Saturday, July 1, 2017

सूचना जनहित की नहीं तो यह थर्ड पार्टी की निजता भंग करने जैसा - हाईकोर्ट

पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि सूचना के अधिकार के तहत कोई जानकारी मांगी जाती है तो आवेदक को यह स्पष्ट करना होगा कि उसका उद्देश्य क्या है? यदि सूचना जनहित की नहीं है तो क्यों दी जाए?
यह तो जिस व्यक्ति के संबंध में जानकारी मांगी गई है, उसकी निजता भंग करने जैसा है। इसलिए ऐसी जानकारी नहीं दी जा सकती। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। हाईकोर्ट ने टिप्पणी की कि सूचना के अधिकार का दुरुपयोग करने व सरकारी विभागों पर बेमतलब की जानकारी देने का दवाब नही डाला जा सकता। यह फैसला फरीदकोट निवासी संतोष कुमार की याचिका पर आया है। याची ने आरटीआइ लगाकर पंजाब सरकार से कुछ जानकारियां मांगी थी। याची का कहना था कि उसे जानकारी 30 दिन के भीतर नहीं दी गई, इसलिए वह यह जानकारी मुफ्त हासिल करने का अधिकारी है। 
हाईकोर्ट को याची ने बताया कि जानकारी न देने के मामले में उसने राज्य सूचना आयोग में भी अपील की, लेकिन राहत नहीं मिली। इसलिए उसे हाईकोर्ट की शरण लेनी पड़ी। हाईकोर्ट ने इसपर याची से पूछा कि जानकारी प्राप्त करने का उद्देश्य क्या है? याची की ओर से कहा गया कि एक्ट के अनुसार जानकारी हासिल करने का उद्देश्य बताना जरूरी नहीं है। इसपर हाईकोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि निश्चित रूप से याची को एक्ट के माध्यम से सूचना का अधिकार है, लेकिन याची उसक उद्देश्य बताने को तैयार नहीं है। सुप्रीम कोर्ट हाल ही में जारी एक आदेश को आधार बनाकर स्पष्ट कर चुका है कि यदि संबंधित जानकारी का जनहित से कोई लेना-देना नहीं है तो ऐसी स्थिति में इसे उपलब्ध कराना थर्ड पार्टी की निजता भंग करना है, जिसकी आरटीआइ एक्ट में भी अनुमति नहीं है। पीठ ने कहा कि याची को जानकारी प्राप्त करने के लिए उसका ठोस आधार बताना जरूरी है।
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साभार: जागरण समाचार 
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