Wednesday, February 10, 2016

सरकारी कर्मियों के बच्चों की शिक्षा के 'सरकारी खर्च' को कोर्ट में चुनौती

हरियाणा में सरकारी अधिकारियों, कर्मचारियों और जन प्रतिनिधियों के बच्चों की शिक्षा के रिइंबर्समेंट के विरोध में पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई है। याचिका में कहा है कि जब प्रदेश में आठवीं तक मुफ्त शिक्षा प्रदान की जा रही है तो सरकारी अमले को उनके बच्चों की निजी स्कूलों की फीस कैसे रिइंबर्स की जा रही है। हाईकोर्ट ने याचिका की सुनवाई स्थगित कर दी है। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। एक एडवोकेट ने एडवोकेट अंकित ग्रेवाल के माध्यम सेे दायर याचिका में आरोप लगाया है कि सरकारी स्कूलों की दशा इसलिए दयनीय है, क्योंकि सरकारी मशीनरी चलाने वाले अधिकारियों व जनप्रतिनिधियों के अपने बच्चे निजी कांवेंट स्कूलों में पढ़ते हैं। स्कूलों में पीने के पानी की व्यवस्था नहीं है, छात्राओं के लिए अलग शौचालय नहीं है और यहां तक कि शिक्षक अयोग्य भर्ती किए गए। सरकारी अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों पर बच्चों को सरकारी स्कूलों में पढ़ाने का फरमान लागू किया जाए तो वह सरकारी स्कूलों की ओर अधिक ध्यान देंगे। यह भी आरोप लगाया है कि सरकारी स्कूलों के प्रति अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों की बेरुखी के कारण ही शिक्षकों की भर्ती मेरिट पर नहीं होती। हरियाणा की पांच बड़ी शिक्षक भर्तियां हाईकोर्ट में फंसी हुई हैं, इनमें से दो भर्तियां हाईकोर्ट ने रद्द कर दीं और तीन अन्य पर अभी संशय बरकरार है। याचिकाकर्ता ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कमोबेश हरियाणा में सरकारी अधिकारियों, कर्मचारियों और जनप्रतिनिधियों के बच्चों की एडिड व निजी स्कूलों में शिक्षा के खर्च की रिइंबर्समेंट देने के समय-समय पर जारी हुए आदेश रद्द करने की मांग की है।
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साभार: अमर उजाला समाचार 
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