साभार: जागरण समाचार
हमारे देश में अधिकतर बच्चों के करियर का फैसला माता-पिता या परिवार का कोई और सदस्य करता है। यही कारण है कि आगे चलकर बहुत से लोग मनपसंद करियर में न होने के कारण स्ट्रेस या डिप्रेशन का शिकार होते
हैं। आज से लगभग दस साल पहले मेरे पास एक परिवार अपने बेटे को लेकर काउंसलिंग के लिए आया। बड़ा ही विचित्र केस था। लड़का ग्यारहवीं का स्टूडेंट था। हट्टा-कट्टा। 6 फीट लंबा। वह अपने पिता के साथ बहुत ही बदतमीजी से पेश आता था। बात-बात पर गुस्सा हो जाता था। माता-पिता दोनों पढ़े-लिखे थे। पिता डॉक्टर थे और नर्सिग होम चलाते थे, जबकि मां केमिस्ट शॉप का कार्य देखती थीं। जब मैंने लड़के से अकेले में बात की तो जो बातें पता चलीं, वे बहुत चौकाने वाली थीं। कुछ साल पहले जब वह लड़का पांचवीं क्लास में था, तो माता-पिता के आपसी संबंध काफी तनावपूर्ण थे। उनके बीच कई बार लड़ाई-झगड़ा देखने के कारण लड़के के मन में पिता के लिए बहुत गुस्सा था। अब जबकि पिता चाहते थे कि बेटा डॉक्टर बने तो लड़का मना कर रहा था। इस बात को लेकर रोजाना बहस होती थी। मैंने लड़के से कहा कि आप क्या बनना चाहते हो, तो पता चला की वह एंटरप्रेन्योर बनना चाहता है।
मैंने कहा कि क्या आपको पता है इसके लिए आपके पास किन गुणों का होना जरूरी है, तो वह चुप हो गया। मैंने उसको कुछ सफल उद्योगपतियों की बायोग्राफी पढ़ने की सलाह दी और उसके बाद मेरे पास आने को कहा। इसके साथ माता-पिता को सख्त हिदायत दी कि उससे करियर के बारे में कोई बात न करें। जब कुछ किताबें पढ़ कर वह वापस आया, तो उसको आइडिया हो गया था कि एंटरप्रेन्योर बनने के लिए लीडरशिप की जरूरत सबसे ज्यादा है। वह वॉलीबॉल का अच्छा खिलाड़ी था, तो मैंने उसको किसी टीम का कप्तान बनकर दिखाने की चुनौती दी। मैंने कहा कि अगर वह यह करता है और लोग उसकी टीम में खेलने के लिए तैयार हो जाते हैं, तो मैं उसके करियर में आगे बढ़ाने में अपनी ओर से भरपूर मदद करूंगा। उसकी मेहनत और डेडिकेशन रंग ले आई और एक महीने के अंदर ही वह अपने स्कूल की वॉलीबॉल टीम का कप्तान बन गया। इतना ही नहीं, उसकी टीम एक प्रतिष्ठित टूर्नामेंट में सेमीफाइनल तक पहुंची। अब वह फिर से मेरे सामने था। उसकी उम्मीद थी कि मैं उसकी मदद करूं और उसके पैरेंट्स को समझाऊं कि उसको कॉमर्स की पढ़ाई करने दें। अब उसको एक झटका देने की बारी मेरी थी। मैंने उससे पूछा कि अगर आप बिजनेस शुरू करते हो और आपको मेरी शक्ल पसंद नहीं है, लेकिन मेरे साथ बिजनेस करने में फायदा है, तो आप क्या करोगे? तो उसका जवाब था बिजनेस करूंगा। मैंने कहा, मैं यह तब मानूंगा, अगर आप अपने पापा के साथ पिछली बातों को भुला कर गुस्सा छोड़ कर प्यार से रह के दिखाओगे और अपने पिछले बर्ताव के लिए माफी भी मांगोगे।
अब तक वह पूरी बात समझ चुका था कि आज जीवन में आगे बढ़ना है, तो आपको दुनिया के साथ तालमेल बैठाना होगा। उसने अपने व्यवहार में बदलाव किया। पैरेंट्स भी उसमें आए इस परिवर्तन से प्रभावित थे। कुछ दिनों के बाद पूरा परिवार मेरे पास आया, तो मैंने बातों-बातों में कहा कि आपके बड़े बेटे में लीडरशिप क्वॉलिटी है, उसे एंटरप्रेन्योर बनने दीजिए। इतना सुनना था कि उनका छोटा बेटा जो कि आठवीं क्लास का स्टूडेंट था, बोला- पापा, भैया को करने दो कॉमर्स की पढ़ाई। मैं डॉक्टर बनूंगा। यह सुनकर पिता भी खुश और दोनों बेटे भी।
इसलिए पैरेंट्स बच्चों से कम्युनिकेशन कभी टूटने न दें, क्योंकि यह गैप आगे बहुत मुश्किल बन जाता है। बच्चे की रुचि को समझ कर ही उसके करियर का फैसला करें, तभी सब खुशहाल रहेंगे।