Saturday, September 9, 2017

क्योंकि सीखना है जरूरी: हर यात्रा में आपको चाहिए गाइड और एटीकेट टीचर

साभार: भास्कर समाचार
एन. रघुरामन (मैनेजमेंटगुरु)
लखनऊ रेल कॉर्पोरेशन द्वारा इस बुधवार से शुरू की गई लखनऊ मेट्रो के पहले दिन यात्रियों से सिक्यूरिटी चैक के दौरान 20 किलो से ज्यादा तंबाकू उत्पाद और सिगरेट जब्त की गई। तंबाकू उत्पादों के अलावा लोगों से
लाइटर और माचिस भी एयरपोर्ट की तरह डस्टबिन में डालने के लिए कहा गया। पान मसाला चबा रहे यात्रियों से कहा गया कि मेट्रो में चढ़ने से पहले मुंह साफ करें। मेट्रो के आठ ऑपरेशनल स्टेशनों में से सबसे ज्यादा 6 किलो पान मसाला चार बाग मेट्रो स्टेशन से जब्त किया गया। इसके बाद ट्रांसपोर्ट नगर मेट्रो स्टेशन से 4 किलो की जब्ती हुई। औसतन इन स्टेशनों पर आने वाले हर पांच में से तीन लोगों के पास या तो तंबाकू के पैकेट थे या वे तंबाकू चबा रहे थे। देश में लखनऊ मेट्रो वाला सिर्फ सातवां शहर है और यह बड़ी उपलब्धि है। लेकिन तेज और स्वच्छ यात्रा की यह सुविधा बड़ी जिम्मेदारी भी लेकर आई है, क्योंकि अगर हम मेट्रो के लिखित शिष्टाचार का पालन नहीं कर पाए तो यात्रियों के लिए लाए गए ये नए माध्यम अपना महत्व खो देेंगे। वैसे भी हम भारतीय यात्री हमेशा गरम मौसम और पसीने वाले वातावरण में यात्रा करते हैं। 
यह सिर्फ लखनऊ की ही बात नहीं है। 2014 में जब मुंबई में मेट्रो ट्रेन शुरू हुई थी तब हर कोने और मोड़ पर कई कर्मचारी नियुक्त किए गए थे, जो यात्रियों को गाइड करने और मेट्रो के शिष्टाचार बताने के लिए थे। वे लोगों को बताते थे कि मेट्रो में क्या करना है और क्या नहीं। सात मेट्रो शहरों में गंदगी, पान-गुटके की पीक और कोच की दीवारों को कुछ लिख देने से बचाने के पीछे कई कारणों में से मेट्रो शिष्टाचार भी एक कारण है। मेट्रो स्टेशन के ये युवा टीचर मुझे शिवजी के वाहन नंदी की याद दिलाते हैं, जो तीर्थयात्राओं के दौरान हमेशा अच्छे गाइड होते हैं। आमतौर पर शिवजी की प्रतिमा या शिवलिंग वाले मंदिर में नंदी मुख्य द्वार के एकदम उल्टी तरफ बैठे होते हैं। लोग यह भी कहते हैं कि नंदी शिव के सबसे नज़दीकी सहयोगी हैं, क्योंकि वे जिम्मेदारी के प्रतीक हैं। 
उनके बारे में सुनी एक कहानी मुझे याद है कि नंदी मूल रूप से आपसे कहते हैं कि इसके पहले कि आप मंदिर में जाएं, आपमें यह विचार होना चाहिए कि मैं अंदर जाऊंगा और सिर्फ बैठ जाऊंगा। जब आप अंदर जाएं तो कोई अजीब हरकत नहीं करें। उनसे तरह-तरह की मांग करें। अंदर जाएंगे और मेरी तरह चुपचाप बैठ जाएंगे। मेरी तरह बैठने का मतलब है कि आप अस्तित्व और प्रकृति की रचनाओं को सुनने की इच्छा रखते हैं। हो सकता है यह मान्यता सही हो। याद कीजिए हम सभी जब मंदिर में जाते हैं तो नंदी के नजदीक जाकर उनके कानों में अपनी बात कहते हैं कि वह हमारी अर्जी विधाता तक पहुंचा दे। 
यह सिर्फ नंदी का ही गुण नहीं है- वे सिर्फ बैठे नहीं है, बल्कि सतर्क भी हैं, वे उनींदे नहीं हैं। वे वहां निष्क्रिय भाव से नहीं बैठे हैं। वे बहुत सक्रिय हैं। सतर्कता से भरे हुए और जीवन से भरे हुए हैं। नंदी आपको तीर्थयात्रा के दौरान टीचर के रूप में प्रार्थना और ध्यान के बीच का अंतर बताते हैं। प्रार्थना का मतलब है आप ईश्वर से बात करने की कोशिश कर रहे हैं, जबकि ध्यान का मतलब है आप ईश्वर को सुनने की कोशिश कर रहे हैं। 
फंडा यह है कि नई यात्रा में गाइड जरूरी होता है, जो बताए कि यात्रा को कैसे पूरा करें कि वह फलदायक, आरामदायक उद्‌देपूर्ण हो।