एन रघुरामन (मैनेजमेंट फंडा)
29 जनवरी को सुबह 4.45 बजे चेअर-कार कम्पार्टमेंट के दरवाजे खुले नहीं थे। अच्छे कपड़े पहने और बहुत-सा सामान लेकर एक बड़ा परिवार आया। करीब 12 सदस्य होंगे। उसके मुखिया ने दरवाजे पर जोर से लात मारी। जैसे वह टीवी सीरियल सीआईडी का 'दया' हो, जो एक ही किक से किसी भी दरवाजे को तोड़ सकता है। एक दुर्बल, बूढ़ा और मैले कपड़े पहना रेलवे अटेंडेंट एसी चेअर-कार कम्पार्टमेंट के दरवाजों में लगे लॉक खोल रहा था। एक क्षण के लिए वह खफा हो गया। उसने दरवाजा खोलकर बाहर के व्यक्ति को ऐसी नज़रों से देखा कि हमारे सिर शर्म से झुक गए। हालांकि, इन नज़रों ने उसे भी विचलित कर दिया, लेकिन अपने फूले हुए अहंकार और विशेष रूप से महिलाओं बच्चों के सामने अपने किए पर पछतावा जाहिर नहीं करने की इच्छा के कारण उसने परिवार के सदस्यों का ध्यान बंटाने के लिए कहा, 'सूटकेस और बच्चों का ध्यान रखो।' परिवार के साथ 10 साल से कम उम्र के तीन बच्चे थे। यह राउरकेला से भुवनेश्वर जाने वाली स्टील इंटरसिटी एक्सप्रेस थी और अभी भी इसके रवाना होने में 25 मिनट का समय बाकी था।
दस मिनट में ही सब लोग अपनी-अपनी जगह पर ठीक से बैठ गए और उस परिवार के सदस्य की ओर से पहली रिक्वेस्ट आई- सू-सू। आदमी ने लड़के को उठाया और कम्पार्टमेंट में प्लेटफॉर्म की तरफ मुंह करके खड़ा कर दिया। लड़का जैसे यूरीन से कम्पार्टमेंट को धोने लगा हो, जैसे वह जानता हो कि रेलवे ने कई सालों से कम्पार्टमेंट धोए नहीं हैं। उसी समय बूढ़ा रेलवे कर्मचारी प्लेटफॉर्म से गुजरा, तो उस आदमी की ओर देखकर कहा, 'बच्चों को कुछ अच्छा सिखाओ।' इस पर अच्छे कपड़े पहने वह आदमी एक तरह से भौंक ही पड़ा, 'अपना काम करो।' जब ट्रेन आहिस्ता से आगे बढ़ने लगी तो सामान बेचने वाले कई वेंडर कम्पार्टमेंट में गए। इसमें खाने की सबसे बुरी चीज थी, 'बादाम सीजा, बादाम बाजा', जिसका उड़िया में मतलब होता है- उबली हुई मूंगफली और सिकी हुई मूंगफली। जो माता-पिता अपने शरारती बच्चों को व्यस्त करना चाहते थे उन्हें, 'बादाम सीजा, बादाम बाजा' अच्छा उपाय लगा। किंतु किसी भी अभिभावक ने बच्चों को छिलके प्लास्टिक की थैलियों में डालने को नहीं कहा। परिणाम यह हुआ कि दो घंटे में ही मूंगफली के छिलकों से पूरा कम्पार्टमेंट भर गया।
मैंने देखा है कि सामाजिक व्यवहार की अच्छी आदतें नहीं सिखाना सिर्फ ट्रेन-यात्रियों तक ही सीमित नहीं है, विमान से यात्रा करने वालों की भी यही स्थिति है। रविवार को भुवनेश्वर से मुंबई की अोर एआई 670 फ्लाइट ने जैसे ही उड़ान भरी, कहीं से बॉलीवुड के गाने की आवाज आने लगी। चूंकि फ्लाइट 2:25 घंटे की थी और यह रविवार का दिन भी था, इसलिए कुछ यात्री दोपहर के भोजन के बाद कुछ देर झपकी लेना चाहते थे, लेकिन गाने की आवाज की वजह से ऐसा कर नहीं पा रहे थे। कुछ यात्रियों ने एयर होस्टेस से पता करने के लिए कहा कि कौन यह गाने बजा रहा है। वह जानती थी, इसलिए जवाब दिया, 'कुछ बच्चे हैं।' एक यात्री ने सवाल किया, 'क्या बच्चों को कुछ भी करने की इजाजत है।' होस्टेस बच्चों के पास गई और उनसे आवाज कम करने या ईयर प्लग का इस्तेमाल करने का अनुरोध किया। बच्चे अलग-अलग सीट पर बैठे थे और अपने माता-पिता के मोबाइल पर गाने बजा रहे थे। जब होस्टेस ने बच्चों को आवाज कम करने के लिए मना लिया तो जिस व्यक्ति ने एतराज जताया था, कई नजरों ने उन्हें ऐसे देखा जैसे पौराणिक कथा के अनुसार शिवजी ने तीसरा नेत्र खोल दिया हो। कई ऐसे लोग भी थे, जिनका इससे कोई संबंध नहीं था। उस व्यक्ति को मुंबई एयरपोर्ट के कनवेयर बेल्ट पर अपना सामान लेते समय भी 'तीसरी आंखों' का सामना करना पड़ा, जो बच्चों की आज़ादी पर अंकुश लगाने के कारण उसकी खिल्ली उड़ा रही थीं।
फंडा यह है कि अगरहम बच्चों को इस उम्र मेंं सामाजिक व्यवहार की आदतें नहीं सिखाएंगे, तो वे सिविल सोसायटी का सम्मान करना कब सीखेंगे। याद रखिए सिविक्स (नागरिक-शास्त्र) की किताबें वे बातें नहीं सिखा सकतीं जो पेरेंट्स सीखा सकते हैं।
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साभार: भास्कर समाचार
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