साभार: भास्कर समाचार
एडम ग्रैंट की किताब 'गिव एंड टेक' पर्सनल सक्सेस करियर सक्सेस पर किए गए शोध के आधार पर तैयार की गई एक गाइड है। किताब में ग्रैंट इसपर बहस करते हैं कि सफल गिवर्स भी टेकर्स और मैचर्स जितने ही महत्वकांक्षी
होते हैं। केवल उनके लक्ष्य तक पहुंचने का तरीका अलग होता है। हम सभी ये जानते हैं कि सफलता के लिए मेहनत, हुनर और किस्मत का होना भी जरूरी है। लेकिन ग्रैंट इसमें एक चीज और जोड़ देते हैं। वो ये है कि आप दूसरों से बातचीत कैसे करते हैं। शोध में तीन बुनियादी तरीके बताए गए हैं- गिविंग, टेकिंग, मैचिंग। टेकर्स मानते हैं कि वे प्रतियोगी दुनिया में रहते हैं जहां अपने मतलब पहले रखते हैं। ये लोग अपने आप को लगातार साबित करने के मिशन पर होते हैं और ये जानते हैं कि आगे रहने के लिए खुद को प्रमोट करते रहना बहुत जरूरी है। टेकर्स मानते हैं कि उदार होना बहुत अच्छा है लेकिन ये केवल लूजर्स के लिए है। अगर आप अपनी इच्छाएं पहले नहीं रखेंगे तो कोई और भी नहीं रखेगा। टेकर्स स्वार्थी मनुष्य नहीं होते हैं, बल्कि बहुत से तो अपना समय और सामान भी देते हैं। लेकिन ये सब वे एक रणनीति के तहत करते हैं जिसमेंं वे सबसे पहले अपना फायदा तो देख ही लेते हैं। अब आते हैं गिवर्स जो एक अलग एक्सट्रीम पर हैं। जो दूसरों को इनसे चाहिए, इनका फोकस उसी पर रहता है। गिवर्स अपनी विशेषज्ञता, स्रोत और सामान देने के लिए तैयार इसलिए हो जाते हंै क्योंकि उन्हें लगता कि दूसरे को इनकी ज्यादा जरूरत है। वो परवाह नहीं करते कि इसके लिए वो क्या कीमत चुका रहे हैं। "गिविंग विदाउट कीपिंग स्कोर' सुखी वैवाहिक जीवन का आधार होता है। जिनसे प्यार करते हैं उनके लिए लोग ऐसा करते भी हैं। लेकिन कार्यस्थल पर ऐसा हमेशा संभव नहीं है। ग्रैंट लिखते हैं कि कार्यस्थल पर मैचर्स ज्यादा पाए जाते हैं। ये जो भी देते हैं उसका समय पड़ने पर रिटर्न भी चाहते हैं।
अब सवाल ये है कि इनमें से कौन ज्यादा और कौन कम सफल है। तो ऐसे कई शोध है जो ये बताते हैं कि गिवर्स, जो बिना किसी उम्मीद के देते रहते हैं, वे सबसे निचले पायदान पर हैं। अगर गिवर्स सबसे नीचे हैं तो टॉप पर कौन है, टेकर्स या मैचर्स? इस शोध की हैरान करने वाली बात ये है कि टॉप पर भी गिवर्स ही पाए गए हैं। सबसे कम उत्पादकता वाले गिवर्स हैं और सबसे ज्यादा उत्पादकता वाले भी गिवर्स ही हैं। हर फील्ड और प्रोफेशन में यही नतीजा निकला है। बॉटम और टॉप पर गिवर्स पाए गए और बीच में मैचर्स और टेकर्स रहे।
ग्रैंट लिखते हैं कि सफलता का एक पैटर्न बन गया है कि पहले सफल होते हैं फिर कुछ बदले में देते हैं। इसे नए मॉडल से बदला जाना चाहिए। बिना किसी शर्त देना, बाद में सफलता का आधार बन जाता है। ग्रैंट नोटिस करते हैं कि ज्यादातर अमीर देश सर्विस के बेस पर ही काम कर रहे हैं। जैसे 80 प्रतिशत अमेरिकन्स सर्विस जॉब में हैं। जब आप एक डॉक्टर, प्लंबर, रियल एस्टेट एजेंट, लॉयर या टीचर चुनते हैं तो यही देखते हैं कि ये वाकई सर्विस देना चाहते हैं या केवल लेने की नीयत रखते हैं। ग्रैंट किताब में शैलम श्वॉर्ट्ज, केन ले, फ्रेैंक लॉयड राइट जैसी कई हस्तियों का उदाहरण देकर भी अपनी बात स्थापित करते हैं।
ग्रैंट ने ऑप्टिशियन्स पर भी शोध किया जो गॉगल्स और ग्लासेस बेच रहे थे। सर्वे के बाद उन्होंने जाना कि जिन ऑप्टिशियन्स का गिविंग नेचर था उन्होंने मैचर्स से 30 प्रतिशत ज्यादा और टेकर्स से 68 प्रतिशत ज्यादा रेवेन्यू बनाया। ग्रैंट लिखते हैं कि गिवर्स कस्टमर्स के बीच भरोसा कायम कर लेते हैं।
गिव एंड टेक एडम ग्रैंट
2013में पब्लिश हुई इस किताब को एमेज़ॉन, एपल, फाइनैंशियल टाइम्स और वॉल स्ट्रीट जर्नल ने साल की बेस्ट बताया था।
जब आप अपने लिए एक डॉक्टर, प्लंबर, लॉयर या टीचर चुनते हैं तो यही देखते हैं कि ये वाकई सर्विस देना चाहते हैं या केवल लेने की ही नीयत रखते हैं। बिना किसी शर्त के देना ही बाद में सफलता का आधार बन जाता है। इसे सफलता का नया मंत्र भी माना जा सकता है।