साभार: भास्कर समाचार
एन. रघुरामन (मैनेजमेंट गुरु)
लेकिन, रिक्शा खींचने वाले मोहम्मद हक को अपने बेटे के साथ सरकारी स्कूल के शारिरिक शिक्षा के टीचर सुरेंद्र सिंह पर भी पूरा भरोसा था, जिनका विश्वास था कि निसार में दौड़ने की नैसर्गिक प्रतिभा है। सिंह निसार को एथलेटिक्स में मौका देना चाहते थे। निसार को एक इंटरजोनल स्पर्द्धा में ले जाकर सिंह ने प्रतिभाओं को पहचानने के अपने कौशल का परिचय दिया, जहां पर निसार अपने प्रतिस्पर्धियों को मात देने में कामयाब रहा। अब सिंह को पूरा भरोसा हो गया कि उन्होंने पदक विजेता को खोज निकाला है। प्रशिक्षण शुरू हुआ। अपनी नई कोच सुनीता राय के मातहत रोज सुबह 5 बजे छत्रसाल स्टेडियम पहुंचना निसार की आदत हो गई। वह घर लौटता है, जल्दी से भोजन करता है और अपने स्कूल की ओर रवाना हो जाता है, जहां से जल्दी निकलने की उसे विशेष अनुमति है।
इस शनिवार को ईद के दिन बड़ी उपलब्धि हासिल हुई। निसार ने ईद के दो खास तोहफे हासिल किए- दिल्ली एथलेटिक्स मीट में दो गोल्ड मेडल! यह धावक सिर्फ राष्ट्रीय राजधानी का सबसे तेज धावक रहा बल्कि उसने दो राष्ट्रीय रिकॉर्ड भी ध्वस्त किए। उसने 100 मीटर में एमएस अरुण द्वारा 2013 में बनाए अंडर-16 सौ मीटर के रिकॉर्ड में 0.01 सेकंड का सुधार किया। उसी साल 200 मीटर में चंदन बौरी के रिकॉर्ड से वह 0.3 से बेहतर रहा। यही वजह है कि उस दस बाय दस के छोटे से कमरे में छोटे से टीवी को खास जगह दी गई है और उसके आसपास ट्राफियां सजाई गई है, जिनमें 2015 के स्कूल नेशनल गेम्स की ट्राफी भी है, जहां उसे बेस्ट एथलीट घोषित किया गया था।
निसार के माता-पिता ने कभी उसे दौड़ते नहीं देखा था और कभी किसी पदक वितरण समारोह में जा सके थे। जब निसार अपने स्पोर्ट्स शू के साथ प्रैक्टिस करता है तो उसके पिता रिक्शा के पैडल और भी जोर से मारने लगते हैं, बल्कि इसके कारण उनके दाएं पैरे के तलवे पर छाले हो गए हैं। सारी तकलीफों के बावजूद निसार के पिताजी को अब भी यह बात सालती है कि खराब माली हालत के कारण वे निसार को अंतरराष्ट्रीय स्पर्धाओं में शामिल होने लायक डाइट नहीं दे पा रहे हैं।
लेकिन, जब दोनों पालक मोबाइल वीडियो रेकॉर्डिंग पर अपने बेटे की उपलब्धियों को देखते हैं तो फ़ख्र के कारण उनकी आंखें भीग जाती है। उन्हें स्पोर्ट्स एथलेटिक्स के बारे में कुछ मालूम नहीं है पर उनका पुत्र रोज उन्हें इस बारे में नई-नई जानकारियां देता रहता है। हर घर में कामयाबी की ऐसी छोटी-मोटी कथाएं मौजूद हैं, जहां पालकों ने त्याग बलिदान दिया और टीचर ने प्रतिभा को पहचाना है।
फंडा यह है कि पैरेट्स और टीचर हो सकता है एकाध पायदान नीचे हो लेकिन, वे सृष्टि निर्माता से कोई कम नहीं हैं।
स्टोरी 1: नई दिल्ली की झुग्गी बस्ती आज़ादपुर बड़ा बाग में रेलवे ट्रैक के किनारे निसार अहमद की दस बाय दस की जगह है, जिसमें वह बहन पैरेंट्स के साथ रहता है। इस घर में कमाने वाले दो लोग हैं निसार के पिताजी
