एन. रघुरामन (मैनेजमेंटगुरु)
साभार: भास्कर समाचार
बड़ी संख्या में लोग तुरंत राहत पाने या खुशी की तलाश में रहते हैं और परवाह नहीं करते कि इसके परिणाम क्या होंगे। फिर अपने काम और लालच की बड़ी कीमत चुकाते हैं। हालांकि नई पीढ़ी स्टाइल में जीवन जीने के
मामले में अधिक स्मार्ट हो रही है। उसे इस बात की भी कम परवाह है कि दुनिया क्या कहेगी! देखिए कैसी है ये पीढ़ी।
स्टोरी 1: मणिपाल में जन्मी और पली-बढ़ी शैला भट ने कम्यूनिकेशन में पढ़ाई पूरी की पर कॉर्पोरेट जगत में काम शुरू करने के बाद भी उन्होंने अपने जुनून और पहले प्यार डांस को प्राथमिकता दीं। फिर शामक डावर के परफार्मिंग आर्ट इंस्टिट्यूट में प्रशिक्षण लेने का अवसर मिला। पांच साल बाद उन्होंने जुंबा शुरू किया। डांस की आग को जिंदा रखने का असर यह हुआ कि आज वे दो कॅरिअर में काम कर रही हैं। एक- जुंबा फिटनेस ट्रेनर और दूसरा- फ्रीलॉन्स पब्लिक रिलेशन कंसल्टेंट। शुरू में उनकी क्लास में उंगलियों पर गिनने जितनी उपस्थिति होती थी, आज हर क्लास में 30 से 40 लोग हैं। उन्होंने एरोबिक्स एंड फिटनेस एसोसिएशन ऑफ अमेरिका से भी सर्टिफिकेट हासिल किया।
इस सर्टिफिकेशन की वजह से प्यूमा ने उन्हें अपने डू यू कैंपेन के जरिए अप्रोच किया। यह कैंपेन महिलाओं में फिटनेस कल्चर लाने के लिए है। इसने वर्कआउट करने, मजबूत और फिट बनने का कल्चर शुरू किया। हर सप्ताह शैला महिलाओं के लिए फ्री फिटनेस सेशन भी करती हैं। फिलहाल वे बेंगलुरू पर ध्यान केंद्रित कर रही हैं, क्योंकि वहां आईटी वुमन वर्कफोर्स लंबे समय तक बैठकर काम करने वाली लाइफ स्टाइल की ओर बढ़ रही हैं। अपनी पसंद का काम करने और पर्याप्त आय के लिए उन्होंने अपनी क्लासेस को सुबह और शाम तक ही सीमित रखा है, ताकि बीच का समय में वे पीआर के काम को दे सकें।
इस सर्टिफिकेशन की वजह से प्यूमा ने उन्हें अपने डू यू कैंपेन के जरिए अप्रोच किया। यह कैंपेन महिलाओं में फिटनेस कल्चर लाने के लिए है। इसने वर्कआउट करने, मजबूत और फिट बनने का कल्चर शुरू किया। हर सप्ताह शैला महिलाओं के लिए फ्री फिटनेस सेशन भी करती हैं। फिलहाल वे बेंगलुरू पर ध्यान केंद्रित कर रही हैं, क्योंकि वहां आईटी वुमन वर्कफोर्स लंबे समय तक बैठकर काम करने वाली लाइफ स्टाइल की ओर बढ़ रही हैं। अपनी पसंद का काम करने और पर्याप्त आय के लिए उन्होंने अपनी क्लासेस को सुबह और शाम तक ही सीमित रखा है, ताकि बीच का समय में वे पीआर के काम को दे सकें।
स्टोरी 2: कुशल दिन के समय एडवर्टाइजिंग प्रोफेशनल हैं और रात में वे अपनी पसंद का काम करते हैं- सोशल सर्विस और जरूरतमंदों की मदद। चूंकि वे जानते हैं कि उनका पैशन उन्हें स्थायी कमाई नहीं दे सकता, इसलिए उन्होंने दोनों के बीच अच्छा संतुलन बना लिया है। समाज को लौटाने के उद्देश्य से उन्होंने 2014 में एक पहल की थी, डोनेट अनयूज्ड। इसके जरिये उन्होंने लोगों से आग्रह किया कि अगर वे किसी टैबलेट स्ट्रिप का इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं तो इसे लौटा दें। इसे उन्होंने बॉटल मेडिसिन तक आगे बढ़ाया। इसके बाद कई लोगों ने आग्रह किया कि उनका अनुपयोगी सामान, कपड़े, किताब, खिलौने और स्टेशनरी भी एकत्र करें। इसके लिए उन्हें एक एप्रोप्रिएट सिस्टम बनाने की जरूरत थी। उन्होंने कुशाइगुडा पुलिस स्टेशन हैदराबाद के पास एक ड्रॉप बाक्स लगा दिया। इसे तीन साल हो गए हैं और डोनेट अनयूज्ड वेबसाइट Donateunused.com- के माध्यम से डिजिटल हो गया है।
स्टोरी 3: राजू गनिजा कर्नाटक के कुंडपुर में पीडब्ल्यूडी विभाग में इंस्पेक्टर हैं। यह स्थान भारी बारिश के लिए जाना जाता है। उन्हें खाली सिमेंट के बैग्स से घिरे रहना पसंद नहीं था। उनका पैशन है खेती। उन्होंने तीन साल पहले सिमेंट की इन खाली थैलियों में भिंडी के पौधे लगाने का प्रयोग किया। पहले प्रयोग में उन्होंने 20 किलो उपज से शुरूआत की। आज वे 60 किलो से ज्यादा की उपज ले रहे हैं। राजू ने अपनी जमीन के कुछ क्षेत्र में धान भी उगाया। इसके अलावा 30 पेड़ सुपारी और नारियल के भी लगाए। साथ ही अपने लिए एक किचन गार्डन भी तैयार किया। इस तरह उनका किचन पूरी तरह फ्री हो गया। उन्हें लगा कि खेती जीवन का सबक सिखाती है और दूसरों पर निर्भर रहना कम करती है।
स्टोरी 3: राजू गनिजा कर्नाटक के कुंडपुर में पीडब्ल्यूडी विभाग में इंस्पेक्टर हैं। यह स्थान भारी बारिश के लिए जाना जाता है। उन्हें खाली सिमेंट के बैग्स से घिरे रहना पसंद नहीं था। उनका पैशन है खेती। उन्होंने तीन साल पहले सिमेंट की इन खाली थैलियों में भिंडी के पौधे लगाने का प्रयोग किया। पहले प्रयोग में उन्होंने 20 किलो उपज से शुरूआत की। आज वे 60 किलो से ज्यादा की उपज ले रहे हैं। राजू ने अपनी जमीन के कुछ क्षेत्र में धान भी उगाया। इसके अलावा 30 पेड़ सुपारी और नारियल के भी लगाए। साथ ही अपने लिए एक किचन गार्डन भी तैयार किया। इस तरह उनका किचन पूरी तरह फ्री हो गया। उन्हें लगा कि खेती जीवन का सबक सिखाती है और दूसरों पर निर्भर रहना कम करती है।
फंडा यह है कि वैसा जीवन अपनाए, जो आपको पसंद हो। यदि दुनिया के हिसाब से जीएंगे तो अपने तरीके से जीना मुश्किल हो जाएगा।