Tuesday, September 19, 2017

Must Read: आपके जीवन की बड़ी तस्वीर आपके भीतर है

एन. रघुरामन (मैनेजमेंट गुरु)
साभार: भास्कर समाचार
स्टोरी 1: वशिष्ठ वसंतकुमार ने एपल की नौकरी छोड़कर टिफिन बॉक्स बेचने का काम शुरू करने का फैसला किया तो सबसे ज्यादा विरोध उनके पैरेंट्स ने ही किया। लेकिन वशिष्ठ ने एपल से सीखा था कि कोई भी
प्रोडक्ट बेचिए इसकी डिज़ाइन और इंजीनियरिंग ही उसकी तकदीर तय करती है। इसमें उपयोगिता के फायदे और प्रतिस्पर्धियों से अलग क्वालिटी तो होनी ही चाहिए। चूंकि उन्हें चारों मामलों में आत्मविश्वास था, इसलिए उन्होंने किसी के भी विरोध को ज्यादा तवज्जो नहीं दी। उन्हें यकीन था कि एपल कंपनी ने जब आईफोन लॉन्च किया था, तो सेलफोन डिजाइन करने वाले वो पहले थे और ही काेई नई जमीन तोड़ने वाली टेक्नोलॉजी उनके पास थी। जो पहले से था, उसे उन्होंने डिज़ाइन और इंजीनियरिंग में अनोखा बना दिया। 
यही 32 साल के आंत्रप्रेन्योर वशिष्ठ टिफिन बॉक्स के साथ करना चाहते थे। वे एक ऐसा श्रेष्ठ लंच बॉक्स डिज़ाइन करना चाहते थे, जो लोगों को पहली नज़र में पसंद जाए। ऐसा लंच बॉक्स जो एशियाई भोजन के अनुकूल हो। यानी ग्रेवी वाले खाने के लिए श्रेष्ठ हो और भोजन कम से कम छह घंटे तक गर्म रहे। इसके लिए उन्होंने टिफिन में एडवांस्ड थर्मल इंसूलेशन लगाए। 
और ऐसे लगा जैसे विशिष्ठ के इस आइडिया ने सोने पर निशाना लगाया हो। क्योंकि ये टिफिन बॉक्स सिर्फ अमेजॉन इंडिया में ही नहीं पहुंचा बल्की हॉन्गकॉन्ग, चीन, ताइवान, मलेशिया, जापान और सिंगापुर तक भी पहुंचा। अमेरिका में भी उन्हें वहां बसे एशियाई लोगों से अच्छा रिस्पांस मिला। अधिकतर अमेरिकी लोग फॉइल में या सिंपल प्लास्टिक बॉक्स में लंंच ले जाते हैं। इसे वे बड़े प्रचार के माध्यम से बदलना चाहते हैं। कोई आश्चर्य नहीं कि सिर्फ पिछले ही महीने उन्होंने अमेजॉन पर 10,000 बॉक्स बेचे। वाया (संस्कृत में क्षमता और ताकत) लाइफ की दो फैक्ट्रियां हैं-चीन और भारत में। अब यह कंपनी पर्सनल कंज्यूमर प्रोडक्ट की दिशा में विस्तार करना चाहती है। वाया के लिए एशिया और अमेरिका में कस्टमर बेस फिलहाल 60:40 है। इसमें कुल निवेश 60 लाख डॉलर है। आज उनका महीने का टर्नओवर 5,00,000 डॉलर है। जो जल्द ही दो गुना हो जाएगा। 

स्टोरी 2: देर रात दो बजे तक अपने फोन पर सोशल मीडिया पर व्यस्त रहने वाले कई युवाआें के लिए बिस्तर से उठना और लाइट्स स्विच ऑफ करना मुसीबत होता है। पुणे के निरंजन वेलणकर भी इन्हीं में से एक थे, इसलिए उन्होंने एक डिवाइस बनाने का फैसला किया जो स्मार्टफोन के माध्यम से लाइट्स ऑफ कर सके। पुणे के एसपी कॉलेज के 19 साल के निरंजन ने आखिर एक एप बेस्ड होम ऑटोमेशन सिस्टम बनाया, जो पुरानी बिल्डिंग्स में बिना वायरिंग बदले लगाया जा सके। छह गैजेट्स में उपयोगी इसकी कीमत है मात्र 7 हजार रुपए। इस एप के इस्तेमाल से लाइट, पंखे (इसकी स्पीड भी इससे कंट्रोल की जा सकती है) और स्विच बोर्ड से जुड़े अन्य उपकरण नियंत्रित किए जा सकते हैं। इन्हें किसी भी स्विचबोर्ड में लगाया जा सकता है। जबकि अन्य प्रोडक्ट में घर की पूरी वायरिंग बदलने की जरूरत पड़ती है। लगाना उतना ही अासान है जितना वाईफाई राउटर को लगाना। इसका नाम है एटम। निरंजन ने यह प्रोडक्ट अपने कॉलेज की इलेक्ट्रॉनिक लैब और घर में लगाया है। अगले साल वे इसे व्यावसायिक रूप से लॉन्च करने वाले हैं और यह अभी के मुकाबले सस्ता भी होगा। वे कॉपीराइट और ट्रेडमार्क रजिस्ट्रेशन के लिए पहले ही अप्लाय कर चुके हैं। 
फंडा यह है कि आपकेभीतर जीवन की बड़ी तस्वीर हमेशा होती है, आपके बाहरी रूप को बस इसे पहचानना और सपोर्ट करना होता है।