भी 51 पौधे दान किए ताकि पर्यावरण संरक्षण की उनकी समझ बढ़े। पौधों को जानवरों से बचाने के लिए उन्हें चारों ओर से लकड़ियों जाली से घेर दिया गया। बाद में केक काटकर कन्या के नए नाम 'अलीशा' का उत्सव मनाया गया।
उनका मुख्य उद्दे्श्य अगली पीढ़ी को एक नई परम्परा से जोड़ना था- ऐसी अधिक समग्र परम्परा, जिसे और भी ज्यादा लोग अपनाएं। वे जानते थे कि पौधे लगाना तो आसान है लेकिन, उन्हें बनाए रखना महत्वपूर्ण है। इसलिए इस युगल ने पौधों को नियमित रूप से पानी देने के लिए गांव के कुछ लोगों की सूची बनाई और पौधों की वृद्धि पर निगरानी रखने के लिए गांव में हर सप्ताह आने का निर्णय लिया। गांव के कई लोग परिवार को इस काम में मदद देने के लिए आगे भी आए।
साभार: भास्कर समाचार
स्टोरी 1: इस युगल को अगस्त में जीवन की सबसे बड़ी खुशी मिली। पुणे के कोथरुड में ऑटोकैड सॉफ्टवेयर ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट चलाने वाले रणजीत नाइक और पुणे के ही विमान नगर स्थित सिम्बायोसिस इंस्टीट्यूट में
प्रोफेसर नेहा के यहां 18 अगस्त को कन्या ने जन्म लिया। किसी भी आम घर की तरह युवा युगल के बड़े परिवार में खुशी फैल गई और वह इसका जश्न मनाना चाहता था। फिर कन्या के नामकरण समारोह के सपने देखे जाने लगे। किसी अनूठी-सी जगह पर खर्चीले भोज की बात होने लगी, जिसमें सैकड़ों मेहमान मौजूद हों। मौजूद लोगों की सराहना पाने के लिए बड़ा-सा बजट तय किया गया। लेकिन, इस युवा युगल ने यह पैसा कुछ अलग तरह से खर्च करने का निर्णय लिया। उन्होंने यावत स्थित ख्यात भुलेश्वर मंदिर के पास स्थित मालशिरास गांव में 101 पेड़ लगाए। पुणे से सिर्फ 55 किलोमीटर दूर स्थित यह इलाका कुछ वर्षों से सूखे का सामना कर रहा है। इस दौरान उनके मित्र और परिवार के सदस्य भी मौजूद थे। उन्होंने कड़ी धूप में गांव की जमीन पर कई प्रकार के पौधे लगाए, जिनमें नीम, आम, बांस, नारियल, गुलमोहर, बरगद, गूलर, इमली बेर शामिल हैं। उन्होंने स्थानीय ग्रामीण स्कूल के छात्रों को भी 51 पौधे दान किए ताकि पर्यावरण संरक्षण की उनकी समझ बढ़े। पौधों को जानवरों से बचाने के लिए उन्हें चारों ओर से लकड़ियों जाली से घेर दिया गया। बाद में केक काटकर कन्या के नए नाम 'अलीशा' का उत्सव मनाया गया।
उनका मुख्य उद्दे्श्य अगली पीढ़ी को एक नई परम्परा से जोड़ना था- ऐसी अधिक समग्र परम्परा, जिसे और भी ज्यादा लोग अपनाएं। वे जानते थे कि पौधे लगाना तो आसान है लेकिन, उन्हें बनाए रखना महत्वपूर्ण है। इसलिए इस युगल ने पौधों को नियमित रूप से पानी देने के लिए गांव के कुछ लोगों की सूची बनाई और पौधों की वृद्धि पर निगरानी रखने के लिए गांव में हर सप्ताह आने का निर्णय लिया। गांव के कई लोग परिवार को इस काम में मदद देने के लिए आगे भी आए।
स्टोरी 2: सौम्या कावि ने अमेजॉन में इंजीनियर की नौकरी छोड़कर एक सोशल सेक्टर कंसल्टेंसी फर्म के साथ काम शुरू किया ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि हैदराबाद के कम आयवर्ग वाले परिवारों के बच्चे नियमित स्कूल जाएं। लेकिन, उन्हें सीखने के लिए प्रेरित करने के उनके सारे प्रयास तब तक नाकाम रहे, जब तक एक दिन उन्होंने बच्चों से बातचीत करने का फैसला नहीं किया। सारे बच्चे रोचक कहानियां सुनाने लगे कि उन्होंने क्या देखा, घर में क्या हुआ, भाई-बहनों के साथ क्या हुआ। कैसी समस्याएं उनके सामने आती हैं, जैसे एक लड़की ने बताया कि घर में उसके छोटे भाई को ज्यादा महत्व दिया जाता हैं। सौम्या ने बच्चों से इन कहानियों के आधार पर 10-12 मिनट के नाटक पेश करने को कहा, जिसमें कोई समाधान हो। इससे वे सोच-विचार करने लगे और उनमें सीखने की ललक पैदा हो गई। इस तरह तीसरी कक्षा के वे बच्चे जो वर्णमाला भी नहीं जानते थे, सुंदर वाक्य लिखने लगे।
उनके मित्र प्रशांत नोरी भी कक्षा में ड्रामा का इस्तेमाल करते थे, वे भी 2015 में उनके साथ गए और उन्होंने 'ड्रामेबाज' नामक ग्रुप लॉन्च कर दिया, जहां तीसरी से छठी कक्षा के बच्चे पसंदीदा कहानियों की नाट्य प्रस्तुति देते हैं। डिज़ाइन वर्कशाप से लेकर, पटकथा लेखन और रिहर्सल आदि मंच के पीछे की गतिविधियों के साथ प्रोडक्शन इस ग्रुप का अभिन्न हिस्सा है। आज 'ड्रामेबाज' देश के पांच शहरों में काम करके 2 से 3 हजार बच्चों तक पहुंच रहा है, जिनमें सीखने की ललक पैदा हुई है।
फंडा यह है कि अगली पीढ़ी में धरती बचाने शिक्षा ग्रहण करने जैसी एकदम नई संस्कृति विकसित करना भी दान उत्सव का हिस्सा है।
उनके मित्र प्रशांत नोरी भी कक्षा में ड्रामा का इस्तेमाल करते थे, वे भी 2015 में उनके साथ गए और उन्होंने 'ड्रामेबाज' नामक ग्रुप लॉन्च कर दिया, जहां तीसरी से छठी कक्षा के बच्चे पसंदीदा कहानियों की नाट्य प्रस्तुति देते हैं। डिज़ाइन वर्कशाप से लेकर, पटकथा लेखन और रिहर्सल आदि मंच के पीछे की गतिविधियों के साथ प्रोडक्शन इस ग्रुप का अभिन्न हिस्सा है। आज 'ड्रामेबाज' देश के पांच शहरों में काम करके 2 से 3 हजार बच्चों तक पहुंच रहा है, जिनमें सीखने की ललक पैदा हुई है।
फंडा यह है कि अगली पीढ़ी में धरती बचाने शिक्षा ग्रहण करने जैसी एकदम नई संस्कृति विकसित करना भी दान उत्सव का हिस्सा है।