Thursday, April 11, 2019

CBI के छापों के बाद कमलनाथ सरकार का पलटवार: ई-टेंडर घोटाले में FIR

साभार: जागरण समाचार 
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ के करीबियों पर आयकर विभाग की ओर से कई गई छापेमारी के चौथे दिन प्रदेश की सरकारी जांच एजेंसी आर्थिक अपराध अन्वेषण प्रकोष्ठ (ईओडब्ल्यू) ने 3000 करोड़ रुपये के ई-टेंडर
घोटाले में बुधवार को एफआइआर दर्ज कर ली है। इसमें प्रदेश सरकार के पांच विभाग के अधिकारियों-कर्मचारियों और सात निजी कंपनियों के संचालकों- मार्केटिंग अधिकारियों सहित अज्ञात नौकरशाहों और अज्ञात राजनीतिज्ञों को आरोपित बनाया गया है। यह मामला एक साल से लंबित था। 
मप्र इलेक्ट्रॉनिक्स विकास निगम ने प्रदेश सरकार की ऑनलाइन टेंडर प्रक्रिया में टेंपरिंग को लेकर अप्रैल 2018 में मुख्य सचिव को प्रतिवेदन भेजा था। इसमें कहा गया था कि जल विकास निगम के तीन टेंडरों सहित लोक निर्माण विभाग के दो, जल संसाधन के दो, प्रोजेक्ट इंप्लीमेंटेशन यूनिट और सड़क विकास निगम के एक-एक टेंडर में छेड़छाड़ करके सात कंपनियों को फायदा पहुंचाने का प्रयास किया गया। मुख्य सचिव ने मामले की जांच की जिम्मेदारी ईओडब्ल्यू को सौंप दी थी और तब से ही यह जांच चल रही थी।
इन कंपनियों पर मामला दर्ज : ईओडब्ल्यू ने जिन सात निजी कंपनियों के खिलाफ प्रकरण दर्ज किया है, उनमें दो-दो मुंबई, बड़ौदा व हैदराबाद और एक भोपाल की है। इनमें भोपाल की कंस्ट्रक्शन कंपनी रामकुमार नरवानी लिमिटेड सहित मुंबई की कंस्ट्रक्शन कंपनी दि ह्यूम पाइप लिमिटेड, मेसर्स जेएमसी लिमिटेड मुंबई, बड़ौदा की कंस्ट्रक्शन कंपनी सोरठिया बेलजी प्राइवेट लिमिटेड, मेसर्स माधव इंफ्रा प्रोजेक्ट लिमिटेड बड़ौदा, मेसर्स जीवीपीआर लिमिटेड हैदराबाद और मेसर्स मैक्स मेंटेना लिमिटेड हैदराबाद शामिल हैं। वहीं, जल निगम, लोक निर्माण विभाग, प्रोजेक्ट इंप्लीमेंटेशन यूनिट, सड़क विकास निगम और जल संसाधन विभाग के टेंडर प्रक्रिया से जुड़े अधिकारियों-कर्मचारियों को भी आरोपी बनाया गया है, लेकिन एफआइआर में उनके नामों का जिक्र नहीं है। इसी तरह अज्ञात नौकरशाहों और अज्ञात राजनेताओं को भी आरोपी बनाया है। एक सॉफ्टवेयर कंपनी एंट्रेंस प्राइवेट लिमिटेड और टीसीएस के अधिकारियों-कर्मचारियों पर भी एफआइआर दर्ज की गई है।
  • सालभर पहले इलेक्ट्रॉनिक विकास निगम के जांच प्रतिवेदन के बाद ईओडब्ल्यू ने ई-टेंडर घोटाले की प्रारंभिक जांच शुरू की थी। कंप्यूटर इमरजेंसी रिस्पांस टीम (सीईआरटी) के तकनीकी विशेषज्ञों की रिपोर्ट के बाद इसमें एफआइआर दर्ज की गई है। सीईआरटी की एक और रिपोर्ट का इंतजार किया जा रहा है। - केएन तिवारी, महानिदेशक, ईओडब्ल्यू

यह है ई-टेंडर घोटाला: सरकारी टेंडरों के लिए ऑनलाइन प्रक्रिया बनाई गई थी। इसमें जिस विभाग के टेंडर होते थे, वहां टेंडर खोलने वाले अधिकारी और उससे जुड़े एक कर्मचारी का डिजिटल सिग्नेचर होता था। इनके अलावा कोई भी तीसरा व्यक्ति उसे बदलना तो दूर टेंडर को खोलकर देख भी नहीं सकता था। लेकिन, टेंडर प्रक्रिया से जुड़े लोगों की मिलीभगत से कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए ऑनलाइन प्रकिया में छेड़छाड़ की गई। अप्रैल 2018 में जिन नौ टेंडर में यह छेड़छाड़ की गई, उन्हें निरस्त कर पूरी प्रक्रिया दोबारा की गई।