Friday, February 5, 2016

लाइफ मैनेजमेंट: काल्पनिक कहानी भी दे जाती है प्रेरणा

एन रघुरामन (मैनेजमेंट फंडा)
मोहम्मद अली ने कहा था,' सामने मौजूद पहाड़ नहीं, जूते में पड़ा कंकड़ चढ़ने में थका देता है।' 
'शांति कंस्ट्रक्शंस मैं इस नाम को आसमान पर लिखा देखना चाहता हूं।' यह उन कई मशहूर संवादों में से है, जो 1978 की हिट फिल्म 'त्रिशूल' में विजय ने बोले थे। किरदार अमिताभ बच्चन ने निभाया था और यश चोपड़ा ने फिल्म बनाई थी। दो साल बाद फिल्म कभी-कभी में अमिताभ बच्चन की पत्नी की भूमिका निभाने वाली वहीदा रहमान त्रिशूल फिल्म में उनकी मां बनी थीं। पूरी फिल्म में उनकी उपस्थिति हावी रहती है, हालांकि, किरदार स्क्रीन पर बहुत ही कम समय के लिए आता है। मां शांति के प्रति समर्पण की ही वजह से विजय गरीबी से ऊपर उठना चाहता है, भले ही कोई भी रास्ता क्यों अपनाना पड़े। शांति के नाम पर ही वह कंस्ट्रक्शन कंपनी स्थापित करता है। 
हममें से कई लोगों के लिए एक बॉक्सर, एक जुझारू व्यक्ति रियल लाइफ मोहम्मद अली प्रेरणा हो सकते हैं, लेकिन राजा नाइक के लिए तो विजय ही प्रेरणा बना था। 'त्रिशूल' का स्क्रीन हीरो और कंगाल आदमी, जो सिर्फ तीन घंटे में रियल इस्टेट का बादशाह बन जाता है। राजा के दिमाग में आग जगाने के लिए थियेटर के अंधेरे कमरे में बिताए गए वे तीन घंटे काफी थे। उसने कहानी से प्रेरणा ली और भरोसा किया कि सपनों को सच किया जा सकता है। वह भी रियल इस्टेट क्षेत्र में बादशाह बनना चाहता था। और इस विश्वास के सहारे वह तब के बॉम्बे और आज के मुंबई जा पहुंचा। और फिर टूटे हुए दिल से हारकर लौटा, लेकिन जैसे विजय फिल्म में अपने पिता के खिलाफ लगातार योजनाएं बनाता रहता है, वह भी हमेशा सही अवसर की तलाश में रहा। 70 के दशक के अंतिम वर्षों में राजा ने अपनी पढ़ाई छोड़ दी। तब वह पहले प्री-यूनिवर्सिटी कोर्स में था। उसने अपने दोस्त दीपक के साथ पार्टनरशिप की और फुटपाथ पर शर्ट बेचने का फैसला किया। दोनों ने 10 हजार रुपए एकत्र किए और तमिलनाडु के तिरुपुर जाने का फैसला किया। तिरुपुर बड़ा गारमेंट और टैक्सटाइल हब था। जैसे 'त्रिशूल' में विजय की मां थी वैसे ही राजा की मां को भी वह प्रिय था। मां ने उसे बिज़नेस जमाने के लिए जो भी उसके पास था वह दे दिया। मां ने यह ऐसे जमा किया था जैसे चिड़िया अपने घोंसले में तिनके जमा करती है। उन्होंने 50 रुपए नग के हिसाब से शर्ट खरीदे। इन्हें एसटी बस में चढ़ाकर बेंगलुरू लाए और 100 रुपए के हिसाब से बेचे। इस तरह उन्हें करीब 100 प्रतिशत का मुनाफा हुआ। 
इस शुरुआती सफलता से खुश होकर दोनों दोस्तों ने मुनाफे के पैसों को फिर से निवेश कर दिया और बेचने के लिए और सामान भी लाने लगे। वे एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते जैसे उनके पैरों में पहिये लगे हों। यह सिर्फ शुरुआत थी। उन्होंने तय कर लिया था कि वे तब तक आराम नहीं करेंगे जब तक पैसों का भंडार हो जाए। तीन वर्षों में उन्होंने अच्छा-खासा बिज़नेस खड़ा कर लिया और इसमें कोल्हापुरी चप्पल और अन्य फुटवियर भी जोड़ लिए। पार्टनर के अलग हो जाने के बाद राजा ने गरीबी को जड़ से मिटा देने की ठानी और आज कई कारोबारों से उनका 60 करोड़ से ज्यादा का टर्नओवर है। इनमें एमसीएस लॉजिस्टिक्स कंपनी इंटरनेशनल लॉजिस्टिक्स और शिपिंग का काम करती है। अक्षय इंटरप्राइजेस पैकेजिंग, जाला बिवरेजेस पेकेज्ड पानी बनाती है, पर्पल हेज बेंगलुरू में ब्यूटी सलून और स्पा चलाती है। इसके अलावा तीन पार्टनर के साथ नुत्री प्लांट है। यह कंपनी सेंट्रल फूड टेक्नालॉजिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट के साथ एनर्जी बार और चिया राइस से बने ऑइल प्रोडक्ट लाने पर काम कर रही है। राजा जो खुद एक दलित हैं, कर्नाटक के दलित इंडियन चैम्बर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज के अध्यक्ष हैं। वे अभावग्रस्त बच्चों के लिए कलानिकेतन एजुकेशन सोसायटी के बेनर तले स्कूल भी चलाते हैं। आज भी उनके लक्ष्य 'त्रिशूल' के विजय जैसे ही हैं और वे अपनी कंपनी को 100 करोड़ रुपए के क्लब में ले जाना चाहते हैं। 
फंडा यह है कि सफलताके लिए आपको मोटिवेटर की और कहानी की जरूरत होती है, चाहे वह काल्पनिक हो या असली। 

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साभार: भास्कर समाचार 
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