Saturday, February 27, 2016

लाइफ मैनेजमेंट: श्रेष्ठता प्रेम पूर्ण जीवन में भी उतनी ही जरूरी

स्टोरी 1: यहसब सिर्फ एक सप्ताह में हो गया। 30 साल से शादी के बंधन में बंधे इस दंपती की पूरी दुनिया उलट-पुलट हो गई। यासूको कुरोकी की आंखों में अचानक समस्या पैदा हो गई। यह डाइबीटिज के कारण हुई थी और एक सप्ताह में ही देखने की क्षमता पूरी तरह चली गई। उन्हें लगा कि जीवन खत्म हो गया है। यासूको ने दुनिया से खुद को अलग कर लिया और जापान के शिन्तोमी में एकांत में रहने लगीं। उन्हें हमेशा हंसते हुए देखने वाले पति को दुख होता। उन्हें लगा कि हर रोज कम से कम अगर एक या दो लोग भी उनसे मिलने आएं तो पत्नी को अकेलेपन से निकलने में मदद मिलेगी। पहले उनके पति तोशीयूकी कुराकी भी प्यार जताने और पत्नी को खुश रखने के लिए फूलों के गुलदस्ते दिए, लेकिन वे अपनी पत्नी के चेहरे की फीकी मुस्कान से दुखी थे। फिर उन्होंने ऐसा छोटा गार्डन बनाने के बारे में सोचा, जो खुशबू से महक रहा हो, लेकिन फिर उन्होंने अपनी जमीन पर फूलों का समुद्र तैयार करने का फैसला किया, जो देश-दुनिया के पर्यटकों को आकर्षित कर सके। नतीजा यह हुआ कि पत्नी के चेहरे पर मुस्कान लौटने लगी और वह आने-जाने वालों से बातचीत करने लगीं। और देख पाने की अपनी समस्या को भूल गईं। यह तरीका काम कर गया! एक दिन तोशीयूकी ने अपने बाग में एक गुलाबी फूल शिबाझाकुरा, जिसे दलदली पौधे के रूप में भी जाना जाता है, देखा। उन्हें लगा कि इन फूलों की सुंदरता को सिर्फ आंखों से ही नहीं, बल्कि इनकी सुगंध से भी महसूस किया जा सकता है। 
तोशीयूकी ने पूरे दो साल इन चटकीले गुलाबी रंग के फूलों को अपनी पूरी 80 एकड़ जमीन पर रोपने में लगा दिए। और यह फूल उनके घर के चारों और फैल गए। आज उस पहले बीज को रोपने के दस साल बाद यह दंपति फूलों के खेतों में टहलते हुए और यहां आने वाले लोगों से मिलने में अपना दिन बिताता है। इससे यासूको के चेहरे पर मुस्कान भी लौट आई और वह गहरी निराशा से बाहर निकल आईं। इस स्थान को जो बात खास बनाती है वह है - यह उनका निजी निवास है, जहां हर दिन 7000 लोग आते हैं और सच्चे प्यार की बड़ी मिसाल देखकर लौटते हैं। 
स्टोरी 2: अगर आपको लगता है कि इस तरह की सच्चे प्रेम की कहानियां सिर्फ जापान जैसे अमीर देशों में ही होती हैं, हमारे देश में नहीं तो आप गलत हैं। 35 साल की रूपाली मध्यमवर्गीय परिवार का आधार स्तंभ थी। 5 फरवरी 2016 को महाराष्ट्र के अकोला में उसकी मौत हो गई और वह अपने पति अविनाश नाकट पर पांच साल और नौ साल के दोनों बच्चों की मां की तरह देखभाल करने की बड़ी जिम्मेदारी छोड़ गईं। अंतिम संस्कार के बाद अविनाश घर लौटे और उन्होंने कहा कि वे कल से काम पर जाने लगेंगे। समाज में अंतिम संस्कार की प्रक्रिया के उन 13 दिनों में काफी पैसा खर्च किया जाता है, लेकिन उन्होंने इन पर खर्च करने के बजाय उस पैसे से जिला परिषद स्कूल को डिजिटलाइज करने का फैसला किया। 
अगले कुछ दिनों में सामान आने लगा। 26 हजार रुपए का प्रोजेक्टर, 18 हजार रुपए का कम्प्यूटर, 5 हजार रुपए का व्हाइट बोर्ड, ढाई हजार रुपए का होम थियेटर, 8 हजार रुपए की इलेक्ट्रॉनिक फिटिंग और पंखे, 15 हजार रुपए की खिड़की और फ्लोरिंग, कक्षा एक से सात तक के सॉफ्टवेअर के लिए 14 हजार और कुछ अन्य खर्चों को मिलाकर करीब 1.50 लाख रुपए खर्च हुए। और 22 फरवरी 2016 को अकोला की थांडी जिला परिषद के स्कूल का डिजिटल स्कूल के रूप में अविनाश की मां ने रूपाली की याद में उद्‌घाटन किया। अंतिम संस्कार के रस्में निभाने पर पहले दिन गांव के जो लोग अविनाश का विरोध कर रहे थे वे उद्‌घाटन वाले दिन उनके साथ खड़े थे। यहां तक कि कुछ लोगों ने तो बच्चों के लिए स्कूल में कुछ और चीजें जैसे वॉटर प्यूरीफायर जैसी सुविधा देने में भी मदद की। 
फंडा यह है कि श्रेष्ठताकी ओर बढ़ना सिर्फ कॉर्पोरेट तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह आसानी से निजी और लव लाइफ में भी हासिल की जा सकती है।
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साभार: भास्कर समाचार 
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यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं।