Friday, September 15, 2017

कोयला सोना बन सकता है पर तपने को तैयार रहें

एन. रघुरामन (मैनेजमेंट गुरु)
साभार: भास्कर समाचार
पति के 60 रुपए के वेतन में से 15 वे सास-ससूर को भेज देतीं। 5 रुपए किराये में तो 20 रुपए कर्ज चुकाने में चले जाते, जो देवर की शादी के लिए लिया था। शेष 20 रुपए में तीन बेटे और तीन बेटियों वाला घर चलाना
सविताबेन के लिए वाकई कठिन था। तब सविताबेन पैरेंट्स के पास गईं, जो कोयला बेचते थे, क्योंकि 1950-60 के दशकों में गैस कनेक्शन बहुत कम पाए जाते थे। लेिकन, उन्होंने यह कहकर इनकार कर दिया कि वे पैसे से तो मदद कर सकते हैं लेकिन, उसे कोयला बेचते हुए नहीं देख सकते। 
किंतु वे अड़ गईं। अहमदाबाद तब कपड़ा मिलों के लिए जाना जाता था। उन्होंने इन मिलों से आधे जले कोयले खरीदकर घर-घर जाकर बेचना शुरू किया। उनका दिन सुबह 4:30 बजे कंडक्टर पति बच्चों के लिए नाश्ता बनाने से शुरू होता। फिर पूरा दिन वे कोयला बेचने में लगातीं। रात को खाना बनातीं और उसके बाद खादी ग्रामोद्योग के लिए चरखा चलाकर खादी तैयार करतीं। इसके लिए उन्हें काम के बदले आधा पैसा मिलता और कुछ किराना सामान। पांच साल में उन्होंने अपनी दुकान खोल ली। उन्होंने अपने बिज़नेस का विस्तार कर सिरेमिक सेक्टर की छोटी फैक्ट्रियों तक कर लिया। वहां उन्होंने सीखा कि फैक्ट्रियां कैसे चलाई जाती हैं। अब उन्होंने रेलवे बोगियों में आने वाले कोयले का ठेका लेकर अध-जले कोयले की जगह शुद्ध कोयला बेचना शुरू किया। गारंटी उनके चाचा ने दी। इतने बड़े पैमाने पर कोयला बेचने के लिए ऑफिस चाहिए, तो उन्होंने पास के नीलम होटल से कॉन्ट्रेक्ट किया, जहां उनका बेटा जाता और सौदे करता था। 
अन्य डीलरों और सविताबेन में यह फर्क था कि वे हमेशा दूसरों की तुलना में कोयला सस्ता लेकिन, नकद बेचती थीं। बाजार में प्रति क्विंटल 100 रुपए का मुनाफा लिया जाता था, जिसमें एक माह क्रेडिट की सुविधा थी। सविताबेन ने 50 रुपए का मुनाफा बेहतर समझा, जिसे वे बाजार में तीन बार चलाकर 150 रुपए प्रतिमाह कमा लेती थीं। घरेलू मोर्चे पर तीनों पुत्र उनके बिज़नेस में शामिल हो गए, जबकि तीनों बेटियां ग्रेजुएट हो गईं। सबसे बड़े बेटे मुकेश की रुचि सिरेमिक उद्योग में जागी। सविताबेन को भी सिरेमिक फैक्ट्री का आइडिया पसंद आया और अपनी सिरेमिक फैक्ट्री खोलने का फैसला किया। अपनी दुकान की आमदनी की बचत उन्होंने छोटी-सी सिरेमिक फैक्ट्री में लगा दी। सविताबेन आंत्रप्रेन्योर बन गईं। इस परिवार ने स्टर्लिंग्स सेरेमिक इंडस्ट्री स्थापित की, जो विभिन्न देशों को सिरेमिक प्रोडक्ट निर्यात करती है। कंपनी ने 1996 में इटली से उन्नत मशीनें मंगवाई और बड़ी मात्रा में आउटसोर्सिंग का काम आने लगा। आज भी 72 वर्षीय सविताबेन का दिन अलसुबह शुरू होता है लेकिन, किचन में नहीं बल्कि बिज़नेस प्लान पर चर्चा करते हुए। वे ठीक 8 बजे शॉप फ्लोर पर पहुंच जाती हैं, जहां 200 वर्कर हाई क्वालिटी की सिरेमिक टाइल्स बनाते हैं और रात के आठ बजने पर ही वे फैक्ट्री से जाती हैं। वे जॉनसन ब्रैंड के लिए सिरेमिक टाइल्स बनाती हैं। 
अब परिवार तरक्की करके एक रूम के किराये मकान से 10 बेडरूम वाले बंगले में पहुंच गया है और जो परिवार कोयला बेचने के लिए ठेले चलाता था वह आज ऑडी तथा मर्सेडीज़ चलाता है। सविता बेन की भावी योजना में सोने का थोक आयात करके स्थानीय जुलरी निर्माताओं के साथ व्यापार करने का है, जिसके लाइसेंस के लिए उन्होंने आवेदन दे दिया है। 
फंडा यह है कि यदिआप कोयले को सोने में बदलना चाहते हैं तो सारी बाधाएं दूर करने के लिए खुद को तपाने को तैयार रहें।