साभार: भास्कर समाचार
37 साल से आंदोलन जारी: 1971 में बांग्लादेश के स्वतंत्रता संघर्ष के दौरान वहां से तमाम लोग भारत भाग आए और यहीं बस गए। उन्हें वापस भेजने की मांग कर रहे लोगों का कहना है कि ये लोग असम के लिए खतरा
हैं और यहां के लोगों का हक मार रहे हैं। 1980 के दशक से ही यहां घुसपैठियों को वापस भेजने के आंदोलन हो रहे हैं। हिंसा भी हो रही है। - 1979 में ऑल असम स्टूडेंट यूनियन और असम गण परिषद ने आंदोलन शुरू किया। यह हिंसक आंदोलन 6 साल तक चला। राज्यभर में 3000 से ज्यादा मौतें भी हुईं।
- 1985 में केंद्र सरकार और आंदोलनकारियों के बीच समझौता हुआ। इस दौरान केंद्र की तरफ से तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी और स्टूडेंट यूूनियन और असम गण परिषद के प्रमुख नेता मौजूद रहे थे। तय हुआ कि 1951-71 से बीच आए लोगों को नागरिकता दी जाएगी और 1971 के बाद आए लोगों को वापस भेजा जाएगा। समझौता सफल नहीं हुआ।
- 2005 में राज्य और केंद्र सरकार में एनआरसी लिस्ट अपडेट करने के लिए समझौता। सुस्त रफ्तार की वजह से मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा।
- 2014 में भाजपा ने इसे चुनावी मुद्दा बनाया। मोदी ने चुनावी रैली में कहा- आप इसे लिख सकते हैं। 16 मई के बाद, इन बांग्लादेशियों को अपने बैग के साथ तैयार रहना चाहिए।
- 2015 में कोर्ट ने एनआरसी लिस्ट अपडेट करने का आदेश दिया। 2016 में राज्य में भाजपा की पहली सरकार बनने के बाद इस प्रक्रिया में तेजी आई है। यह मुद्दा उठाने वाली असम गण परिषद सहयोगी पार्टी है।
- 2017 सुप्रीमकोर्ट की डेडलाइन खत्म होने से 15 मिनट पहले ही राज्य सरकार ने एनआरसी की पहली लिस्ट जारी की है।