हरियाणा में जजों के 109 पदों के लिए 16 जुलाई को हुआ प्रीलिमनरी पेपर गुरुवार को रद्द कर दिया गया। पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने पेपर लीक होने के दाग खुद के दामन पर देखते हुए जांच कमेटी की रिपोर्ट आने के
अगले ही दिन ये फैसला लिया। हाईकोर्ट ने ये परीक्षा हरियाणा सिविल सर्विसेेज के साथ कराई थी। रिक्रूटमेंट रजिस्ट्रार डॉ. बलविंदर शर्मा की महिला कैंडिडेट से 760 बार फोन पर संपर्क होने की बात हाईकोर्ट के सामने आई तो उनके खिलाफ केस दर्ज करने के आदेश हुए। जांच शुरू भी नहीं हुई है, लेकिन हाईकोर्ट पेपर लीक होने की बात मान चुका है। इसलिए उसने हरियाणा सरकार और अपनी ही एडमिनिस्ट्रेटिव ब्रांच से 15 सितंबर तक जवाब मांगा था। जवाब देने से पहले ही एडमिनिस्ट्रेटिव ब्रांच ने पेपर रद्द कर दिया। शुक्रवार को हाईकोर्ट की फुल बेंच मामले पर सुनवाई करेगी। हाईकोर्ट की एडमिनिस्ट्रेटिव ब्रांच और राज्य सरकार से मामले में कार्रवाई की जानकारी मांगी है। हाईकोर्ट की रिक्रूटमेंट कोर्ट क्रिएशन कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि रजिस्ट्रार (रिक्रूटमेंट) डॉ. बलविंदर कुमार शर्मा कैंडिडेट सुनीता के बीच 760 कॉल या एसएमएस एक्सचेंज हुए। सुशीला नामक उम्मीदवार को भी प्रश्न-पत्र के सवाल बताए गए। इससे इनकार नहीं कर सकते कि अन्य उम्मीदवारों को भी इसकी जानकारी हो। इसलिए पेपर रद्द कर तीनों पर एफआईआर दर्ज हो।
हाईकोर्ट की रिक्रूटमेंट कोर्ट क्रिएशन कमेटी ने बुधवार को सौंपी रिपोर्ट में हाईकोर्ट के रिक्रूटमेंट रजिस्ट्रार डॉ. बलविदंर शर्मा को इस पूरे प्रकरण की अहम कड़ी माना है, क्योंकि वे सुनीता नाम की कैंडिडेट से लगातार संपर्क में थे। वही पेपर बेच रही थी और बाद में जनरल कैटेगरी की टॉपर भी बनी। हालांकि इसका रिजल्ट रोक दिया गया था। डॉ. शर्मा खुद भी जज रहे हैं। वे 20 साल पहले पीसीएस (ज्यूडीशियल) क्लियर करके जज बने थे। 5 अगस्त 1997 को पहली नियुक्ति मिली। इसके बाद वे पंजाब में कई जगहों पर तैनात रहे। इसमें जालंधर का फास्ट ट्रैक कोर्ट भी शामिल है। 13 मार्च 2014 को उन्हें हाईकोर्ट में आॅफिसर ऑन स्पेशल ड्यूटी डेपुटेशन पर भेजा गया। तब से वे कई भर्तियां कंडक्ट करा चुके हैं। पेपर सेट करने से रिजल्ट निकालने तक का सारा जिम्मा डॉ. शर्मा पर रहा है। 2015 में पंजाब सिविल सर्विसिस (पीसीएस) प्रीलिमनरी मेन्स एग्जाम भी उन्होंने ही कंडक्ट कराए। डॉ. बलविदंर ने 13 मार्च 2014 को ऑन स्पेशल ड्यूटी हाईकोर्ट में नियुक्ति पाई थी। उन्हें रिक्रूटमेंट सेल का ओवरऑल इंचार्ज बनाया गया। इसमें आंसर-की का गुप्त रिकाॅर्ड मेनटेन करना, अलग-अलग भर्तियों के लिए प्रश्नपत्र तैयार कराने के लिए रिर्सोसपर्सन नियुक्त करना, आंसरशीट चेक करने के लिए रिर्सोसपर्सन नियुक्त करना और रिजल्ट तैयार कराना आिद, ये सारा काम डॉ. शर्मा ही देख रहे थे। भर्ती से जुड़ी तमाम जानकारियों जिनमें इलिजिबिलटी कंडीशन को अपडेट करना और सरकार द्वारा रिजर्वेशन पाॅलिसी के तहत भरती की जिम्मेदारी भी उन पर थी। हाईकोर्ट में ज्यूडीशियल अफसरों को छोड़कर बाकी सभी नए अफसरों कर्मचारियों की ट्रेनिंग भी कराते थे। इसीसाल 283 क्लर्क भर्ती की परीक्षा भी उनकी देखरेख में हुई, जिसके लिए 30 हजार से ज्यादा कैंडिडेट्स ने अप्लाई किया था।
प्रदेश में पिछले दो साल से हर चौथे माह पेपर लीक हो रहा है। 2015 में सबसे बड़ा एआईपीएमटी का पेपर लीक होने के बाद से एचएसएससी, एसएससी, एचटेट जैसी करीब 8 बड़ी परीक्षाओं के पेपर लीक हो चुके हैं। इनके पेपर खरीदने वाले करीब 1227 लोगों के 114.90 करोड़ रु. डूब गए। नौकरी मिली और कॅरिअर बन पाया। इनमें कई जेल में हैं। हालांकि, यह आंकड़ा और ज्यादा हो सकता है।
फर्जीवाड़े के ये होते हैं पांच किरदार:
- मास्टरमाइंड: यह मुख्य साजिशकर्ता होता है। सारा तंत्र इसके हाथों में। पेपर लीक करने से लेकर क्लाइंट तक पहुंचाने की व्यवस्था कराता है। तकनीक, रिश्ता, तंत्र और पॉलीटीशियन तक से गठजोड़।
- कोचिंग एंड क्लाइंट: परीक्षा की तारीख तय होते ही मास्टरमाइंड उसके साथी क्लाइंट जुटाने में लगता हैं। कोचिंग सेंटर राडार पर होते हैं। यहीं से पेपर बिक्री की डीलिंग कैंडीडेट लाने की कड़ी जुड़ती जाती है।
- सेंटर: अकसर दो सेेंटर को टारगेट में रखा जाता है। फर्जी आईकार्ड का जुगाड़ जैमर सेट करने वाले, सेंटर के क्लर्क, अध्यापक प्रबंधक से सेटिंग होती है। इनके माध्यम से सेंटर से पेपर बाहर आता है।
- साॅल्वर: यहमहंगा किरदार है। ये सब्जेक्ट एक्सपर्ट होता है। राजस्थान के कोटा दिल्ली में बैठकर ये पेपर साॅल्व करता है। वाॅट्सएप पर पेपर की कॉपी इन्हें भेजी जाती है। 15 मिनट में सॉल्वर उत्तर भेजता है। जिसे क्लाइंट के पास सर्कुलेट किया जाता है।
- आयोग: बड़ीपरीक्षाओं के मामले में आयोग के सदस्य, कर्मचारी अथवा किसी आला अफसर से डीलिंग की जाती है। विवादित होने पर भी पेपर कैंसिल हो इसके लिए बड़ी डील होती है। इसमें सत्ताधारी दल से लेकर विपक्ष तक के नेताओं का भी हाथ होता है।