साभार: भास्कर समाचार
अक्सर लोग जूते-चप्पल पुराने होने पर फेंक देते हैं। पर उदयपुर के श्रीयंस भंडारी और गढ़वाल के रमेश धामी पुराने जूते-चप्पलों को नया लुक देकर उन मासूमों को पहना रहे हैं, जो नंगे पांव स्कूल जाने को मजबूर हैं। वे
बेकार पड़े जूते और चप्पलों को पहले रिसाइकिल कर चप्पल बनाते हैं, फिर स्कूल, कॉलेज, झुग्गी बस्तियों और गांवों में बच्चों को बांटते हैं। ऐसा वे पिछले तीन साल से कर रहे हैं। अब तक चार राज्यों में 50 हजार से ज्यादा बच्चों को चप्पल पहना चुके हैं। उनका लक्ष्य 2017 में इस आंकड़े को एक लाख तक पहुंचाना है। इस काम के लिए उन्होंने 'ग्रीन सोल' नाम की कंपनी भी बनाई है, जिसका हेड ऑफिस मुंबई में है। कंपनी के वॉलंटियर्स देश के 15 राज्यों के 50 बड़े शहरों में पुराने जूते-चप्पलों का कलेक्शन करने का काम कर रहे हैं। ग्रीन सोल के को-फाउंडर श्रीयंस भंडारी ने भास्कर को बताया कि हमने 2014 में पुराने और बेकार जूते-चप्पलों को दोबारा नया लुक देकर ऑनलाइन बेचने का स्टार्टअप शुरू किया था। इसी दौरान एक दिन आइडिया आया कि क्यूं उन बच्चों को चप्पल मुहैया कराएं, जो नंगे पांव स्कूल जाते हैं। इससे केवल जरूरतमंद बच्चों की मदद होगी, बल्कि पर्यावरण प्रदूषण को भी कम किया जा सकेगा। इसके लिए मैं और रमेश सबसे पहले जूते बनाने वाली फैक्ट्रियों में गए। वहां जूतों की मरम्मत का काम देखा। फिर मुंबई, दिल्ली, बेंगलुरू में स्पोर्ट्स एकेडमी, बड़े स्कूलों, कॉलेजों, संस्थाओं और निजी कंपनियों से संपर्क कर पुराने जूते-चप्पल जुटाना शुरू किया। सबसे अधिक जूते बेंगलुरू और दिल्ली से मिलते हैं। रिसाइकिल के काम के लिए हमने 10 कर्मचारी भी रखे हैं। रिसाइकिल के दौरान हम जूते और चप्पलों के सोल को निकालकर उन्हें री-डिजाइन कर चप्पल बनाते हैं। फिलहाल, हम रिसाइकिल चप्पलों को गुजरात, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और असम में जरूरतमंद बच्चों को दे रहे हैं। हर महीने औसत एक हजार चप्पल बच्चों को पहनाते हैं। इसके अलावा अब हम ऑनलाइन रिटेल बिजनेस भी शुरू कर रहे हैं। इससे होने वाली आय को भी हम जरूरतमंद बच्चों को चप्पल मुहैया कराने में लगाएंगे। यही नहीं, हमने कुछ सेलिब्रिटी से बात की है, उनके जूतों का ऑक्शन कर मिलने वाले पैसे से चप्पल बनाएंगे। इस काम में कई कार्पोरेट कंपनियां हमारी मदद कर रही हैं। देश के करीब 80% हिस्सों में लोग हमारे वॉलंटिंयर्स को पुराने जूते-चप्पल खुद ही भेजते हैं।
स्कूल में बच्चों को चप्पल पहनाते श्रीयंस: दुनिया में करीब 35 करोड़ बच्चे ऐसे हैं, जिनके पास जूते-चप्पल नहीं हैं। जबकि हर साल करीब 35 करोड़ स्पोर्ट्स शूज फेंके जाते हैं। चप्पल नहीं पहनने से हर साल करीब 20 लाख लोगों को सॉइल ट्रांसमिटेड बीमारी होती है। वहीं, करीब 56% भारतीय, साल में 1,000 रु. से कम रु. चप्पल पर खर्च करते हैं। 26% लोग 1,000-8,000 रु और 5% लोग 8,000 से ज्यादा रुपए जूते-चप्पल पर खर्च करते हैं।