Thursday, December 31, 2015

लाइफ मैनेजमेंट: जितनी भूख होगी, उतनी ही मिलेगी सफलता

एन रघुरामन (मैनेजमेंट फंडा)
यह कहानी है उस महिला की जिसने पांच रुपए की मामूली रकम पर खेत मजदूर की तरह अपना जीवन शुरू किया और दो दशक के भीतर ही अमेरिका के ऐरिजोना में फिनिक्स स्थित 1.50 करोड़ डॉलर की आईटी कंपनी 'सॉफ्टवेअर सॉल्यूशन' की सीईओ बनी। तेलंगाना के वारंगल के एक परिवार के चार-भाई बहनों में
अनिला ज्योति रेड्‌डी दूसरी संतान थीं। घर में इतनी गरीबी थी कि पिता ने दो बेटियों को यह कहकर अनाथालय में भेज दिया कि इनकी मां नहीं है। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। वे पांच साल अनाथालय में रही, कक्षा पांच से दस तक, लेकिन बहन को वापस घर भेज दिया गया, क्योंकि वह रोती बहुत थी। ज्योति वहीं बनी रही। उसे भी मां की बहुत याद आती थी और उसे भी उनकी बहुत जरूरत थी, लेकिन उसने अनाथालय के माहौल में खुद को एडजस्ट कर लिया। वह देखती थी कि कई दानदाता अच्छे कपड़ों, फैशनेबल गॉगल्स और कार में अनाथालय आते हैं। वह उनमें से एक बनने का सपना देखती, लेकिन तकदीर ने एक और मोड़ लिया। 16 साल की उम्र में पिता ने एक अनपढ़ खेत मजदूर से उसकी शादी कर दी, जिसने 18 की होने से पहले ही उसे दो बेटियों की मां बना दिया। 
भाग्य ने उसे दैनिक खेत मजदूर बना दिया था, जो पूरे दिन धूप में धान के खेत में काम करती। सिर्फ पांच रुपए रोज की मजदूरी पर पांच साल से अधिक समय तक काम किया। उसके पास दवाओं के पैसे होते और ही खिलौना खरीदने के। उसने तेलुगु मीडियम स्कूल को चुना, क्योंकि यह अंग्रेजी माध्यम स्कूल से 25 रुपए सस्ता पड़ता था। शाम को ज्योति घर लौटती और लकड़ी के चूल्हे के सामने खाना बनाने बैठ जाती। फिर भी उसने अाम्बेडकर मुक्त विश्वविद्यालय से व्यावसायिक पाठ्यक्रम पूरा कर लिया। किसानों के लिए बने नाइट स्कूल में पढ़ाने लगी थी। अचानक सरकारी शिक्षक बनने का दरवाजा खुल गया। कड़ी मेहनत से प्रसिद्धि और तरक्की दोनों मिलने लगी और इससे उसे वारंगल से बाहर जाने का मौका मिल गया। और उसके सपने बड़े होने लगे। अमेरिका के एक रिश्तेदार से मिलने का मौका मिला तो अरमान बड़े होने लगे। अपने दिल में वह यह जानती थी कि गरीबी के इस भंवर से वह निकल सकती है अगर अमेरिका चली जाए। फिर ज्योति ने जरा भी समय बर्बाद नहीं किया और कंप्यूटर सॉफ्टवेयर क्लासेस के लिए नाम लिखवा दिया। इसके लिए वह रोज हैदराबाद जाती-आती, क्योंकि उसके पति को उसका घर से दूर रहना पसंद नहीं था। वह अमेरिका जाने के लिए प्रतिबद्ध थी। उसने रिश्तेदारों और दोस्तों की मदद से अमेरिका के वीज़ा के लिए आवेदन कर दिया, हालांकि पति को इसके लिए समझाना काफी मुश्किल काम था। अपने काम और टीचर्स के लिए चिट फंड चलाने से उसे 20 हजार रुपए हर महीने मिल रहे थे। अपने सपनों के स्थान पर पहुंचने के लिए वह पैसा जमा करती रही। ज्योति ने अपने भाग्य से संघर्ष किया और अवसरों की धरती पर जा पहुंची, यह कठिन सफर था। न्यूजर्सी में 350 डॉलर हर महीने पर एक गुजराती परिवार में उन्हें पेइंग गेस्ट के रूप में रहने की जगह मिल गई। उनके पास सेल फोन नहीं था, काम के लिए उन्हें तीन मील दूर वे पैदल चलकर पहुंचती थीं। उन्होंने सेल्स गर्ल का काम किया। फिर साउथ कैरोलिना के एक मोटेल में रूम सर्विस पर्सन का काम किया। फीनिक्स में बेबी सिटर बनी। वर्जीनिया में गैस स्टेशन अटेंडेंट और फिर सॉफ्टवेअर कर्मचारी बनीं। और आखिर में अपना खुद का बिजनेस शुरू किया। 
आज उनके अमेरिका में छह घर हैं और भारत में दो। और हां आखिर मर्सिडीज-बेंज चलाने, स्पोर्ट्स डार्क ग्लास पहनने और अपने बाल खुले रखने का अपना सपना पूरा किया, जैसा कि बचपन में डोनर्स को देखकर सपना देखा था। उनकी दोनों बेटियां सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं, विवाहित हैं और उनके साथ अमेरिका में रहती हैं। हर साल अगस्त 29 को अपने जन्मदिन का पूरा दिन अनाथालय में बिताने वे भारत आती हैं। 
फंडा यह है कि जितनीभूख होगी, उतनी ही आग आपको मिलेगी सक्सेसफुल फूड' पकाने के लिए। 

Post published at www.nareshjangra.blogspot.com
साभारभास्कर समाचार 
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