हरियाणा में शुरू हुई आरक्षण की लड़ाई में भाजपा पूरी तरह से फंस चुकी है। भाजपा पर जाट बिरादरी के साथ-साथ जट सिख, त्यागी, रोड़ और बिश्नोई को विशेष पिछड़ा वर्ग बनाकर आरक्षण देने का दबाव तो है ही, साथ ही वैश्य, पंजाबी, ब्राrाण और राजपूत समेत अन्य बिरादरी ने भी पार्टी पर आरक्षण देने का दबाव बना दिया है। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। भाजपा में गैर जाट
की राजनीति कर रहे मंत्रियों और विधायकों ने इन बिरादरी के लोगों को आर्थिक आधार पर आरक्षण देने के लिए नायडू समिति से मिलने का समय मांगा है। उन्हें नायडू समिति में गैर जाट मंत्रियों के शामिल नहीं किए जाने पर भी आपत्ति है। गैर जाट मंत्री और विधायक आर्थिक आधार पर 10 प्रतिशत आरक्षण अलग से देने की मांग रहे हैं। भाजपा जाट समुदाय के लोगों को आरक्षण का लाभ देने का वादा पहले ही कर चुकी है। पिछली हुड्डा सरकार ने विशेष पिछड़ा वर्ग बनाकर जाटों के साथ-साथ जाट सिख, रोड़, त्यागी और बिश्नोई को अलग से 10 प्रतिशत आरक्षण दिया था। भाजपा के गैर जाट मंत्रियों व विधायकों में इस बात का रंज है कि आरक्षण का आधार आर्थिक नहीं बनाया जा रहा है, जबकि भाजपा शुरू से ही पंजाबी, वैश्य, राजपूत और ब्राrाण समेत अन्य बिरादरी के लोगों की राजनीति करती आई है। भाजपा ने पिछले चुनाव में 27 जाट उम्मीदवारों को टिकट दिए थे, जिनमें से 6 ही चुनाव जीत सके, जबकि 63 गैर जाट उम्मीदवारों में से 41 ने चुनाव जीता है। पार्टी में गैर जाट विधायकों की संख्या 7 गुणा अधिक होने के बावजूद वह दबाव में हैं। केंद्रीय शहरी विकास मंत्री वेंकैया नायडू कई दिनों से आरक्षण का रास्ता निकालने के लिए बैठकें कर रहे हैं। मुख्यमंत्री मनोहर लाल और जाट नेताओं से उनकी बातचीत हो चुकी है। बुधवार को नायडू ने सांसदों को भी बातचीत के लिए बुलाया था, जहां पार्टी पूरी तरह से जाट व गैर जाट में बंटी नजर आई। केंद्रीय मंत्री राव इंद्रजीत और कुरुक्षेत्र के सांसद राजकुमार सैनी ने साफ तौर पर कहा कि जाट समुदाय को आरक्षण देने से उन्हें परहेज नहीं है, लेकिन ओबीसी के लिए पहले से तय 27 प्रतिशत आरक्षण से छेड़छाड़ नहीं होनी चाहिए।
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साभार: जागरण समाचार
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