Friday, July 7, 2017

लाइफ मैनेजमेंट: हमारे संयुक्त परिवारों में होती है बहुत ताकत

एन. रघुरामन (मैनेजमेंटगुरु)

इस बुधवार को केंद्र सरकार की ओर से जारी आंकड़ों में कहा गया है कि ग्रामीण भारत में परिवार छोटे हो रहे हैं, जबकि शहरी परिवार घटती जगह के बीच बड़े हो रहे हैं। ग्रामीण भारत में छोटे परिवार बढ़ने के जो भी सामाजिक कारण रहे हों, मेरा पक्का भरोसा है कि मुसीबत की स्थिति में सिर्फ संयुक्त परिवार ही काम आते हैं, खासकर उन स्थानों पर जहां मूलभूत ढांचा विकसित नहीं हुआ है। मुझे याद है वह 1967 की एक बरसात की रात थी, मैं गंभीर रूप से बीमार हो गया था। बहुत खासी थी और बुखार तेज था। हम तमिलनाडु के कुंभकोणम के पास एक छोटे गांव उमयालपुरम में थे, जहां कोई डॉक्टर नहीं था। मां लालटेन की रोशनी में मेरी छाती पर मसाज कर मुझे राहत देने की कोशिश कर रही थी। मेरी दादी किचन में गई और काढ़ा लेकर लौटी। तुलसी,पान के पत्ते, अजवाइन, काली मिर्च और धनिया के बीजों से इसे बनाया गया था। भयंकर फ्लू से निपटने की यह शानदार घरेलू दवा थी। एक घंटे में ही इसने मुझ पर चमत्कारिक असर किया। 
अगले दिन सुबह मेरी दादा 4.55 की पहली बस से अपनी पहचान के एक वैद्य को लेने कुंभकोणम चले गए। वैद्य थिरुमलाईस्वामी छोटी-छोटी बॉटल्स की तार में पिरोई माला पहने आए। इनमें कुछ पाउडर थे। उन्होंने अपने कंधे से रेशम का कपड़ा निकाला और मेरी कलाई पर बांध दिया। फिर उन्होंने मेरी नब्ज देखी। उन्होंने बुदबुदाकर कहा - वायु सेरी, पीत सेरी। तमिल में सेरी का मतलब होता है अच्छा। उन्होंने अपनी आंखें बंद की और कुछ श्लाेक कहे। उनका मानना था कि अगर कोई ऐसी समस्या है जो दवाओं से ठीक नहीं हो सकती तो इससे ठीक हो जाएगी। फिर उन्होंने पाउडर के कुछ पुड़ियाएं बनाई, जो इतनी सफाई से बनाई थी कि जैसे कला का कोई नमूना हो। उन्होंने मेरी मां को बताया कि इन्हें पान के पत्ते पर शहद के साथ मिलाकर देना है। जाने से पहले उन्होंने मुझे प्यार से समझाया कि नदी के पास घंटों खेलूं। नदी हमारे घर से कुछ मीटर की ही दूरी पर थी। उन्होंने एक रुपए फीस ली। (इसमें से आधा उनके आने-जाने का ही खर्च था।) 
अगले दो दिनों तक गर्मागर्म अलग-अलग रसम चावल खिलाकर मुझे बहुत लाड़ किया गया। तब मैं अकेला पोता था। हालांकि मैं उसी शाम ठीक हो गया था, लेकिन बड़े संयुक्त परिवार का ध्यान अपनी ओर बनाए रखने के लिए मैं दो दिनों तक जान-बूझकर बिस्तर पर लेटा रहा। पड़ोसी भी मुझे देखने आते और मेरे माथे पर हाथ फेरते और मुझे बहुत अच्छा लगता-शायद इसीलिए इसे आशीर्वाद कहा जाता है! मेरी चाचा शाम को घर आए तो साथ में गणपति मंदिर के पुजारी भी थे। उनके पास एक तांबे की प्लेट थी। उन्होंने मुझे पूर्व की तरफ मुंह करके बिठा दिया। उन्होंने प्लेट पर पवित्र राख यानी विभूति में अपनी उंगलियों से एक आकृति बनाई। उन्होंने कुछ श्लोक बोले और राख मेरी माथे पर लगा दी। एक चुटकी विभूति मुंह में डाल दी। 
उन्होंने मेरी दादी की और मुस्कुराते हुए देखकर कहा कि ये तो पहले ही ठीक हो चुका है। घर में मौजूद सभी लोगों ने उन्हें साष्टांग नमस्कार किया। मेरे छोटे चाचा ने उनकी प्लेट में दो-पांच पैसे भी डाल दिए। अगले दिन सुबह मेरी मां और मौसी गिली साड़ी में घर से तीन किलोमीटर दूर स्वामी मलाई में हमारे कुल देवता सुब्रमण्या स्वामी के मंदिर पैदल गईं। लौटते समय वे बहुत सी विभूति और कुमकुम लेकर आईं, जो मुझे लंबे समय तक लगाई जाती रही। मैं मान्यताओं और विज्ञान के उस मेल को कभी समझ नहीं पाया, लेकिन उस संयुक्त परिवार के कई हाथों में बड़ा जोश और दृढ़ विश्वास था। मानो या मानो संयुक्त परिवार की प्रार्थनाओं ने बाद में मुझे कभी गंभीर रूप से बीमार नहीं होने दिया। 
फंडा यह है कि संयुक्त परिवार संकट के समय सिर्फ सहारा देते हैं बल्कि उनकी प्रार्थना में वह बल है जिसे कोई फंडा नहीं समझा सकता। 
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साभार: भास्कर समाचार 
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