Monday, January 8, 2018

क्या आपका शरीर दिमाग पर हावी रहता है? जवाब 'हाँ' हो या 'नहीं' इसे अवश्य पढ़ें

एन. रघुरामन (मैनेजमेंटगुरु)
साभार: भास्कर समाचार
रविवार तड़के 5:50 बजे रायपुर की होटल में अलार्म बजा। चूंकि पिछले तीन दिनों से रात 2 बजे बाद सोता रहा था तो मेरे शरीर ने कुछ और मिनट सोना चाहा लेकिन, मेरे दिमाग ने आगाह किया कि मुझे मुंबई की फ्लाइट
पकड़ना है और उसके लिए मुझे 7:45 बजे तक एयरपोर्ट पहुंचना होगा। वैसे भी मैं ओहदे में निचले क्रम पर समझे जाने वाले शरीर को दर्जे में उससे ऊपर वाले दिमाग पर हावी नहीं होने देता। मैं तुरंत उठ गया, तैयार हुआ और मैं एयरपोर्ट पर निर्धारित समय से काफी पहले पहुंच गया। मैंने जब रायपुर एयरपोर्ट में प्रवेश कर चेक-इन किया तो वहां ज्यादा भीड़ नहीं थी। विमान के उड़ान भरने का वक्त था सुबह 8:50 और जेट एयरवेज बोर्डिंग कार्ड पर बोर्डिंग टाइम 8:05 था और बोर्डिंग गेट का नंबर था 4। धीरे-धीरे यात्रियों का आना शुरू हुआ और बोर्डिंग टाइम के ठीक पहले वहां बहुत भीड़ हो गई। ज्यादातर यात्री या तो अपने-अपने गंतव्य स्थानों पर लौट रहे थे अथवा सोमवार से शुरू हो रहे नए हफ्ते के नए असाइनमेंट के लिए आगे की यात्रा के लिए निकल रहे थे। लेकिन, चूंकि रविवार का दिन था तो वे सारे ही तनावमुक्त थे। 
सुबह के 8:15 हो चुके थे पर हवाई जहाज आने के कोई आसार दिख नहीं रहे थे और यात्रियों के चेहरे धीरे-धीरे गंभीर हो रहे थे। चूंकि स्टैंड्स पर अखबार नहीं थे तो यात्रियों के सामने दो ही विकल्प थे- या तो अपने-अपने स्मार्टफोन के साथ खिलवाड़ करते रहें अथवा खाली आंखों से एयरपोर्ट की दीवारें देखते हुए वायुसेवा कंपनी को कोसते रहें। उसी समय कुछ अजीब-सा हुआ। मुंबई के थिएटर ग्रुप 'सावम' की युवा कलाकार रुचि जोशी बोर्डिंग गेट के पास आईं और अपना हाथ वहां टिकाकर सुस्ताने की मुद्रा में खड़ी हो गईं। ऐसा करने का कारण भी था। एयरपोर्ट में बैठने के लिए कोई सीट नहीं बची थी और फिर उनके पास कुछ भारी सामान भी था। स्वाभाविक था कि वे कोई जगह ढूंढ़ रही थीं कि अपने शरीर को सामान उठाने के दर्द से कुछ राहत दे सकें। उन्होंने बोर्डिंग गेट को चुना बिना यह जाने कि उसके बाद क्या होने वाला है। 
शुरुआत में युवा और सुंदर आधुनिका दिखाई दे रही रुचि कतार में अकेली थीं और अन्य यात्री चारों तरफ बिखरे हुए थे। अचानक उनके पीछे सर्पाकार कतार बन गई। शायद ज्यादातर ने उनके मॉडर्न लुक को देखते हुए सोचा हो कि बोर्डिंग गेट पर खड़े रहकर वे उचित ही कर रही हैं। ध्यान रहे कि तब तक 8:35 बज चुके थे और आने वाले विमान के कोई आसार नहीं थे। कोई किसी से बात नहीं कर रहा था। भीड़ अचानक अनुशासित हो गई थी। उस कतार में लंबे समय से खड़े हर व्यक्ति को कुछ तो तकलीफ हो ही रही होगी। और जब ऐसी अनुशासित स्थिति हो तो खामियां खोजना मानवीय कमजोरी है। यात्री वायुसेवा के कर्मचारियों में खामियां ढूंढ़ने लगे खासतौर पर तब जब विमान रवाना होने का समय भी गुजर चुका था। एयरलाइन का स्टाफ लगातार कह रहा था, 'हवाई यातायात बहुत बढ़ गया था, इसलिए कुछ वक्त लगेगा।' लोग अचरज करने लगे कि रायपुर जैसे छोटे केंद्र पर हवाई यातायात कैसे जाम हो सकता है! 
आखिर विमान आया और अचानक एयरलाइन ने बोर्डिंग गेट बदल दिया और अनुशासित भीड़ तेजी से दौड़कर अपनी पहले वाली कतार की जगह या कम से कम कुछ आगे की जगह पाने के लिए तेजी से दौड़ने लगे। सिर्फ रुचि रह गईं, जो इस कतार में पहली थीं और उन्हें पता भी नहीं था कि लोग उनके पीछे लगने लगेंगे। उन्होंने सबसे आखिर में शांति और प्रसन्नता के साथ विमान में प्रवेश किया। रुचि के दिमाग ने उन्हें शरीर को कुछ आराम देने को कहा। अन्य लोगों की हालत यह थी कि उनके शरीर ने रुचि का अनुसरण किया, जबकि दिमाग कह रहा था कि विमान तो कहीं दिख नहीं रहा है। 
फंडा यह है कि आपकी प्रसन्नता इस बात पर निर्भर है कि कौन, किसकी सुनता है? दिमाग के शरीर पर हावी होने की तुलना में शरीर का दिमाग पर हावी होना कष्टदायक है, क्योंकि शीर्ष पर मौजूद कमान हमेशा जानती है कि सही क्या है।