यूरोपीय का स्वीडन जल्द ही दुनिया का कैश-फ्री देश होने वाला है। वहां के अधिकतम लोग कार्ड का इस्तेमाल करके भुगतान करने को प्राथमिकता देने लगे हैं। कंपनियां भी इस ट्रेंड में शामिल हैं। कई प्रमुख बैंकों ने नगद व्यवहार काफी पहले से बंद कर दिया है। इसमें महत्वपूर्ण भूमिका उन इनोवेशन की हैं, जिनसे लोगों की जिंदगी आसान हो रही है। कार्ड के अलावा एप से भुगतान का भी ट्रेंड बढ़ रहा है, जो खासतौर पर युवा इस्तेमाल कर रहे हैं। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। इस इलेक्ट्रॉनिक पेमेन्ट प्रणाली से वहां क्या बदलाव हो रहे हैं, जानिए-
स्वीडन इनोवेशन से दुनिया में नई पहचान बना रहा है। कैश-फ्री देश की। प्रत्येक जगह दुकानों पर कार्ड रीडर होते हैं, लोग भी उनसे ही पैमेंट करते हैं। यहां तक कि स्ट्रीट वेंडर भी कार्ड रीडर रखते हैं, ताकि किसी भी तरह से ग्राहकों को परेशान होना पड़े।
यह उस स्वीडन में हो रहा है, जो टेक फॉरवर्ड देश कहलाता है। इसी देश ने ऑनलाइन म्यूजिक स्ट्रीमिंग कंपनी स्पोटिफाई और कैंडी क्रश मोबाइल गेम दिया है। यहां के मशहूर अब्बा म्यूज़ियम पर चर्चित पॉप ग्रुप ने 'मनी-मनी-मनी' लिख दिया है। यानी नगद लेन-देन पिछली सदी की बात हो चुकी है इसलिए नोट या सिक्के स्वीकार करें। इसके सदस्य योर्न उल्वायस तो कहते हैं, हम समय के पीछे नहीं जाना चाहते हैं। हमें लगता है कि नगद लेन-देन करना गुजरे समय की बात हो गई है। राजधानी स्टाकहोम के अलावा दूसरे शहरों में भी यह ट्रेंड बढ़ रहा है। मुझे लगता है कि जल्द ही यह देश दुनिया में पहला कैश-फ्री देश कहलाएगा।
स्वीडन की ऐसी पहचान बनने का बड़ा कारण वहां लगातार होते इनोवेशन हैं। उनके बूते डिजिटल पेमेन्ट प्रणाली आसान हो पाई है। यह व्यावहारिक भी है। देश की प्रमुख बैंकों ने काफी पहले से नगदी देना स्वीकारना बंद कर दिया है। ऐसा नहीं है कि इलेक्ट्रॉनिक पेमेन्ट प्रणाली से सभी खुश हैं। उपभोक्ता संगठनों एवं आलोचकों ने इसमें प्राइवेसी का खतरा और संगठित अपराध बढ़ने की चेतावनी दी है। देश के विधि मंत्रालय के अनुसार वर्ष 2014 में इलेक्ट्रॉनिक धोखाधड़ी के अपराधों की संख्या 1.4 लाख थी, जो एक दशक पहले की दुलना में दुगुनी से ज्यादा है।
आलोचक कहते हैं- बुजुर्ग और शरणार्थी इस प्रणाली में हाशिये पर हैं। जो युवा मोबाइल एप से भुगतान कर रहे हैं, मोबाइल फोन से लोन ले रहे हैं, उन पर कर्ज में डूबने का खतरा है। स्वीडिश पुलिस फोर्स के पूर्व डाइरेक्टर एवं इंटरपोल के पूर्व प्रेसीडेंट योर्न कहते हैं, अगर सोसाइटी कैशलेस की ओर जाएगी, तो जोखिम खत्म की जा सकती है। उन्हीं की तरह योर्न उल्वायस कैश-फ्री पर कहते हैं कि इससे निजी सुरक्षा कई गुना बढ़ जाती है, देश को कैश-फ्री की ओर बढ़ना चाहिए। ऐसा इसलिए क्योंकि कुछ साल पहले उनके बेटे के साथ दो बार लूटपाट की घटनाएं हो चुकी हैं। यूरो-मॉनीटर इंटरनेशनल की रिसर्च रिपोर्ट के अनुसार स्वीडन की अर्थव्यवस्था में नोटों और सिक्कों का चलन केवल दो प्रतिशत, जबकि अमेरिका में 7.7 और यूरोप में 10 प्रतिशत है। इसलिए कहना चाहूंगी कि स्वीडन में कार्ड ही किंग है। वर्ष 2013 में डेबिट एवं क्रेडिट कार्ड से 2.4 अरब ट्रांजेक्शन किए गए थे। जबकि 15 साल पहले 21.3 करोड़ ट्रांजेक्शन इनसे हुए थे। लेकिन जब प्लास्टिक के उपयोग को लेकर अलग तरह की प्रतिस्पर्धा छिड़ी है, ज्यादातर लोग प्रतिदिन के लेन-देन के लिए एप का इस्तेमाल कर रहे हैं।
देश की बड़ी बैंकें एसईबी, स्वीडबैंक, नॉर्डिया एवं अन्य बैंक अपनी शाखाओं में नगद राशि नहीं रखती हैं ना ही स्वीकारती हैं। वे कहती हैं, ऐसा करकेउनकी सुरक्षा पर लगने वाले खर्च में कटौती होती है और लूट की घटनाएं नहीं होती हैं। यहां तक कि बैंकों ने नगदी निकालने वाली हजारों मशीनें (एटीएम) तहस-नहस कर दी हैं। खासतौर पर ग्रामीण इलाकों में। यूनिवर्सिटी ऑफ गोटेनबर्ग के छात्रों ने बताया कि लगभग वे सभी कार्ड और इलेक्ट्रॉनिक पेमेन्ट प्रणाली का उपयोग करते हैं। छात्रा हेना इक (23) कहती हैं, यह पीढ़ी बिना कार्ड के नहीं रह सकती है। इससे हमें खर्च करने के लिए ज्यादा सोचना नहीं पड़ता है। कई बार ज्यादा राशि भी खर्च हो जाती है।
अब चर्च में भी कार्ड से दान होने लगा है। हाल ही में वहां संडे सर्विस के दौरान बड़ी स्क्रीन पर चर्च का अकाउंट नंबर दिखाया गया। उसके बाद वहां मौजूद लोगों ने अपने मोबाइल फोन से 'स्विस' नामक एप शुरू किया और उससे चर्च के अकाउंट में राशि ट्रांसफर कर दी।
देश की सभी प्रमुख बैंकों ने कैश रखना लेन-देन भी बंद कर दिया है। यही नहीं छोटे शहरों गावों में लगे हजारों एटीएम को तहस-नहस कर दिया गया है।
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साभार: जागरण समाचार
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