Wednesday, February 24, 2016

लाइफ मैनेजमेंट: कुछ ही हैं जो भीतरी समृद्धि को चुनते हैं

एन रघुरामन (मैनेजमेंट फंडा)
वे पिछले 23 साल से गणित के शिक्षक है, लेकिन अगर गणित की भाषा में कहा जाए तो इन वर्षों में उनकी बेलेंस शीट में भौतिक रूप से कोई सुधार नहीं हुआ है। मेरा मतलब है मुनाफा, क्योंकि गणित पूरी तरह भौतिक, विशुद्ध लाभ, अांकड़ें और ऐसी ठोस चीजों का मामला है, लेकिन इनकी उन्हें कोई चिंता नहीं है। उन्होंने अपनी शिक्षा के जरिये छात्रों को गणित, आंकड़े और पैसों के बारे सिखाया और फिर सभी भौतिक चीजों के बारे में भी। ये छात्र बड़े होकर अपने जीवन में सफल महिला-पुरुष बने। 
कुछ लोग खाड़ी देशों में चले गए और कुछ अपने ही राज्य केरल के अन्य स्थानों पर, लेकिन उन्होंने फैसला किया कि वे अपना जीवन स्तर 1993 के स्तर पर ही बनाए रखेंगे। उनके पास कोई सामान नहीं था या था तो के बराबर। सिर्फ खुशी के कलश थे, बहुत सारे कलश। जीवन की सबसे अदृश्य चीज, जिसे सिर्फ महसूस किया जा सकता है। जिन लोगों के पास यह होती है वही इसे समझ सकते हैं और इसका आनंद ले सकते हैं। उनका जीवन आसान नहीं था। कम उम्र के थे तभी पिता का देहांत हो गया। बड़े भाई परिवार की कुछ आर्थिक मदद हो सके, इसलिए नौकरी के लिए खाड़ी के देश में चले गए। फिर उन्होंने अपने से छोटे छह भाई-बहनों की जिम्मेदारी उठाई। तब सभी ने कहा था कि टीचर की नौकरी सबसे स्थिर और सुनिश्चित होती है। उन्होंने बड़े भाई के भेजे 50 हजार रुपए देकर प्राथमिक स्कूल में नौकरी हासिल कर ली। 
नौकरी मिल गई, लेकिन बाद में अहसास हुआ कि यह मुश्किल काम है। जिस स्कूल में उन्हें नौकरी मिली थी, वह घर से मुश्किल से तीन किलोमीटर की दूरी पर था, लेकिन आने और जाने में छह घंटे से ज्यादा का समय लगता था। केरल के मालाप्पुरम में काडालांगाडी पंचायत में अब्दुल मलिक का जन्म हुआ था, यहीं वे बड़े हुए और इसी पंचायत के पादीनात्तामुरी में गणित के टीचर की नौकरी मिली, लेकिन कभी दोनों पंचायतों के बीच पड़ने वाली कादालुंदी नदी पार नहीं की थी। उन्हें स्कूल पहुंचने के लिए दो बस बदलनी पड़ती थीं और आने-जाने में छह घंटे का समय लगता था। वे नौकरी छोड़ भी नहीं सकते थे, क्योंकि इसे पाने के लिए उन्होंने बड़ी राशि चुकाई थी। एक दिन घर लौटते हुए देखा कि एक आदमी तैरकर नदी पार कर रहा है। वह उस पार अपने घर के पास खेत में लगे केले लेने गया था। अगले दिन उस अजनबी ने उन्हें घर लौटने में मदद की। अब तो उनकी जिंदगी बदल गई। उन्हें घर पहुंचने में ठीक 24 मिनट का समय लगा, बिना एक भी पैसा खर्च किए, जबकि बस से जाने में पूरे तीन घंटे लगते थे। यह 1993 का समय था। 
पिछले 23 साल से वे इसी तरह स्कूल जा रहे हैं। केरल के मालाप्पुरम में मुस्लिम लोअर प्रायमरी स्कूल में गणित का यह टीचर हाल ही में तब चर्चा में आया जब तैरकर नदी पार करने वाले इस टीचर की खबर और फोटो अखबारों में छपी, इसमें बीबीसी भी शामिल था। नदी के किनारे पहुंचकर वे टॉवेल में कपड़े बदल लेते हैं। वे प्लास्टिक की एक थैली अपने साथ लेकर चलते हैं। अपनी छाती पर ट्यूब पहनकर वे पानी में उतरते हैं। लंच बॉक्स, सैंडल, प्लास्टिक बैग और एक छाता और बाकी सभी चीजें वे अपने एक हाथ में थामे रखते हैं, जो पानी के ऊपर उठा होता है। दूसरे किनारे पर एक बड़े पत्थर के पीछे वे फिर कपड़े पहन लेते हैं। गणित पढ़ाने के अलावा मलिक गर्मी के दिनों में उन बच्चों को तैरना भी सिखाते हैं, जिन्हें पानी से डर लगता है। गर्मियों में नदी में ज्यादा बहाव नहीं होता। वे नहीं जानते कि उनके छात्र कितना सफल रहे, लेकिन एक बात का पूरा भरोसा है कि उन्होंने बच्चों को यह तो सिखाया है कि प्राकृतिक स्रोतों को नष्ट और प्रदूषित नहीं करना है। उन्होंने पिछले दो दशक में ऐसी पूरी पीढ़ी बनाई है जो प्रकृति की रक्षा करती है। आज मलिक के लिए प्रकृति से खुशी पाने का गणित अलग है, यह सिर्फ गणित की गणना नहीं है। 
फंडा यह है कि जीवनकई अवसर लेकर आता है। जो लोग खुशी जैसे महसूस किए जा सकने वाले मूल्यों का चुनाव करते हैं और उन पर ध्यान केंद्रित करते हैं, वे उनके मुकाबले शानदार जीवन जीते हैं, जो भौतिक वस्तुओं का चुनाव करते हैं।
Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
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