साभार: भास्कर समाचार
आधीरात में लिस्ट आई। सुबह से लोग एनआरसी सूचना केंद्रों पर पहुंचने लगे। ज्यादातर लोग निराश होकर ही लौट रहे थे। किसी के परिवार के आधे लोगों के नाम थे, आधे के गायब। पति का नाम है तो पत्नी का नहीं। पिता का नाम है तो बच्चों के नाम नहीं। ऊपरी असम की तुलना में निचले असम में ऐसे लोगों की संख्या ज्यादा है, जिनके नाम आवेदन करने के बाद भी सूची में नहीं हैं। जबकि उन्होंने सारे दस्तावेज सौंप दिए थे। निचले असम में बांग्लादेश से आए लोगों की संख्या भी ज्यादा है। एनआरसी के प्रदेश समन्वयक प्रतीक हजेला का खुद का नाम लिस्ट में नहीं है। प्रतीक कहते हैं कि- "जिनके नाम पहली सूची में नहीं हैं, उनके नाम दूसरी में सकते हैं। दस्तावेज की जांच चल रही है। मेरा खुद का नामपहली सूची में नहीं है।' प्रमुख मुस्लिम नेता और धुबड़ी के सांसद बदरुद्दीन अजमल समेत कई विधायकों के नाम भी इस सूची में नहीं हैं। वहीं उल्फा के मुख्य सेनाध्यक्ष परेश बरुवा का नाम सूची में है, जबकि वो दो दशक के ज्यादा समय से असम से गायब हैं। जबकि मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल भरोसा दिला रहे हैं। वो कहते हैं- "किसी भी भारतीय का नाम काटा नहीं जाएगा। उन्हें नागरिकता साबित करने का पूरा मौका दिया जाएगा।'
लोगों का कहना है कि 1966 की मतदाता सूची को लीगेसी डेटा के रूप में जमा करने के बाद भी उनका नाम नहीं आया। ये स्थिति पूरे राज्य की है। उदाहरण के लिए मंगलदै जिले के दलगांव के विधायक इलियास अली ने 1951 की मतदाता सूची को लीगेसी डाटा के रूप में जमा किया। इसके बाद भी उनका नाम मसौदे में नहीं है। बिहूदिया गांव के अमिरुल इस्लाम ने भी अपने लीगेसी डाटा के रूप में अपने पिता के नाम वाली 1966 की मतदाता सूची जमा की थी। साथ में प्रपत्र के साथ परिवार के अन्य सदस्यों के भी जरूरी प्रमाण-पत्र जमा किए। सभी प्रमाण-पत्र असम के थे। इसके बावजूद उनका नाम मसौदे में नहीं है।