साभार: जागरण समाचार
सोनीपत लोकसभा क्षेत्र इस बार हॉट केक बनता जा रहा है। इस सीट पर कांग्रेस और भाजपा दोनों की प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है। कांग्रेस, खासकर पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा अपना गढ़ बचाने की जुगत में लगे हैं तो
भाजपा भी पिछले चुनाव का अपना प्रदर्शन और चौथी बार जीत के साथ रिकार्ड बनाने के मूड में है। भाजपा ने वर्तमान सांसद रमेश कौशिक पर ही दांव खेला है तो कांग्रेस में प्रत्याशी को लेकर फिलहाल ऊहापोह की स्थिति बनी हुई है।
कांग्रेस हुड्डा फैक्टर के कारण इस सीट को फिर से अपने खाते में करने के लिए हर मुमकिन प्रयास कर रही है, जबकि भाजपा यहां अपना प्रदर्शन दोहराकर सर्वाधिक जीत का रिकार्ड बनाना चाहती है। सोनीपत और रोहतक पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा का गढ़ माना जाता है। जाटलैंड के इन दोनों जिलों में शुरुआत से ही हुड्डा का अच्छा-खासा वर्चस्व रहा है।
यही वजह है कि पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा की लहर के बावजूद सोनीपत जिले की छह में से पांच विधानसभा सीटों पर कांग्रेस और हुड्डा समर्थक प्रत्याशियों ने जीत दर्ज की थी। पिछले लोकसभा चुनाव में मोदी लहर के बावजूद यहां से सांसद रमेश कौशिक को जीतने में काफी मशक्कत करनी पड़ी। हालात यह रहे थे कि सोनीपत जिले के सोनीपत विधानसभा क्षेत्र को छोड़कर भाजपा प्रत्याशी को कहीं से भी खास बढ़त नहीं मिली थी।
जींद जिले की तीन विधानसभा क्षेत्रों में मिली अच्छी बढ़त के कारण वे यहां से जीतने में कामयाब रहे थे। हालांकि कौशिक भी पहले कांग्रेस में ही थे और हुड्डा के करीबी माने जाते थे। हुड्डा सरकार में वे विधायक और मंत्री भी रह चुके थे। लेकिन, यह भी सच है कि इस लोकसभा सीट से सबसे अधिक लगातार तीन बार सांसद बनने का रिकार्ड बनाने वाले स्व. किशन सिंह सांगवान के विजय रथ को वर्ष 2009 में कांग्रेस और हुड्डा के समर्थक जितेंद्र मलिक ने ही रोका था। वर्ष 2014 का चुनाव उन्होंने नहीं लड़ा था और कांग्रेस ने जगबीर मलिक को यहां से टिकट दिया था, जो दूसरे नंबर पर रहे थे। अब कांग्रेस और भाजपा दोनों के लिए सोनीपत सीट प्रतिष्ठा का सवाल बन गया है। खासकर हुड्डा के समक्ष अपना गढ़ बचाने की चुनौती है। क्योंकि फिलहाल सोनीपत लोकसभा की नौ विधानसभा सीटों में से पांच पर उनके समर्थक विधायक हैं।
हुड्डा अपने समर्थक विधायकों की बदौलत इस सीट पर अपना वर्चस्व मानते हैं और हर हाल में यहां से कांग्रेस की वापसी चाह रहे हैं। समन्वय समिति का चेयरमैन बनने के बाद उन पर इसका दबाव भी आ गया है। यही वजह से है कि इस सीट से स्वयं उनके चुनाव लड़ने की चर्चाएं भी तेज हो गई हैं। इसे देखते हुए ही भाजपा यहां से उनके मुकाबले और जातीय समीकरण को देखते हुए रमेश कौशिक को मैदान में उतारा है। भाजपा नेताओं का भी मानना है कि समन्वय समिति के चेयरमैन बनने के बाद हुड्डा भी अपने प्रभाव वाले सोनीपत सीट पर कांग्रेस की वापसी के लिए कोई कसर नहीं छोड़ेंगे।