एन. रघुरामन (मैनेजमेंटगुरु)
पुलिस रोज उनसे मिलती रही कि कहीं उनके पैरेंट्स का कोई क्लू मिल जाए। छह साल के बच्चे को आखिर बिहार के अपने गांव और नाना का नाम याद गया। पुलिस दोनों बच्चों को चंडीगढ़ के सेक्टर 17 के अाधार कार्ड सेंटर ले गई। उन्होंने बच्चों द्वारा बताए गए नामों को चेक किया और दोनों बच्चों ने अपने नाना के अधार कार्ड की कॉपी में कंप्यूटर के स्क्रीन पर फोटो देखकर उन्हें पहचान लिया। इसके बाद पुलिस ने बिहार के स्थानीय पुलिस स्टेशन से संपर्क किया। नाना ने फोन पर उन्हें बच्चों के पैरेंट्स का नेपाल का पता बता दिया। पुलिस ने उनसे बात की और फिर बाल संरक्षण अधिकारी से बात करने के बाद बच्चों को उनके पैरेंट्स को सौंप दिया गया। हालांकि यह स्पष्ट नहीं हो सका कि दोनों नेपाल से पंचकुला पहुंचे कैसे, जबकि माता-पिता का कहना था कि बच्चे अपने घर के पास खेलते समय गायब हो गए थे।
साभार: भास्कर समाचार
स्टोरी 1: पंचकुला पुलिस ने 4 और 6 साल के दो भाइयों को इस साल अप्रैल में सड़क पर यहां-वहां घूमते पाया। दोनों को बाल संरक्षण अधिकारी के सामने पेश किया गया और वहां से बालगृह भेज दिया गया। पुलिस बच्चों
की काउंसलिंग करती रही, लेकिन पैरेंट्स के नाम के अलावा कोई जानकारी लेने में नाकाम रही। पुलिस ने चंडीगढ़, हरियाणा, पंजाब, बिहार और उत्तरप्रदेश के पुलिस स्टेशनों को उनके फोटो भी भेजे, लेकिन कोई जानकारी नहीं मिली। पुलिस रोज उनसे मिलती रही कि कहीं उनके पैरेंट्स का कोई क्लू मिल जाए। छह साल के बच्चे को आखिर बिहार के अपने गांव और नाना का नाम याद गया। पुलिस दोनों बच्चों को चंडीगढ़ के सेक्टर 17 के अाधार कार्ड सेंटर ले गई। उन्होंने बच्चों द्वारा बताए गए नामों को चेक किया और दोनों बच्चों ने अपने नाना के अधार कार्ड की कॉपी में कंप्यूटर के स्क्रीन पर फोटो देखकर उन्हें पहचान लिया। इसके बाद पुलिस ने बिहार के स्थानीय पुलिस स्टेशन से संपर्क किया। नाना ने फोन पर उन्हें बच्चों के पैरेंट्स का नेपाल का पता बता दिया। पुलिस ने उनसे बात की और फिर बाल संरक्षण अधिकारी से बात करने के बाद बच्चों को उनके पैरेंट्स को सौंप दिया गया। हालांकि यह स्पष्ट नहीं हो सका कि दोनों नेपाल से पंचकुला पहुंचे कैसे, जबकि माता-पिता का कहना था कि बच्चे अपने घर के पास खेलते समय गायब हो गए थे।
स्टोरी 2: संजय, नागनाथ येंकुर की सुनने-बोलने की क्षमता नहीं है। वह अनाथ है और उसने 2014 में अपने भाई विजय से झगड़े के बाद अपना गांव हिंचाल छोड़ दिया। किसी तरह वह 800 किलोमीटर दूर गुजरात पहुंच गया। भाइयों ने अपने पैरेंट्स को 2011 में खो दिया था और दोनों अपनी मामी संगमाबेन माणिकराव गांटे की देखरेख में थे।
