साभार: भास्कर समाचार
31दिसंबर की रात दुनिया नए साल के जश्न में थी, असम में नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटीजंस (एनआरसी) का पहला ड्राफ्ट जारी किया गया। इसमें राज्य के 3.29 करोड़ में से 1.9 करोड़ लोगों के नाम हैं। यानी, ये कानूनी
तौर पर नागरिक हो गए हैं। सोमवार सुबह से ही एनआरसी सेवा केंद्रों पर भीड़ लग गई। पहली लिस्ट में 42.25% लोगों का नाम होने के कारण कुछ इलाकों में तनावपूर्ण माहौल रहा। इसे देखते हुए 50 हजार जवानों को स्टैंड बाई में रखा गया। सेना भी सतर्क है। पड़ोसी राज्यों में भी सतर्कता बरती जा रही है। यह लिस्ट सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर जारी हुई है। इस मामले में तीन साल में 40 बार सुनवाई हुई है। साल के अंत तक पूरी लिस्ट आने का अनुमान है। असम इकलौता राज्य है जिसने आजादी के बाद दोनों तरफ से पलायन को देखते हुए 1951 में एनआरसी तैयार किया था। तब से 7 बार इसे जारी करने की कोशिशें हुईं। एनआरसी की जरूरत क्यों: असम में अवैध बांग्लादेशियों के मुद्दे पर कई हिंसक आंदोलन हुए हैं। 80 के दशक में असम गण परिषद और राजीव गांधी सरकार के बीच करार हुआ था। 2013 में मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। अंत में अदालती आदेश के बाद लिस्ट जारी हुई है।
पति का नाम है, तो पत्नी का नदारद, सांसद-विधायक भी लिस्ट में नहीं: आधी रात में लिस्ट आई, सुबह लोग एनआरसी केंद्रों पर थे। कई परिवार ऐसे हैं जिनके आधे लोगों के नाम लिस्ट मेंं नहीं हैं। पति का है तो पत्नी का नहीं। पति-पत्नी का है तो बच्चों का नहीं। एनआरसी के स्टेट कन्वेनर प्रतीक हजेला का नाम भी नदारद है। निचले असम में हालात ज्यादा खराब है। वहां बांग्लादेश से आए लोगों की संख्या भी अधिक है। धुबरी के सांसद बदरुद्दीन अजमल समेत कई विधायकों के नाम सूची में नहीं हैं। वहीं उल्फा प्रमुख परेश बरुवा का नाम में है। जबकि वह दो दशक के ज्यादा समय से असम से गायब हैं।