एन. रघुरामन (मैनेजमेंट गुरु)
ग्रीनपीस के लिए काम के 10 वर्षों के दौरान उनकी मुलाकात महराष्ट्र के विदर्भ स्थित किसानों के नेता विजय जवांधिया से हुई। उनका जोर इस बात पर रहा कि कैसे एक व्यक्ति कम्यूनिटी में बदलाव ला सकता है। ऐसे समय जब इस क्षेत्र में किसानों की आत्महत्या के मामले सुर्खियों में हैं विजय का गांव इस अभिशाप से मुक्त हैं। ऐसा इसलिए हो सका है, क्योंकि विजय की लीडरशिप हस्तक्षेप से किसानों को लोन और सरकारी योजनाओं की अहम जानकारियां मिल जाती हैं। मदद का यह हाथ और सहयोग के उनके शब्द किसानों को प्रेरित करते हैं और उन्हें बैंकों के कटू अनुभवों तथा बुरे अधिकारियों से बचातें हैं।
आज बायोटेक्नोलॉजिस्ट से किसान बने राजेश अपने घर लौट चूके हैं और उन्होंने केरल के पहाड़ी क्षेत्र वायनाड के थ्रिसिलेरी स्थित अपने गांव में बदलाव के बीज बोए हैं। ग्रीनपीस में कैंपेनर के रूप में अपने काम से मुक्त होकर राजेश वायनाड में सेटल हो गए। वहां उन्होंने और उनके भाई ने मिलकर 2008 में साढ़े पांच एकड़ जमीन ले ली। ग्रीनपीस में जो बातें सीखी थीं, 2011 के बाद से वे उन्हें अब आजमा रहे हैं।
38 साल के राजेश जिन्होंने एकीकृत, जैविक खेती के लिए कई संस्थाअों के पुरस्कार जीते हैं, वही काम कर रहे हैं जो विदर्भ में विजय ने किया है। हाल ही में उन्होंने और दस अन्य किसानों ने थिरुनेली एग्री प्रोड्यूर्स कंपनी बनाई है। इसे नाबार्ड से सहयोग प्राप्त है और इसके वे चीफ एग्ज़ीक्यूटिव ऑफिसर हैं। उनके काम के बारे में खास बात यह है कि वे मूल बीजों को फिर से पुनर्जीवित कर रहे हैं, जो स्थानीय मौसम के मुताबिक हैं और कई स्थानीय कीड़ों के प्रति इन बीजों में प्रतिरोधक क्षमता है। माना जाता है कि देश में चावल की 3000 से ज्यादा किस्में थीं। लेकिन अब 300 से भी कम बची है। 219 तरह के धान के बीज वायनाड में ही उगाए जाते हैं। वे अपने खेत में 40 तरह के धान के अलावा, केले, काली मिर्च, सब्जियों और रबर की खेती कर रहे हैं। धान में उनकी सफलता के बाद इलाके के कई और किसानों ने भी अपने खेतों में ऑर्गेनिक धान की खेती शुरू की। उन्होंने एक कम्यूनिटी की तरह एक-दूसरे से धान की खेती सीखी।
कॉर्पोरेट बैकग्राउंड और बड़े शहर का अनुभव होने के कारण राजेश जानते थे कि किसानों को निश्चित बाजार की जरूरत होगी। इधर उभरते ऑर्गेनिक बाजार के कारण चावल की परम्परागत किस्मों को लेने वाले भी कम नहीं है। इस तरह वे फसल आने के पहले ही अपनी पूरी उपज बेचने में सफल रहे। इसके लिए भी उन्हें किसानों की पुरानी कीमतों से अधिक कीमत मिली। राजेश की फेसबुक पोस्ट दावा करती है कि वे वायलाड में पहली पीढ़ी के लौटकर बसने वाले किसान हैं। वे मानते हैं कि खेती जीने के और भी तरीके मौजूद हैं। वे अाधुनिक सुविधाओं का इस्तेमाल करते हैं। शहरी जिंदगी को बेहतर जानते हैं और फिर भी उन पेशेवरों में से एक हैं, जिन्होंने अलग जिंदगी जीने का फैसला किया है।
फंडा यह है कि अपनी ज़िंदगी को लेकर मन में स्पष्टता रखें और अपने जीवन को जीने का वह रास्ता चुनिए जो अापको पसंद हो।
साभार: भास्कर समाचार
राजेश कृष्णन ने केरल यूनिवर्सिटी से बायो टेक्नाेलॉजी में ग्रेजुएशन किया। फिर वे इकोलॉजी में मास्टर्स करने के लिए पुडुचेरी चले गए। लेकिन, पिता की बीमारी के बाद उन्हें डॉक्टरेट की पढ़ाई छोड़नी पड़ी। उन्होंने