पिछले साल 22 मार्च को वड़ाेदरा रेलवे स्टेशन पर पुलिस को संजय मिला था। तब वह 11 साल का था। वह रेलवे स्टेशन पर यूं ही घूम रहा था। उसके परिवार को तलाशने की कोशिश बेकार हो रही थी, क्योंकि वह बोल नहीं सकता था। इसलिए उसे सरकारी मूक बधिर रहवासी स्कूल भेज दिया गया। यह स्कूल बाल सुरक्षा आयोग गुजरात स्थित नर्मदा जिले के राजपीपला में है। उन्होंने उसका नाम आकाश रख दिया और उसे कक्षा 2 में भर्ती कर दिया गया। संजय की पहचान आखिर जनवरी 2017 में हो गई, जब एक आधार कैंप उनके स्कूल में लगा। सभी छात्रों के फिंगरप्रिंट और रेटिना स्कैन लिए गए, लेकिन, आकाश का रजिस्ट्रेशन नहीं हो सका। आधार की वेबसाइट पर चेक करने पर पता चला कि ये जानकारियां पहले से मौजूद है, उसका रजिस्ट्रेशन 2011 में पहले ही हो चुका है। संजय नागनाथ येंकुर के नाम से। लातूर जिले में जब संपर्क किया तो उसकी पहचान की पुष्टि हो गई।
पिछले साल 22 मार्च को वड़ाेदरा रेलवे स्टेशन पर पुलिस को संजय मिला था। तब वह 11 साल का था। वह रेलवे स्टेशन पर यूं ही घूम रहा था। उसके परिवार को तलाशने की कोशिश बेकार हो रही थी, क्योंकि वह बोल नहीं सकता था। इसलिए उसे सरकारी मूक बधिर रहवासी स्कूल भेज दिया गया। यह स्कूल बाल सुरक्षा आयोग गुजरात स्थित नर्मदा जिले के राजपीपला में है। उन्होंने उसका नाम आकाश रख दिया और उसे कक्षा 2 में भर्ती कर दिया गया। संजय की पहचान आखिर जनवरी 2017 में हो गई, जब एक आधार कैंप उनके स्कूल में लगा। सभी छात्रों के फिंगरप्रिंट और रेटिना स्कैन लिए गए, लेकिन, आकाश का रजिस्ट्रेशन नहीं हो सका। आधार की वेबसाइट पर चेक करने पर पता चला कि ये जानकारियां पहले से मौजूद है, उसका रजिस्ट्रेशन 2011 में पहले ही हो चुका है। संजय नागनाथ येंकुर के नाम से। लातूर जिले में जब संपर्क किया तो उसकी पहचान की पुष्टि हो गई।
स्टाेरी 3: 14 वर्षीय लवप्रीत सिंह दो साल पहले घर से भाग गया लेकिन, पिछले माह वह अपने परिवार से फिर मिल गया। सिर्फे आधार कार्ड के कारण। लवप्रीत हिमाचल चला गया था और सरकारी कर्मचारियों को वहीं मिला। वहां से उसे पंजाब भेज दिया गया। गुरदासपुर के प्रशासन ने जब उसका अधाार कार्ड बनवाने की कोशिश की तो पता चला कि उसका नामांकन तो पहले ही भटिंडा के पते पर हो चुका है। लवप्रीत के अंगूठे के निशान से उसके परिवार का पता मिल गया।
अमेरिका जैसे देशों में पुलिस गुम लोगों को हमेशा उनके यूनिक आइडंटीफिकेशन नंबर से तलाशती है। कोई अाश्चर्य नहीं कि तमिलनाडु में प्रशासन ने नवजात बच्चों के लिए भी अाधार जरूरी कर दिया है।
फंडा यह है कि अाधार जैसी नई टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल से आप अपने बच्चों को एक अीैर सुरक्षा घेेरे में ला सकते हैं।
अमेरिका जैसे देशों में पुलिस गुम लोगों को हमेशा उनके यूनिक आइडंटीफिकेशन नंबर से तलाशती है। कोई अाश्चर्य नहीं कि तमिलनाडु में प्रशासन ने नवजात बच्चों के लिए भी अाधार जरूरी कर दिया है।
फंडा यह है कि अाधार जैसी नई टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल से आप अपने बच्चों को एक अीैर सुरक्षा घेेरे में ला सकते हैं।