साभार: जागरण समाचार
सरकारी केंद्रीय विद्यालयों (सेंट्रल स्कूल) में होने वाली प्रार्थना यूं तो सत्य और धर्म के मार्ग पर चलने और ज्ञान को बढ़ाने के लिए याचना होती है, लेकिन मध्य प्रदेश के एक वकील का मानना है कि यह धर्म विशेष को बढ़ावा
देता है और इसीलिए इस पर रोक लगनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ऐसी याचिका पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। वकील विनायक शाह की याचिका में कहा गया है कि केंद्रीय विद्यालय में होने वाली हंिदूी की प्रार्थना और संस्कृत श्लोक हिन्दू धर्म को बढ़ावा देते हैं। संविधान के अनुच्छेद 28(1) का हवाला देते हुए कहा गया है कि सरकारी खर्च पर चलने वाले शिक्षण संस्थानों में किसी तरह के धार्मिक निर्देश नहीं दिये जा सकते। यह भी कहा गया है कि प्रार्थना से अल्पसंख्यक समुदाय के बच्चों और नास्तिक लोग, जो इस प्रार्थना की व्यवस्था से सहमति नहीं रखते, के संवैधानिक अधिकारों का हनन होता है। इतना ही नहीं ये प्रार्थना बच्चों की वैज्ञानिक सोच के विकास में बाधक है। न्यायमूर्ति आरएफ नरिमन व न्यायमूर्ति नवीन सिन्हा की पीठ ने याचिका पर बहस सुनने के बाद नोटिस जारी किया।
याचिका में कहा गया है कि केंद्रीय विद्यालय के रिवाइज्ड एजुकेशन कोड के मुताबिक सुबह संस्कृत श्लोक ‘असतो मा सदगमय, तमसो मा ज्योर्तिगमय, मृत्योमा् अमृतमंगमय ऊं शांति शांति शांति।’ बच्चों से बुलवाया जाता है। इसके बाद सुबह की प्रार्थना होती है जिसमें सभी बच्चे आंख बंद करके हाथ जोड़ कर खड़े होते हैं और प्रार्थना ‘दया कर दान विद्या का हमे परमात्मा देना, दया करना हमारी आत्मा में शुद्धता देना। हमारे ध्यान में आओ प्रभु आंखों में बस जाओ अंधेरे दिल में आकर के, परम ज्योति जगा देना।’ करते हैं। कहा गया है कि संविधान सभी को व्यक्तिगत आजादी का हक देता है लेकिन स्कूल बच्चों को प्रार्थना करने के लिए बाध्य करता है। स्कूल बच्चों को प्रार्थना छोड़ने की आजादी नहीं देता। संविधान का अनुच्छेद 19 व्यक्ति को अभिव्यक्ति की आजादी देता है ऐसे में बच्चों को एक निश्चित तरीके से आंख बंद करके हाथ जोड़ कर प्रार्थना करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता।
प्रार्थना को धर्म से नहीं जोड़ा जा सकता: केंद्रीय विद्यालय की प्रार्थना पर सवाल उठाए गए हैं। लेकिन विशेषज्ञों की मानें तो स्कूल की प्रार्थना को धर्म से जोड़कर नहीं देखा जा सकता। स्कूलों में प्रार्थना बच्चों में संस्कार और अनुशासन सिखाने के लिए कराई जाती है। विशेषतौर पर जो प्रार्थना केंद्रीय विद्यालय में कराई जाती है उससे किसी संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन नहीं होता।
इलाहाबाद हाईकोर्ट के सेवानिवृत न्यायाधीश एसआर सिंह का कहना है कि जो संस्कृत श्लोक और हिंदी की प्रार्थना है, उसमें विद्या का दान मांगा जा रहा है। सभी धर्मो के बच्चों को विद्या चाहिए होती है। डॉक्टर राधाकृष्णन जब मॉस्को गए थे तो उनसे लोगों ने पूछा धर्म क्या है तो उन्होंने जवाब दिया था कि सत्यं शिवमं सुन्दरम की तलाश उस पर चलना धर्म है। यानि जो सत्य है वही सुंदर है वही कल्याणकारी है। जस्टिस सिंह कहते हैं कि प्रार्थना में कुछ भी गलत नहीं है। सुप्रीम कोर्ट के वकील डीके गर्ग भी उनसे सहमति जताते हुए कहते हैं कि स्कूल में प्रार्थना बच्चों को अच्छे संस्कार और उनके चरित्र निर्माण के लिए होती है। बच्चों में वैज्ञानिक सोच और ज्ञान बढ़ाने के लिए भी उनका अनुशासित होना जरूरी है। प्रार्थना के समय सब बच्चे एक दूसरे से मिलते हैं। इससे उनमें मेलजोल की भावना बढ़ती है। इसे धर्म से जोड़ कर नहीं देखा जा सकता। ये संस्कृति का हिस्सा है। पूर्व प्रशासनिक अधिकारी और शिक्षा के क्षेत्र में काम करने वाले प्रेमपाल शर्मा कहते हैं कि ये संवेदनशील मामला है। बाल की खाल निकालने वाली बात है। उनका मानना है कि समान शिक्षा की अवधारणा इस तरह की चीजों पर विराम लगा सकती है।
देश में 1,125 सेंट्रल स्कूल: पिछले 50 सालों से सेंट्रल स्कूलों में पूरे देश में एक ही पाठ्यक्रम और विषय पढ़ाए जाते हैं। इस तरह यह विश्व का सबसे बड़े नेटवर्क वाला स्कूल है। इस समय देश में करीब 1,125 स्कूल संचालित हो रहे हैं। साथ ही केंद्र सरकार के मानव संसाधन मंत्रलय के अधीन चलने वाले देश के सेंट्रल स्कूल यानी केंद्रीय विद्यालय स्तरीय शिक्षा के लिए जाने जाते हैं।
- लोग धर्म का मतलब नहीं समझ रहे। प्रार्थना का धर्म से कोई लेना-देना नहीं है। प्रार्थना में विद्या का दान मांगा गया है। अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाने की बात है। - जस्टिस एस आर सिंह
- जो कार्यक्रम मानवता की ओर लेकर जाता है उसका धर्म से कोई ताल्लुक नहीं है। वो किसी भी तरह से धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत के खिलाफ नहीं है। - डीके गर्ग, सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता