Tuesday, February 23, 2016

लाइफ मैनेजमेंट: भविष्य से प्रेम करने में युवाओं की मदद करें

एन. रघुरामन (मैनेजमेंट फंडा)
मान लीजिए कि आपका काम ऐसा है कि आपको हर तीसरे दिन अकेले यात्रा करनी पड़ती है। ऐसी ही एक यात्रा में आपके कानों में ईयर फोन लगा है और आप गा भी रहे हैं, लेकिन बहुत ऊंची आवाज में नहीं। आपके कदम ताल के साथ थाप दे रहे हैं। इस संगीत का जरिया आपका मोबाइल नहीं है, जिसकी बैटरी को तो चार्ज
किए जाने की जरूरत है। इस संगीत का स्रोत आपकी सीट के पास लगा म्यूजिक बोट है। वॉइस कमांड से यात्री इस म्यूजिक बोट का इस्तेमाल अपनी पसंद का संगीत सुनने के लिए कर सकते हैं। और यह यात्रा के अनुभव को शानदार बनाता है। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। कल्पना कीजिए कि आपके मोबाइल की बैटरी 10 प्रतिशत से भी कम बची है और यात्रियों में इस बात को लेकर कई झड़पें हो चुकी हैं कि किसका मोबाइल पहले चार्ज होगा। चूंकि आप संगीत के आनंद में डूबे हैं, इसलिए आप यात्रा के इस समय को बर्बाद नहीं करना चाहते। आप ट्रेन अटेंडेंट के पास जाते हैं बैटरी बैंक के लिए भुगतान करते हैं और अपनी सीट पर आकर फिर से ईयर प्लग लगाकर संगीत का आनंद लेने लगते हैं और उधर, आपके फोन की बैटरी भी चार्ज होने लगती है। पावर बैंक किसी फिजिकल ऑन-ऑफ बटन के साथ नहीं आता, बल्कि आप इसे सिर्फ बारकोड रीडर के जरिये ही ऑन-ऑफ कर सकते हैं। पावर बैंक इश्यू होने और बिल बनते वक्त यह बारकोड जारी होता है, ताकि कोई पावर बैंक को अपने साथ ले जा सके। 
कल्पना कीजिए कि धीरे से ट्रेन स्टेशन पर पहुंचती है। हर यात्री खिड़की से बाहर की ओर देख रहा है। पूरा प्लेटफॉर्म एेतिहासिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, कलात्मक, परंपरागत, कृषि और शहर के औद्योगिक लैंडमार्क से चमक रहा है। जो लोग कुछ स्थानीय शिल्प यादगार के रूप में लेना चाहते थे वे उतरते हैं और शहर की कुछ कलात्मक चीजें अपने ड्रॉइंग रूम शोकेस में रखने के लिए खरीदते हैं। शिल्पकार उन्हें साथ में एक छोटी बुकलेट भी देते हैं, जिसमें बताया गया है कि वे और क्या ले सकते हैं। कुछ यात्री स्थानीय भोजन खरीदते हैं ताकि उन्हें ट्रेन की पेंट्री कार का निरस भोजन लेना पड़े। यह आपकी यात्रा के आनंद में एक और आयाम जोड़ देता है।
कल्पना कीजिए कि खाने की कुछ चीजें खरीदने के बाद आप ट्रेन में चढ़ने की कोशिश कर रहे हैं और व्हील चेयर पर बैठे कुछ यात्रियों के लिए ट्रेन की सीढ़ी से एक रैंप खुलता है। यह आपके सह यात्री हैं। आपके चढ़ते ही रैंप बंद हो जाता है और ट्रेन अगले गंतव्य की ओर बढ़ने लगती है। कल्पना कीजिए कि अगले बड़े स्टेशन पर आपका दोस्त ठीक आपकी सीट तक आपसे मिलने जाता है, क्योंकि वह अपने मोबाइल फोन पर जिस एप का इस्तेमाल कर रहा है उसमें उसे आपके नाम के साथ सीट नंबर, कोच नंबर, कोच की पोजिशन, ट्रेन के पहुंचने और ट्रेन के निकलने के समय की जानकारी मिल जाती है।
यह सेवा एसएमएस फॉर्मेट में भी उपलब्ध है ताकि यह सेवा उस बड़े वर्ग तक पहुंच सके, जो स्मार्ट फोन का इस्तेमाल नहीं करता है। अगर आप सोच रहे हैं कि मैं किसी अंतरराष्ट्रीय ट्रेन सर्विस के बारे में बात कर रहा हूं तो आप गलत हैं। यह उन कुछ डिजाइन में से एक है, जो नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ डिजाइन बेंगलुरू ने तैयार किए हैं। इसे भारतीय रेलवे को पश्चिमी देशों की ट्रेनों की सुविधाओं के अनुसार विकसित करने के लिए नई संभावनाएं तलाशने की जिम्मेदारी दी गई है। यह कॉलेज 'भारतीय रेलवे के पुनर्रुद्धार' प्रोजेक्ट पर काम कर रहा है। हमारी नई पीढ़ी भविष्य के बारे में कल्पनाएं करने के मामले में सिर्फ व्यावहारिक है, बल्कि बहुत अच्छी भी है। वे इस प्रोजेक्ट को कॉलेज प्रोजेक्ट की तरह कर रहे हैं। आप उन्हें कोई ऐसा प्रोजेक्ट दीजिए जो प्रेरणादायक और क्रिएटिव हो। और मुझे पूरा भरोसा है कि वे इसे पूरा करेंगे। देखते हैं आने वाला बजट क्या करता है।
फंडायह है कि कॉलेजप्रोजेक्ट ऐसे होने चाहिए, जो युवा पीढ़ी की हर क्षमता को सामने लाए और यह भविष्य में उनकी बड़ी सफलता के दरवाजे भी खोले।
Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभार: भास्कर समाचार 
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