मोहम्मद हक, जो साइकिल रिक्शा चलाकर 200 रुपए प्रतिदिन कमाते हैं और मां शफीकुनिशा, जो पति की मदद के लिए अशोक विहार के कुछ घरों में बर्तन साफ करने का काम करती हैं। चार पेट भरने के लिए रोज दो जून की रोटी कमाना किसी रिले रेस स्पर्धा में गोल्ड मेडल जीतने से कम नहीं था, क्योंकि उस एकजुट परिवार के भले के लिए हर कोई किसी किसी तरह योगदान देता है। यही वजह है कि 18 माह पहले इस परिवार के सामने ऐसी स्थिति आई कि उसे 28 हजार रुपए उधार लेने पड़े, वह भी स्पोर्ट्स के कुछ उपकरण, कपड़े और स्पाइक्स खरीदने के लिए। इसके अलावा निसार की डाइट भी ताकि वह स्पोर्ट्स में अपना कॅरिअर बना सके। लोगों को यह सब हजम नहीं हुआ। लेकिन, रिक्शा खींचने वाले मोहम्मद हक को अपने बेटे के साथ सरकारी स्कूल के शारिरिक शिक्षा के टीचर सुरेंद्र सिंह पर भी पूरा भरोसा था, जिनका विश्वास था कि निसार में दौड़ने की नैसर्गिक प्रतिभा है। सिंह निसार को एथलेटिक्स में मौका देना चाहते थे। निसार को एक इंटरजोनल स्पर्द्धा में ले जाकर सिंह ने प्रतिभाओं को पहचानने के अपने कौशल का परिचय दिया, जहां पर निसार अपने प्रतिस्पर्धियों को मात देने में कामयाब रहा। अब सिंह को पूरा भरोसा हो गया कि उन्होंने पदक विजेता को खोज निकाला है। प्रशिक्षण शुरू हुआ। अपनी नई कोच सुनीता राय के मातहत रोज सुबह 5 बजे छत्रसाल स्टेडियम पहुंचना निसार की आदत हो गई। वह घर लौटता है, जल्दी से भोजन करता है और अपने स्कूल की ओर रवाना हो जाता है, जहां से जल्दी निकलने की उसे विशेष अनुमति है।
इस शनिवार को ईद के दिन बड़ी उपलब्धि हासिल हुई। निसार ने ईद के दो खास तोहफे हासिल किए- दिल्ली एथलेटिक्स मीट में दो गोल्ड मेडल! यह धावक सिर्फ राष्ट्रीय राजधानी का सबसे तेज धावक रहा बल्कि उसने दो राष्ट्रीय रिकॉर्ड भी ध्वस्त किए। उसने 100 मीटर में एमएस अरुण द्वारा 2013 में बनाए अंडर-16 सौ मीटर के रिकॉर्ड में 0.01 सेकंड का सुधार किया। उसी साल 200 मीटर में चंदन बौरी के रिकॉर्ड से वह 0.3 से बेहतर रहा। यही वजह है कि उस दस बाय दस के छोटे से कमरे में छोटे से टीवी को खास जगह दी गई है और उसके आसपास ट्राफियां सजाई गई है, जिनमें 2015 के स्कूल नेशनल गेम्स की ट्राफी भी है, जहां उसे बेस्ट एथलीट घोषित किया गया था।
निसार के माता-पिता ने कभी उसे दौड़ते नहीं देखा था और कभी किसी पदक वितरण समारोह में जा सके थे। जब निसार अपने स्पोर्ट्स शू के साथ प्रैक्टिस करता है तो उसके पिता रिक्शा के पैडल और भी जोर से मारने लगते हैं, बल्कि इसके कारण उनके दाएं पैरे के तलवे पर छाले हो गए हैं। सारी तकलीफों के बावजूद निसार के पिताजी को अब भी यह बात सालती है कि खराब माली हालत के कारण वे निसार को अंतरराष्ट्रीय स्पर्धाओं में शामिल होने लायक डाइट नहीं दे पा रहे हैं।
लेकिन, जब दोनों पालक मोबाइल वीडियो रेकॉर्डिंग पर अपने बेटे की उपलब्धियों को देखते हैं तो फ़ख्र के कारण उनकी आंखें भीग जाती है। उन्हें स्पोर्ट्स एथलेटिक्स के बारे में कुछ मालूम नहीं है पर उनका पुत्र रोज उन्हें इस बारे में नई-नई जानकारियां देता रहता है। हर घर में कामयाबी की ऐसी छोटी-मोटी कथाएं मौजूद हैं, जहां पालकों ने त्याग बलिदान दिया और टीचर ने प्रतिभा को पहचाना है।
फंडा यह है कि पैरेट्स और टीचर हो सकता है एकाध पायदान नीचे हो लेकिन, वे सृष्टि निर्माता से कोई कम नहीं हैं।