हरियाणा में अब पढ़े-लिखे लोग ही पंचायत चुनाव लड़ सकेंगे। इस संबंध में हरियाणा सरकार के पंचायत राज अधिनियम (संशोधन) 2015 को चुनौती देने वाली राजबाला, कौशल्या और प्रीत सिंह की याचिका को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया है। दरअसल पंचायत चुनाव लड़ने के लिए नियम में किए संशोधन पर सुप्रीम कोर्ट ने
15 सितंबर को अंतरिम रोक लगा दी थी। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। राज्य सरकार के नए नियमों के मुताबिक पंचायत चुनाव लड़ने के लिए प्रत्याशी को, जनरल के लिए दसवीं पास, दलित और महिला के लिए आठवीं पास होना जरूरी कर दिया गया है। इसके साथ ही दलित महिला के मामले प्रत्याशी का पांचवी पास होना जरूरी बनाया गया है। इसके अलावा बिजली बिल का बकाया होने, बैंक का लोन न चुकाने वाले और गंभीर अपराधों में चार्जशीट होने वाले लोग भी चुनाव नहीं लड़ पाएंगे। इसके साथ ही प्रत्याशी के घर में शौचालय होना भी जरूरी होगा। 70 पेज के फैसले में कोर्ट ने कहा है कि हरियाणा पंचायत राज्य एक्ट संशोधन से संविधान का उल्लंघन नहीं हुआ है। यह जरूरी है कि चुने हुए प्रतिनिधि शिक्षित हों। ताकि वह अपने कर्तव्यों का निर्वहन सही ढंग से कर सके । शौचालय की अनिवार्यता को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि टॉयलेट बनाने को लेकर राज्य सरकार सहायता देती है, ऐसे में टॉयलेट की अनिवार्यता का फैसला सही है। भारत में खुले शौच करने की कुप्रथा के खिलाफ गांधी जी भी थे। याचिकाकर्ता ने कहा कि सरकार ने गलत आंकड़े पेश किए हैं। सही में यह संख्या 43 नहीं बल्कि 64 फीसद है और अगर दलित महिलाओं की बात करें तो ये संख्या 83 फीसद तक पहुंच जाती है। दावा किया कि सरकार ने यह आंकड़ा प्राइमरी स्कूलों के आधार पर दिया है। घरों की संख्या 2012 के आधार पर की गई जबकि टॉयलेट आज के आधार पर। इसी तरह राज्य सरकार ने 20 हजार स्कूलों में प्राइवेट स्कूलों को भी गिना है, जबकि हकीकत यह है कि राज्य में दसवीं के लिए सिर्फ 3200 स्कूल हैं यानी आधे गांवों में दसवीं तक के स्कूल तक नहीं हैं।
पंचायत चुनाव के लिए लागू शर्तो का विरोध करने वाले तीनों याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर पुनर्विचार याचिका दाखिल करने की बात कही है। इसके लिए पंचायत चुनाव लड़ने के इच्छुक करीब 64 प्रतिशत लोगों की दावेदारी खत्म होने को आधार बनाया जाएगा।1सुप्रीम कोर्ट में लड़ाई लड़ने वाली हिसार की कौशल्या कैमरी, फतेहाबाद की राजबाला और रोहतक के प्रीत सिंह ने अपने अधिवक्ता विक्रम मित्तल के माध्यम से पुनर्विचार याचिका दायर करने की बात कही है। दोनों महिलाएं जनवादी नेता जगमति सांगवान की संस्था से जुड़ी हैं। मित्तल ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट की डबल बेंच यदि चाहे तो पुनर्विचार याचिका सुनवाई के लिए स्वीकार कर सकती है। उसके खारिज करने के बाद विकल्प नहीं बचता, क्योंकि दो सदस्यीय खंडपीठ के न्यायाधीशों में फैसले को लेकर विरोधाभास नहीं था।
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साभार: जागरण समाचार
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