ग्रीनपीस में जॉब कर लिया और संस्था में एक दशक तक कई क्षेत्राें में काम किया। जीएम फसलों के वे घोर विरोधी रहे हैं। वे खेतों को जीएम फसलों से दूर रखने के आंदोलन से जुड़े हैं। जीएम फ्री इंडिया के लिए बने संगठन के वे सह-संयोजक थे। जीएम फसलों के खिलाफ संघर्षरत 400 से ज्यादा संगठनों का यह संघ है। ग्रीनपीस के लिए काम के 10 वर्षों के दौरान उनकी मुलाकात महराष्ट्र के विदर्भ स्थित किसानों के नेता विजय जवांधिया से हुई। उनका जोर इस बात पर रहा कि कैसे एक व्यक्ति कम्यूनिटी में बदलाव ला सकता है। ऐसे समय जब इस क्षेत्र में किसानों की आत्महत्या के मामले सुर्खियों में हैं विजय का गांव इस अभिशाप से मुक्त हैं। ऐसा इसलिए हो सका है, क्योंकि विजय की लीडरशिप हस्तक्षेप से किसानों को लोन और सरकारी योजनाओं की अहम जानकारियां मिल जाती हैं। मदद का यह हाथ और सहयोग के उनके शब्द किसानों को प्रेरित करते हैं और उन्हें बैंकों के कटू अनुभवों तथा बुरे अधिकारियों से बचातें हैं।
आज बायोटेक्नोलॉजिस्ट से किसान बने राजेश अपने घर लौट चूके हैं और उन्होंने केरल के पहाड़ी क्षेत्र वायनाड के थ्रिसिलेरी स्थित अपने गांव में बदलाव के बीज बोए हैं। ग्रीनपीस में कैंपेनर के रूप में अपने काम से मुक्त होकर राजेश वायनाड में सेटल हो गए। वहां उन्होंने और उनके भाई ने मिलकर 2008 में साढ़े पांच एकड़ जमीन ले ली। ग्रीनपीस में जो बातें सीखी थीं, 2011 के बाद से वे उन्हें अब आजमा रहे हैं।
38 साल के राजेश जिन्होंने एकीकृत, जैविक खेती के लिए कई संस्थाअों के पुरस्कार जीते हैं, वही काम कर रहे हैं जो विदर्भ में विजय ने किया है। हाल ही में उन्होंने और दस अन्य किसानों ने थिरुनेली एग्री प्रोड्यूर्स कंपनी बनाई है। इसे नाबार्ड से सहयोग प्राप्त है और इसके वे चीफ एग्ज़ीक्यूटिव ऑफिसर हैं। उनके काम के बारे में खास बात यह है कि वे मूल बीजों को फिर से पुनर्जीवित कर रहे हैं, जो स्थानीय मौसम के मुताबिक हैं और कई स्थानीय कीड़ों के प्रति इन बीजों में प्रतिरोधक क्षमता है। माना जाता है कि देश में चावल की 3000 से ज्यादा किस्में थीं। लेकिन अब 300 से भी कम बची है। 219 तरह के धान के बीज वायनाड में ही उगाए जाते हैं। वे अपने खेत में 40 तरह के धान के अलावा, केले, काली मिर्च, सब्जियों और रबर की खेती कर रहे हैं। धान में उनकी सफलता के बाद इलाके के कई और किसानों ने भी अपने खेतों में ऑर्गेनिक धान की खेती शुरू की। उन्होंने एक कम्यूनिटी की तरह एक-दूसरे से धान की खेती सीखी।
कॉर्पोरेट बैकग्राउंड और बड़े शहर का अनुभव होने के कारण राजेश जानते थे कि किसानों को निश्चित बाजार की जरूरत होगी। इधर उभरते ऑर्गेनिक बाजार के कारण चावल की परम्परागत किस्मों को लेने वाले भी कम नहीं है। इस तरह वे फसल आने के पहले ही अपनी पूरी उपज बेचने में सफल रहे। इसके लिए भी उन्हें किसानों की पुरानी कीमतों से अधिक कीमत मिली। राजेश की फेसबुक पोस्ट दावा करती है कि वे वायलाड में पहली पीढ़ी के लौटकर बसने वाले किसान हैं। वे मानते हैं कि खेती जीने के और भी तरीके मौजूद हैं। वे अाधुनिक सुविधाओं का इस्तेमाल करते हैं। शहरी जिंदगी को बेहतर जानते हैं और फिर भी उन पेशेवरों में से एक हैं, जिन्होंने अलग जिंदगी जीने का फैसला किया है।
फंडा यह है कि अपनी ज़िंदगी को लेकर मन में स्पष्टता रखें और अपने जीवन को जीने का वह रास्ता चुनिए जो अापको पसंद हो।