पराली जलाने से फैलने वाले प्रदूषण को रोकने के लिए प्रशासनिक स्तर पर किसानों को पराली न जलाने की हिदायतें दी जाती है। वहीं अब तक प्रदूषण का कारण बनने वाली पराली पर्यावरण के लिए वरदान साबित होने वाली है। गुरु जंभेश्वर विश्वविद्यालय के पर्यावरण वैज्ञानिक प्रो. नरसी बिश्नोई ने
पराली को वरदान में बदलने का बीड़ा उठाया है। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। बता दें कि सरकार ने पेट्रोल की बढ़ती खपत को देखते हुए इसमें बायो-एथनोल का प्रयोग करने के आदेश दिए हैं। इसके तहत 10 प्रतिशत बायो-एथनोल को पेट्रोल में मिलाया जाता है। मगर, बायो- एथनोल तैयार करने में सरकार को भारी खर्च उठाना पड़ रहा है। मौजूदा समय में सरकार गन्ने से बायो - एथनोल बना रही है जिससे चीनी के उत्पादन पर असर पड़ने लगा है। इसी समस्या को हल करने के लिए पर्यावरण वैज्ञानिकों को जैविक वेस्ट से बायो एथनोल बनाने का जिम्मा सौंपा है। इसी कडी में प्रो. नरसी बिश्नोई धान व गेहूं की पराली से बायो-एथनोल बनाने को लेकर शोध कार्य कर रहे हैं।
यूजीसी ने सौंपा प्रोजेक्ट: यूजीसी ने विशेष रूप से यह प्रोजेक्ट गुजवि के पर्यावरण विभाग को दिया गया है। इस विषय पर प्रो. नरसी बिश्नोई ने यूजीसी को एथनोल प्रोडेक्शन पर रिपोर्ट तैयार कर जमा करवाई थी। इसके बाद यूजीसी ने पराली से बायो एथनोल बनाने का जिम्मा उन्हे सौंपा है। पूर्व प्रोजेक्ट में उन्होंने कॉटन, धान व गन्ने के वेस्ट से बायो-एथनोल की स्थिति की जांच की थी। पराली के ऊपर लिग्नोसेल्योलोजिक एन्जाइम बायोमास की एक परत पाई जाती है। यह परत इतनी मजबूत होती है । यह जल्दी से भूमि में गलती नहीं है और किसान द्वारा बिजाई की गई फसल को नुकसान पहुंचाती है। यही कारण है कि किसान पराली को जलाते हैं। मगर पराली जलाने से वातारण में कार्बन डाइआक्साइड की मात्र बढ़ती है जो कि तापमान को बढ़ाती है।
बायो एथनोल के हालात: देश में मौजूदा समय में गन्ने से बायो एथनोल बनाया जा रहा है। इससे गन्ने की उत्पादन क्षमता पर असर पड़ता है। वहीं चीनी की मांग की पूर्ति नहीं होती है। सरकार को इस प्रोडक्शन से दो तरफा नुकसान हो रहा है।
बायो एथनोल के हालात: देश में मौजूदा समय में गन्ने से बायो एथनोल बनाया जा रहा है। इससे गन्ने की उत्पादन क्षमता पर असर पड़ता है। वहीं चीनी की मांग की पूर्ति नहीं होती है। सरकार को इस प्रोडक्शन से दो तरफा नुकसान हो रहा है।
12 प्रतिशत बायो एथनोल: प्रो. नरसी बिश्नोई ने बताया कि गेहूं व धान की पराली में बायो एथनोल को लेकर शोध जारी है। शोध में सामने आया है कि गेहूं व धान की पराली में 12 प्रतिशत तक बायो एथनोल पाया जाता है। उन्होंने बताया कि बायो-एथनोल निकालने के लिए पराली को कई प्रक्रियाओं से गुजारना पड़ता है।
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साभार: जागरण समाचार
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