Monday, December 21, 2015

सराहनीय: सरपंच पद सामान्य वर्ग के लिए लेकिन सर्वसम्मति से पिछड़े वर्ग की महिला बनी सरपंच

कहते हैं कि सियासत की जोड़तोड़ रिश्ते-नातों की बलि तक ले लेती है। दोस्ती-रिश्तेदारी की बात तो छोड़िए भाई-भाई तक को सियासी महत्वाकांक्षा के चलते आमने-सामने ला खड़ा करती है, लेकिन गांव ईशरवाल में सरपंच पद सामान्य वर्ग का होने के बावजूद एक पिछड़ा वर्ग की महिला को सर्वसम्मति से गांव का सरपंच चुनकर सामाजिक सौहार्द व भाईचारे की मिसाल कायम की है। यह पोस्ट आप नरेशजाँगङा डॉट ब्लागस्पाट डॉट कॉम के सौजन्य से पढ़ रहे हैं। प्रदेश में लोकतंत्र की सबसे महत्वपूर्ण सीढ़ी समझी जाने वाली पंचायत के गठन की प्रक्रिया
शुरू हो चुकी है। तोशाम खंड में 17 जनवरी को चुनाव होने हैं। कड़कड़ती ठंड के बीच गांवों में सियासी सरगर्मियों ने पारा बढ़ा दिया है। चुनाव में अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए प्रत्याशी एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं। इसी क्रम में ईशरवाल में रविवार को जो घटा, वाकई काबिलेतारीफ है। गांव में सामाजिक सौहार्द के लिए सर्वसम्मति से सरपंच के चुनाव को लेकर कई दिनों से घर-घर संपर्क साध रहे भारत स्वाभिमान ट्रस्ट के जिला प्रधान जगमाल की पहल पर दलीप सिंह की अध्यक्षता में गांव के श्रीराम मंदिर में प्रबुद्ध ग्रामीणों की बैठक हुई। बैठक में सभी ग्रामीणों ने सर्वसम्मति से सरपंच चुनाव को गांव के लिए हितकारी बताते हुए समर्थन में हाथ उठाए। फिर बात उठी कि सरपंच का ताज किसे सौंपा जाए। 
गांव में सरपंच पद के लिए सामान्य वर्ग महिला के लिए तय है, इस वर्ग के चार उम्मीदवार चुनावी मैदान में ताल ठोक रहे थे जो एक दूसरे पर सहमत नहीं हो रहे थे। इसके बाद जो हुआ, वो सियासत के मैदान में अपना चेहरा चमकाने के लिए साम-दाम-दंड की नीति अपनाने वालों के लिए अनुकरणीय है। पहले चुनाव लड़ने के इच्छुक उम्मीदवारों को मनाया गया। फिर लगा जैसे इनमें से सही किसी एक को सर्वसम्मति से गांव की बागडोर सौंपी जाएगी। किंतु होना तो विशेष ही था। ग्रामीण सेठ हुक्मीचंद ने सरपंच पद के लिए पिछड़ा वर्ग से संबंध रखने वाली महिला गीता देवी का नाम सुझाया तो सभी ने एक सुर में समर्थन किया। गीता देवी धोबी जाति से संबंध रखती हैं व गांव में उनका एकमात्र घर है। 
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साभारजागरण समाचार 
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