साभार: भास्कर समाचार
उत्तर प्रदेश और बिहार में मकर संक्रांति के उत्सव पर 'खिचड़ी' हावी रहती है, दक्षिण में इसे 'पोंगल' का नाम मिल जाता है, जबकि पंजाब में 'लोहड़ी' नाम के इसी पर्व पर 'मक्के की रोटी' और 'सरसो की साग' का महत्व है।
नई फसल का उत्सव जिस शान से मनाया जाता है उसी तरह वक्त आ गया है कि हम हमारे घर पर खुद सीखकर इनोवेटर बने लोगों का जश्न मनाएं। आइए कुछ ऐसी शख्सियतों से मुलाकात करें: - सिद्धार्थ गुप्ता, पश्चिम बंगाल: इस 16 वर्षीय किशोर के पिताजी चाहते थे कि वे उनके 20 किरायेदारों से हर महीने पैसा इकट्ठा करें और उनके बिजली के बिल भरे। इसके कारण 11वीं का यह छात्र प्राय: कक्षा में गैर-हाजिर रहता था। इसलिए उसने गूगल पर एक अप्लिकेशन बनाया, जिसकी मदद से किरायेदार खुद बिल भर सकते हैं अौर लॉग इन करके पहले भरे बिल का स्टेटस भी देख सकते हैं।
- अभिषेक भगत, बिहार: इस 24 साल के युवा ने ऐेसी मशीन का आविष्कार किया, जिसका अभी व्यावसायिक उत्पादन शुरू होना है। इसकी कीमत सिर्फ 10 हजार रुपए हैं लेकिन, यह हर महिला को खुश कर देगा। यह है ऑटोमेटिक फूड मशीन, जिसमें रेसिपी डाउनलोड करने के बाद वह बताएगी कि बाउल में कौन-सी सामग्री ठीक-ठीक किस मात्रा में डालना है और एक बार यह करने के बाद यह मशीन रोटी छोड़कर कुछ भी बना सकती है चाहे वह 'दाल-चावल' हो या 'गाजर का हलवा।' फिलहाल वे अपने आविष्कार को अगले स्तर पर ले जाने के लिए फंड्स की तलाश में हैं।
- सिकांतो मंडल, उत्तर प्रदेश: उसके स्कूल में लड़कियां फर्श की सफाई करतीं और लड़कों को कचरा ठिकाने लगाना होता। लेकिन नौंवी के ये स्टार छात्र कभी कचरे को हाथ भी नहीं लगाना चाहते थे। इसलिए 13 साल के इस छात्र ने गार्बेज कलेक्शन और काम्पेक्टिंग मशीन बना दी। दो भागों में बंटे कचरे को ठिकाने लगाने के इस सिस्टम में लंबी पकड़ वाला औजार है, जिसकी सहायता से कचरा इकट्ठा किया जा सकता है, जिसे धातु के बने गार्बेज बिन में डालकर काम्पेक्ट स्वरूप दिया जाता है। जब इसे खाली किया जाता है तो इसमें से कचरे के बड़े-बड़े टेबलेट निकलते हैं। सिकांतो जल्दी ही इस आविष्कार पर चर्चा के लिए जापान जाने वाले हैं।
- धरमवीर कांबोज, हरियाणा: अब 55 वर्ष के धर्मवीर बरसों पहले आजीविका की तलाश में दिल्ली आए थे लेकिन, रिक्शा खींचने वाले बनकर रह गए। वजह यह थी कि हरियाणा के यमुनानगर जिले के दामला गांव में रहने वाला उनका कृषक परिवार दो जून की रोटी के लिए संघर्ष कर रहा था। लेकिन, फिर उन्होंने देखा कि उनकी कृषि उपज को जैम और जूस में बदलने पर अधिकतम दाम मिलते हैं तो वे कई काम करने वाला फूड प्रोसेसर बनाने के लिए गांव लौट आए। उनके डिवाइस में नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन ने और सुधार किया और अब उसका इस्तेमाल दक्षिण अफ्रीका से लेकर मध्यप्रदेश तक के ग्राहक कर रहे हैं। यह मशीन जूस, पल्प और उसका कंसन्ट्रेटेड एक्ट्रेक्ट बनाती है।
- राज सिंह दाहिया, राजस्थान: कृषि के कई देशी इनोवेशन में किसी आईआईटियन के दिमाग की जरूरत नहीं होती बल्कि इन्हें तो गरीब देहाती किसान भी कर सकते हैं। वे राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले के थालार्का बरानी गांव के हैं और कभी स्कूल नहीं गए। वे खेती की मशीनें सुधारना सीखते हुए बड़े हुए और समय के साथ यही उनके आमदनी का जरिया हो गया। इस तरह वे बीबीसी रेडियो के साइंस प्रोग्राम के उत्साही श्रोता हो गए। यह वही वक्त था जब कृषि से निकला भूसा आदि जलाने के कारण होने वाला प्रदूषण सुर्खियों में आया और उन्होंने बायोमास आधारित गैसीफायर बना दिया जो कृिष से निकले वेस्ट से बिजली बनाता है। यह 20 किलो बायो वेस्ट को प्रोसेस करके 30 हार्स पावर के इंजन को एक घंटे चला सकता है। उन्हें अलग स्वरूप देकर बनाए डिज़ल इंजन को चलाने वाला अनूठा बायोमास गैसीफायर बनाने के लिए जिला कलेक्टर की ओर अवॉर्ड भी मिला है।
फंडा यह है कि देश के हर गांव में ऐसे बहुत सारे इनोवेटर्स हैं। सिर्फ उनका पता लगाएं और उनकी उपलब्धियों का जश्न भी मनाएं, जिनमें वह क्षमता है कि वे लोहड़ी, पोंगल और मकर संक्रांति जैसे कई पर्वों व उत्सवों का निर्माण कर सकें।