सुप्रीम कोर्ट में नौ न्यायाधीशों की पीठ ने निजता के अधिकार पर शुरू की। बुधवार को निजता के अधिकार के दायरे और मायने को लेकर पीठ और वकीलों के बीच कई सवाल-जवाब हुए। इसे मौलिक अधिकार घोषित करने
की मांग करने वाले दलील दे रहे थे कि ये अधिकार संविधान में मिले समानता, स्वतंत्रता और सम्मान से जीवन जीने के मौलिक अधिकार में सन्नहित है। जबकि कोर्ट की टिप्पणी थी कि फैसला लेने का हर अधिकार निजता का अधिकार नहीं हो सकता। ये प्रत्येक मामले पर अलग-अलग निर्भर करेगा। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। कोर्ट ने कहा स्वतंत्रता का हर पहलू निजता का अधिकार नहीं होता। निजता का अधिकार स्वतंत्रता के अधिकार का एक छोटा हिस्सा है। बहस गुरुवार को भी जारी रहेगी। मुख्य न्यायाधीश जेएस खेहर की अध्यक्षता वाली नौ न्यायाधीशों की संविधान पीठ ये तय करेगी कि निजता का अधिकार व्यक्ति का मौलिक अधिकार है कि नहीं। ‘आधार’ मामले में निजता के हनन की दलील पर कोर्ट निजता के मौलिक अधिकार का मसला विचार के लिए नौ न्यायाधीशों की पीठ को भेजा था। बुधवार को बहस शुरू हुई और वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल सुब्रमण्यम, सोली सोराबजी, श्याम दीवान और अरविन्द दत्तार ने निजता को मौलिक अधिकार बताया और कहा कि ये समानता, स्वतंत्रता और जीवन जीने के मौलिक अधिकार का हिस्सा है। सुब्रमण्यम ने कहा कि स्वतंत्रता का अधिकार संविधान का मूल तत्व है और अगर स्वतंत्रता का अधिकार मौलिक अधिकार है तो निजता इसमें अपने आप शामिल है। निजता को स्वतंत्रता से अलग नहीं किया जा सकता। उन्होंने सवाल उठाते हुए कहा कि क्या निजता के बगैर स्वतंत्रता के अधिकार को पाया जा सकता है। निजता किसी अधिकार की छाया नहीं है बल्कि ये स्वतंत्रता का मूल है। उन्होंने समर्थन में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व फैसलों का विश्लेषण पेश किया। वरिष्ठ वकील सोली सोराबजी ने कहा कि निजता व्यक्ति में सन्नहित एक ऐसा अधिकार है जिसे अलग नहीं किया जा सकता। संविधान के मौलिक अधिकारों में विशेष तौर पर इसका जिक्र न किये जाने का मतलब ये नहीं है कि इसका अस्तित्व ही नहीं है। निजता का बहुमूल्य अधिकार संविधान में दिये गये मौलिक अधिकारों से ही निकलता है। जैसे कि मौलिक अधिकारों में विशेष तौर पर प्रेस की आजादी का जिक्र नहीं है लेकिन इसे अनुच्छेद 9()(ए)(अभिव्यक्ति की आजादी) से निकाला गया है। उन्होंने कहा कि कानून जड़ नहीं है बल्कि ये समय के साथ परिवर्तनीय और गतिशील है।मौलिक अधिकारों के तहत संरक्षित घोषित किया जाएवरिष्ठ वकील श्याम दीवान ने कहा कि भारतीयों की दो पीढ़ियां निजता को मौलिक अधिकार मानती आई हैं। अब इसे पलटा नहीं जा सकता। उन्होंने कोर्ट से कहा कि निजता को मौलिक अधिकारों के तहत संरक्षित घोषित किया जाए। हालांकि कि वे यह नहीं कह रहे कि निजता का अधिकार पूर्ण अधिकार है। वे मानते हैं कि यह प्रत्येक मामले के आधार पर तय होगा। वरिष्ठ वकील अरविन्द दत्तार ने निजता को मौलिक अधिकार न माने जाने के केंद्र सरकार के पेश किए एमपी शर्मा और खड़क सिंह के आठ और छह जजों की पीठ के दो फैसलों का विरोध करते हुए कहा कि उन मामलों का हवाला नहीं दिया जा सकता क्योंकि ये फैसले निजता के अधिकार पर नहीं थे
Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: जागरण समाचार
For getting Job-alerts and Education News, join our Facebook Group “EMPLOYMENT BULLETIN” by clicking HERE. Please like our Facebook Page HARSAMACHAR for other important updates from each and every field.