Tuesday, January 2, 2018

1 लाख सरकारी कर्मचारी कर रहे बांग्लादेश से आए लोगों की पहचान, इसमें 900 करोड़ रु. खर्च हो रहे

साभार: भास्कर समाचार
असम में गैरकानूनी तरीके से रह रहे लोगों को निकालने का अभियान दुनिया के सबसे बड़े अभियानों में से एक है। एक अनुमान के मुताबिक असम में करीब 50 लाख बांग्लादेशी गैरकानूनी तरीके से रह रहे हैं। यह किसी भी
देश में गैरकानूनी तरीके से रह रहे एक देश के प्रवासियों की सबसे बड़ी संख्या है। पर राजनीतिक दांवपेच में उलझने की वजह से एनआरसी की अपडेट लिस्ट नहीं पाई। भाजपा ने इसे चुनावी मुद्दा बनाया। 2016 में पहली सरकार बनाई। सीएम सर्वानंद सोनोवाल ने बांग्लादेशी घुसपैठियों की पहचान के लिए एनआरसी से अलग डिटेक्ट, डिलीट और डिपोर्ट कार्यक्रम शुरू किया। इसमें एक लाख से ज्यादा सरकारी कर्मचारी लगाए गए। इस अभियान पर करीब 900 करोड़ रुपए खर्च हुए हैं। इस लिहाज से यह यह किसी देश में गैरकानूनी तरीके से रहे दूसरे देश के लोगों को वापस भेजने का सबसे बड़ा अभियान भी है। 
एनआरसी लिस्ट के बारे में वो सबकुछ, जो आप जानना चाहते हैं...
  • 3 साल में राज्य के 3.29 करोड़ लोगों ने नागरिकता साबित करने के 6.5 करोड़ दस्तावेज भेजे। 
  • ये दस्तावेज करीब 500 ट्रकों के वजन के बराबर है। इसमें 14 तरह के प्रमाणपत्र हैं। 
  • इन दस्तावेजों से साबित करना है कि वो या उनका परिवार 1971 से पहले राज्य का मूल निवासी है। 
  • 50,000 से अधिक राज्य सरकार के कर्मचारियों-अधिकारियों ने घर-घर के सत्यापन की रिकॉर्डिंग की। 
  • वंशावली को मुख्य आधार बनाया गया है। यानी असम में, आप वंश द्वारा नागरिक हैं। बाकी देश में जन्म से नागरिकता है।

राजनीतिक दृष्टिकोण - बांग्ला-हिन्दूऔर मुस्लिम में बंटी राजनीति: भाजपा के लिए यह बड़ा चुनावी मुद्दा रहा है, लेकिन पार्टी इस पर आक्रामक रुख से आगे नहीं बढ़ सकती। क्योंकि इसमें मुस्लिमों के अलावा बड़ी तादाद में बांग्ला-हिंदू भी हैं। इस स्थिति में केंद्र नागरिकता संशोधन बिल पास कराना चाहता है। क्योंकि उसमें मुस्लिम को छोड़कर बाकी धर्म के लोगों को नागरिकता लेने की प्रक्रिया में रियायत दी गई है। लेकिन मामला कोर्ट में है। यहां धर्म के आधार पर फैसला संभव नहीं है। उसके लिए सब बराबर हैं। 
सामाजिक दृष्टिकोण - हिन्दूऔर मुस्लिमों में सामाजिक खाई बढ़ेगी: मोदी ने चुनाव के दौरान देश में रह रहे हिंदू शरणार्थियों को नागरिकता देने का वादा किया था। इसलिए सरकार नागरिकता संशोधन बिल पास कराना चाहती है। अगर सरकार मुस्लिम घुसपैठियों पर सख्ती करेगी तो इससे सामाजिक खाई बढ़ेगी। एनआरसी अपडेट होने के बाद भी विवाद थमने के आसार कम ही हैं। दस्तावेजों की गैरमौजूदगी में यह साबित करना मुश्किल है कि कौन 1971 से पहले असम में आया था और कौन उसके बाद।
छह दशक में 80 हजार बांग्लादेशियों की ही पहचान हुई: 
  • 1971 के बाद से 80,000 से कम की पहचान हो पाई। यानी हर साल 1740 घुसपैठियों की शिनाख्त हुई। 
  • सरकारी रिपोर्ट के मुताबिक 51 साल में अगस्त 2017 तक 29,738 बांग्लादेशियों को वापस भेजा गया है। 
  • बांग्लादेश एक ऐसा राष्ट्र है, जिसके साथ असम का 4,096 किलोमीटर की सीमा का हिस्सा लगता है।