साभार: भास्कर समाचार
एन. रघुरामन (मैनेजमेंट गुरु)
स्टोरी 1: उनकी कविताओं का एक अंश कुछ इस तरह है- 'नन्हे दिलों ने सांस लेना बंद कर दिया, वे कहते हैं ऑक्सीजन की कमी, लेकिन मैं कहती हूं देखरेख की कमी, प्यार की कमी, जिम्मेदारी की कमी, कमी
संवेदनशीलता की...' इस साल 12 अगस्त को गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में जहां एन्सेफेलाइटिस से पीड़ित कई बच्चों की ऑक्सीजन की सप्लाई बंद होने से मौत हो गई। इस घटना का गहरा असर 15 साल की खुशी अमरीश चंद्रा के संवेदनशील मस्तिष्क पर हुआ। उसका दर्द छोटी कविताओं के रूप में सामने आया। इनमें उन पैरेंट्स का दर्द है, जिन्होंने अपने बच्चों को खो दिया है।
उसने अनुभव किया कि ऑक्सीजन की सप्लाई तो हर व्यक्ति के सांस लेने के अधिकार का मामला है। इसलिए वो सिर्फ कविताएं लिखकर ही रुक नहीं गई, बल्कि शांति से उसने एक सामाजिक संस्थान की आधारशिला भी रखी। नाम रखा-आक्सीजन गोरखपुर। इसके लिए उन्होंने ऑक्सीजन सप्लाई के लिए फंड जुटाना शुरू किया। सिर्फ बीआरडी मेडिकल कॉलेज ही नहीं, बल्कि अन्य सरकारी अस्पतालों के लिए भी। उसने तुरंत एक वेबसाइट भी बनाई www.oxygkp.com ताकि अपने उद्देश्य को और आगे ले जा सके।
खुशी का उद्देश्य ऑक्सीजन बैंक शुरू करने का है ताकि मौजूदा सरकारी व्यवस्था की मदद की जा सके। जिन तीन क्षेत्रों में वे अपने का काम का फोकस रखना चाहती है वो हैं- 1. क्राउड फंडिंग और ऑनलाइन डोनेशन 2. केवल ऑक्सीजन के सिलेंडर स्पॉन्सर कर जरूरतमंद अस्पतालों को एजेंसी से जोड़ना। 3. और इस शुरुआत के प्रचार के लिए सोशल मीडिया की मदद लेना।
स्टोरी 2: दक्षिण भारत के एक मिशनरी पैरेंट्ंस की संतान पॉलीन जाफरी ने 1917 में मास्टर्स की डिग्री लेने के बाद मदुरै के एक स्कूल में काम शुरू किया। उन्होंने देखा कि देश में प्रशिक्षित फिजिशीयन अैर मेडिकल टीचर्स की बहुत कमी है तो वे अपने पैरेंट्स के देश अमेरिका गईं और मेडिसिन की पढ़ाई की। 1926 में वे भारत लौटीं और वेल्लोर मेडिकल कॉलेज ज्वॉइन किया। यह तब भारत का एकमात्र महिला ट्रेनिंग सेंटर था। 1937 में उन्हें टीबी हो गया और वे इलाज के लिए गईं तो अमेरिकी डॉक्टर्स ने उन्हें आराम की सलाह दी। उन्हें भारत की बुरी स्वास्थ्य सेवाओं का ध्यान आया तो वे उधगमंडलम, जिसे हम ऊटी के नाम से जानते हैं, के नजदीक कोटागिरी गईं। अपनी बीमारी की चिंता छोड़कर उन्होंने वहां कोटागिरी मेडिकल फैलोशिप (केएमएफ) शुरू की। यह मिशनरी ट्रस्ट द्वारा संंचालित ट्रस्ट का अस्पताल था। वे खुद ही वहां मरीजों का उपचार करने लगीं। 1941 में कुछ कर्मचारियों के साथ उन्होंने केएमएफ की शुरुआत गाय के एक बाड़े में की। आंखों के अस्पताल के रूप में इसकी शुरुआत हुई थी, जिसे बाद में डॉ. जाफरी ने विस्तार दिया और यह जनरल हॉस्पिटल के रूप में तब्दील हो गया।
जून 1974 में कोटागिरी में डॉ. जाफरी का निधन हो गया। तब उनकी उम्र 80 साल थी। पिछले सप्ताह ट्रस्ट ने अपना एडमिनिस्ट्रेटिव काम क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज (सीएमसी) और हॉस्पिटल वेल्लोर को सौंपा। ताकि नीलगिरी के लाेगों को स्वास्थ्य सुविधाओं से वंचित होना पड़े। यहां अधिकतर लोग पहाड़ी हैं। आज 75 साल पुराना गायाें का यह बाड़ा जो अब स्पेशलिटी हॉस्पिटल के रूप में गर्व से खड़ा है, क्योंकि डॉ. जाफरी तब इस क्षेत्र में परिवर्तन लाना चाहती थीं, जहां उनका बचपन बीता है।
फंडा यह है कि यदि अपने आसपास बदलाव लाना चाहते हैं तो शुरुआत आपको करनी होगी। फिर देखिए भविष्य में यह कैसे बढ़ता है!
जून 1974 में कोटागिरी में डॉ. जाफरी का निधन हो गया। तब उनकी उम्र 80 साल थी। पिछले सप्ताह ट्रस्ट ने अपना एडमिनिस्ट्रेटिव काम क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज (सीएमसी) और हॉस्पिटल वेल्लोर को सौंपा। ताकि नीलगिरी के लाेगों को स्वास्थ्य सुविधाओं से वंचित होना पड़े। यहां अधिकतर लोग पहाड़ी हैं। आज 75 साल पुराना गायाें का यह बाड़ा जो अब स्पेशलिटी हॉस्पिटल के रूप में गर्व से खड़ा है, क्योंकि डॉ. जाफरी तब इस क्षेत्र में परिवर्तन लाना चाहती थीं, जहां उनका बचपन बीता है।
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