एन रघुरामन (मैनेजमेंट फंडा)
भारतीय रेलवे में यात्रा करना और वह भी 24 घंटे वाली रातभर की यात्रा किसी के लिए भी चुनौतीपूर्ण बन जाती है। टॉयलेट की बुरी हालत सबसे पहले किसी भी यात्री के दिमाग में आती है,क ्योंकि कुछ घंटे की यात्रा में भी कम से कम एक बार तो टॉयलेट के इस्तेमाल पर मजबूर होना पड़ता है। फिर रात गुजारनी हो तो गंदी
चादरें ध्यान में आती हैं और आखिर में भोजन की गुणवत्ता आती है, जिसे दयनीय ही कहा जा सकता है। किंतु जब किसी युवा माता को भारतीय रेलवे में किसी भी प्रकार की यात्रा करनी हो तो यह माउंट एवरेस्ट चढ़ने से भी कठिन हो जाता है। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। इसकी मूल वजह यह है कि मां को पता नहीं होता कि बच्चा को कब क्या समस्या पैदा हो जाए और शिशु की दृष्टि से प्रतिकूल माहौल में वह अनपेक्षित स्थितियों का कैसे सामना करेगी। ठीक यही युवा मां कुसुम यादव के साथ पिछले साल दिसंबर मध्य में हुआ। वे वाराणसी से मंडुआडीह-नई दिल्ली सुपरफास्ट एक्सप्रेस में अपने नन्हे बेटे अवीश के साथ 24 घंटे की यात्रा में किसी भी आपात स्थिति के लिए लगने वाली चीजें लेकर सवार हुईं। उन्होंने यात्रा में लगने वाली चीजों पर बहुत बारीकी से विचार करने योजना बनाई थी।
हालांकि, उन्होंने कोहरे के कारण ट्रेन के पहुंचने में विलंब के बारे में नहीं सोचा था, क्योंकि भारत की राजधानी दिल्ली में हर शीत ऋतु में कोहरे की समस्या रहती है। छोटा-सा प्यारा बालक अवीश सारे यात्रियों का ध्यान खींच रहा था और उनके लाड़-प्यार और मां की देख-रेख में यात्रा का पूरा आनंद ले रहा था। जैसे ही उत्तर भारत की ठंड के चलते कोहरे ने अपना असर दिखाना शुरू किया, ट्रेन की रफ्तार क्रमश: धीमी पड़ने लगी। रातभर की यात्रा धीरे-धीरे कुसुम के लिए एडवेंचर जैसी हो गई, क्योंकि ट्रेन अपने तय समय से घंटों पीछे चल रही थी। हालांकि, वे पूरी तैयारी से आई थीं, लेकिन यात्रा का वक्त बढ़ने के साथ बच्चे के खाने-पीनी की सामग्री खत्म हो गई। भूख से बच्चा व्याकुल हो गया और मां बदहवास। कुसुम ने दिल्ली में अपने पति सत्येंद्र यादव को आपात संदेश भेजकर आग्रह किया कि वे उनकी मदद के लिए कुछ करें। हक्के-बक्के यादव ने इलाहाबाद,नफतेहपुर और कानपुर जैसे बड़े स्टेशनों पर मित्रों से मदद के बारे में सोचा कि कोई ऐसा मिल जाए, जो बच्चे के लिए बेबी फूड जाकर दे आए। बहुत सोचकर भी ऐसा कोई व्यक्ति उनके ध्यान में नहीं आया, जो उनकी मदद कर सके। यादव ने सिर्फ आसमान की ओर देखकर हताशा में कहा, 'हे प्रभु।' शायद प्रभु ने ही उन्हें उनके हमनाम से मदद लेने की बुद्धि दी। अगले ही पल यादव ने रेलमंत्री सुरेश प्रभु को ट्वीट करके बच्चे के लिए उनसे मदद मांगी।
ये लीजिए! रेलमंत्री प्रभु ने भी यादव की गुहार पर तत्काल ध्यान देकर इलाहाबाद डिविजन के डीआरएम को 'बिना टिकट' नन्हे यात्री के लिए बेबी फूड की व्यवस्था करने के लिए आवश्यक कदम उठाने को कहा। उनकी ओर से तत्काल पहल किए जाने का यह असर हुआ कि ट्रेन फतेहपुर में प्रवेश करने के पहले ही स्टेशन मास्टर मां-बेटे की मदद के लिए तैयार खड़े थे। इतना ही नहीं बाद में जब ट्रेन कानपुर स्टेशन पहुंची तो बच्चे के लिए और बिस्कुट दूध तैयार था। यह सब भारतीय रेलवे के प्रभुजी के कारण हुआ। शायद इस घटना ने प्रभु की आंखें खोल दीं और इस वर्ष के रेल बजट में उन्होंने ट्रेन में गरम दूध, गरम पानी और अन्य नियमित खाद्य पदार्थों के साथ बेबी फूड उपलब्ध कराने का निर्णय लिया है।
भारतीय रेलवे कैटरिंग एवं टुरिज़्म कॉर्पोरेशन (आईआरसीटीसी) के पायलट प्रोजेक्ट के तहत शताब्दी सहित सात ट्रेनों में बेबी फूड मुुहैया कराया जाएगा। जहां अधिकारी इस पर अमल के तरीके खोज रहे हैं, वहीं अब ऑर्डर देने पर फूड आइटम सप्लाई किए जाएंगे। रेलवे के शीर्ष अधिकारी नेसले और हिंदुस्तान लीवर जैसी कंपनियों के साथ करार करने में लगे हैं ताकि ट्रेनों में उपलब्ध कराया जाने वाला बेबी फूड स्वास्थप्रद और अच्छी गुणवत्ता का हो। आने वाले महीनों में युवा माताएं देखेंगी कि ट्रेनों में सीलबंद बक्सों में बेबी फूड उपलब्ध कराया जा रहा है ताकि किसी खाद्य सामग्री में किसी भी प्रकार की मिलावट हो।
फंडाह है कि अच्छेप्रशासक के लिए सिर्फ एक खराब उदाहरण या समस्या ही बड़ी पहल करके उस समस्या का समाधान करने के लिए पर्याप्त होती है।
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साभार: भास्कर समाचार
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